खास से ‘आम’ बनकर रह गए हरदा को याद आ रहा VVIP प्रोटोकॉल
Pen Point, Dehradun : दिल्ली एयरपोर्ट पर वीआईपी प्रोटोकॉल न मिलने से दुखी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दर्द बीते बुधवार को सोशल मीडिया पर छलका। उन्होंने एस्कोर्ट न मिलने, प्रोटोकॉल न मिलने पर दुखभरी एक लंबी पोस्ट लिखी। पूर्व मुख्यमंत्री ने अन्य राज्यों में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं का जिक्र करते हुए अपने मन की व्यथा बंया कर दी।
असल में राज्य में हाईकोर्ट के आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों को वीआईपी व्यवस्थाएं देने पर रोक लगी हुई है। हालांकि, 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हाईकोर्ट के इस फैसले को विधानसभा के जरिए पलटने की कोशिश भी की लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार की इस मंशा पर ही पानी फेर दिया। लिहाजा, 24 साल के इस युवा राज्य के सात पूर्व मुख्यमंत्री खास से आम ही रह गए। हालांकि, कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों का सांसद, राज्यपाल के रूप में पुनर्वास तो हुआ लेकिन कांग्रेस के दौर के दो पूर्व मुख्यमंत्री हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद ‘आम’ ही बनकर रह गए। लिहाजा, खास होने की तलब समय समय पर सताती रहती है। सोशल मीडिया पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की यह पोस्ट भी ‘आम’ बने रहने में हो रही मुश्किलों का दर्द बंया करती है। हालांकि, यह इकलौता हरीश रावत की ही दर्द नहीं है, बल्कि बार बार मुख्यमंत्रियों के बदलने से खड़ी हुई पूर्व मुख्यमंत्रियों की पूरी फौज का भी दर्द है। राज्य निर्माण के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के सिवाय अब तक कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है।
राज्य गठन के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं का खूब ख्याल रखा गया। पूर्व मुख्यमंत्री को रहने के लिए आलीशान सरकारी बंगले के अलावा, कर्मचारियों की फौज, सरकारी वाहन, टेलीफोन, पेट्रोल समेत अन्य खर्च, ड्राइवर समेत अन्य सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान किया गया। साल 2010 में अवधेश कौशल की रूलक संस्था ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर रोक लगाने को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी। 2016 में इस हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देना संविधान सम्मत नहीं है। हाईकोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली करने और उसका किराया सरकारी खाते में जमा करने के निर्देश दिए थे।
इस फैसले को चुनौती देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि वह अपने खर्चे वहन करने में असमर्थ है इसलिए पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाएं जारी रखी जाए। 2016 में दाखिल इस याचिका में 2019 में आए फैसले पर हाईकोर्ट ने भगत सिंह कोश्यारी की दलील खारिज कर अपने फैसले को यथावत रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगलों का किराया वसूलने का सरकार को आदेश दिया।
लेकिन, त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने साल 2019 में हाईकोर्ट के इस फैसले का तोड़ निकालते हुए विधानसभा में विधेयक पेश कर पूर्व मुख्यमंत्रियों से किराया वसूलने के फैसले पर रोक लगाते हुए सुविधाओं को यथावत रखने का फैसला लिया।
पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले के किराए की बकाया राशि 2 करोड़ 84 लाख को माफ करने के लिए तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार ने विधानसभा में विधेयक पेश किया जिसे रूलक संस्था ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, साल 2020 में हाईकोर्ट ने इस विधेयक को अवैध करार देते हुए अपने फैसले को यथावत रखते हुए राज्य सरकार के फैसले को रद कर दिया। लिहाजा, पूर्व मुख्यमंत्रियों को जनता के पैसे पर सुविधाएं मुहैया करवाने की सरकारी कोशिशों पर हाईकोर्ट ने पानी फेर दिया। हालांकि, इसके बाद कोरोना काल आने के बाद सरकार ने भी इस मामले में कोई पहल नहीं की तो कोरोना महामारी के बाद हालात सुधरने लगे तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और वह भी पूर्व मुख्यमंत्रियों की फौज में शामिल हो गए, उन्हें भी अपना सरकारी आवास छोड़ अपने निजी आवास का रूख करना पड़ा। हालांकि, उसके बाद तत्कालीन गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली लेकिन अपने अजीब-ओ-गरीब बयानों के लिए वायरल होने के बाद उन्हें चार महीने के कार्यकाल से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री का दर्जा मिल गया।
हालांकि, अब पूर्व मुख्यमंत्रियों की फौज में शामिल भगत सिंह कोश्यारी का महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में राजनीतिक पुनर्वास हुआ तो डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक दो बार हरिद्वार से सांसद और कुछ सालों के लिए केंद्रीय मंत्री भी रहे, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हाल ही में हरिद्वार से लोकसभा के जरिए राजनीतिक पुनर्वास नसीब हुआ। हालांकि, टिकट कटने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत भी राजनीतिक पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं ताकि सरकारी सुविधाएं मुहैया हो सके। कांग्रेस में रहकर मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा भाजपा में शामिल होने के बाद सक्रिय राजनीति से लगभग किनारे हो चुके हैं जबकि कांग्रेस शासनकाल में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत 2017 से लगातार चुनावी हार के बावजूद अपनी प्रासंगिकता तो बनाए हुए हैं लेकिन राजनीतिक सुविधाओं के नाम पर फिलहाल दो सुरक्षाकर्मियों के साथ राजनीति में जमे हुए हैं और राजनीतिक पुनर्वास के इंतजार में है। ऐसे में हरीश रावत के बीते बुधवार को सोशल मीडिया पर पोस्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों की आधी दर्जन बड़ी फौज की पीड़ा को भी जाहिर किया है।