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हिमाचल में प्लास्टिक की बोतलें बैन, क्या हरियाली बचाने को उत्तराखंड भी लेगा प्रेरणा ?

Pen Point, Dehradun : हिमाचल प्रदेश ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। 1 जून 2025 से राज्य सरकार ने 500 मिलीलीटर तक की प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों के उपयोग, खरीद-बिक्री और आपूर्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया है। यह फैसला हिमाचल को “ग्रीन स्टेट” बनाने की दिशा में एक साहसिक और दूरदर्शी पहल के रूप में देखा जा रहा है।

यह प्रतिबंध न केवल उपभोग तक सीमित है, बल्कि स्कूलों, हिमाचल पर्यटन विकास निगम, सभी सरकारी आयोजनों और निजी होटलों में भी सख्ती से लागू किया जाएगा। नियमों के उल्लंघन पर Rs.500 से Rs.10,000 तक का जुर्माना निर्धारित किया गया है।

मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित किया है कि इस आदेश का पालन जमीनी स्तर पर कड़ाई से सुनिश्चित किया जाए। किसी भी संस्था, होटल या स्कूल में प्रतिबंधित बोतलों के पाए जाने पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी।

सवाल- उत्तराखंड भी उठा सकता है ऐसा कदम

पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की भौगोलिक और पारिस्थितिकीय स्थितियाँ काफी हद तक हिमाचल जैसी ही हैं। यहाँ भी पहाड़ी क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे की बढ़ती मात्रा जल स्रोतों, जैव विविधता और पर्यटन स्थलों के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है। चारधाम यात्रा के दौरान और प्रमुख पर्यटक स्थलों — जैसे मसूरी, नैनीताल, औली, और चोपता — में प्लास्टिक बोतलों और रैपरों की भरमार देखी जाती है।

विशेषज्ञों के अनुसार हिमाचल का यह निर्णय उत्तराखंड के नीति-निर्माताओं के लिए भी एक मार्गदर्शक बन सकता है। अगर उत्तराखंड भी छोटे प्लास्टिक पैकेजिंग पर रोक लगाए और कांच, धातु, या बांस जैसे वैकल्पिक विकल्पों को बढ़ावा दे, तो यह पर्यावरणीय संकट की दिशा में एक बड़ा समाधान हो सकता है।

क्या है हिमाचल मॉडल में खास?

  • प्रतिबंध केवल उपयोग तक सीमित नहीं, बल्कि खरीद, बिक्री और वितरण पर भी लागू।

  • वैकल्पिक विकल्पों जैसे कांच, धातु व बांस की बोतलों को प्रोत्साहन।

  • भविष्य में 1 लीटर तक की बोतलों पर भी चरणबद्ध प्रतिबंध की योजना।

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय न केवल हिमाचल की नाजुक पारिस्थितिकी को राहत देगा, बल्कि राज्य को इको-फ्रेंडली टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में भी सशक्त करेगा। यही मॉडल उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी लागू किया जाए तो पूरे हिमालयी क्षेत्र के संरक्षण की दिशा में यह एक क्रांतिकारी पहल होगी।

हिमाचल का यह कदम सिर्फ एक राज्य का फैसला नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए एक दिशा है। उत्तराखंड सरकार को भी इस पहल से सीख लेकर पर्यावरणीय संरक्षण की अपनी नीतियों को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। पर्वतीय राज्यों के लिए अब समय आ गया है कि वे विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधते हुए ऐसी नीतियाँ अपनाएँ जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते हुए स्थायी भविष्य की ओर बढ़ें।

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