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जंगल में मकान जायज नहीं- सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दिये जांच के आदेश, उत्तराखंड में भी गूंजेगा असर

Pen Point, 15 मई 2025 : सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और सख्त फैसले में देशभर के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को आदेश दिया है कि वे विशेष जांच टीमें (SIT) गठित करें। इन टीमों का मकसद यह जांच करना होगा कि आरक्षित वन भूमि का किसी व्यक्ति या संस्था को अवैध रूप से आवंटन तो नहीं हुआ, खासकर ऐसे कार्यों के लिए जिनका वनों या वन्यजीवन से कोई सीधा संबंध नहीं है।

यह फैसला महाराष्ट्र के पुणे जिले के कोंढवा बु्द्रुक क्षेत्र में आरक्षित वन भूमि को एक हाउसिंग सोसाइटी (रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी) को दिए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान आया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह का आवंटन न सिर्फ अवैध है, बल्कि इससे देश के वन संसाधनों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठते हैं।

कोर्ट का सख्त रुख: “वन भूमि सिर्फ वनों के लिए है”

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन शामिल थे, ने कहा –

“अब से आरक्षित वन भूमि का उपयोग केवल वनों के विकास के लिए ही किया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि यदि किसी के कब्जे में ऐसी आरक्षित वन भूमि है, तो उसे तुरंत वापस लेकर वन विभाग को सौंपा जाए। और यदि किसी कारणवश ऐसा करना जनहित में संभव न हो, तो उस भूमि की लागत वसूल कर वह राशि वनों के संरक्षण और पुनर्वास में लगाई जाए।

इस प्रक्रिया को एक वर्ष के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं।

उत्तराखंड पर भी असर

इस फैसले का असर उत्तराखंड जैसे वन-प्रधान राज्यों पर भी गहराई से पड़ेगा। राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जहां वन भूमि के सीमांकन को लेकर विवाद चल रहे हैं या जहां ग्रामीण इलाकों में राजस्व और वन विभाग के बीच अधिकारों की टकराहट सामने आती रही है। कई स्थानों पर चारागाह या उपजाऊ वन भूमि को निर्माण कार्यों के लिए सौंपने की शिकायतें भी मिलती रही हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, उत्तराखंड सरकार को भी SIT गठित कर इन मामलों की जांच करनी होगी, और यदि कोई अनियमितता पाई जाती है, तो त्वरित कार्रवाई करनी होगी।

पुणे केस में कोर्ट का सख्त संदेश

कोंढवा बु्द्रुक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि – “28 अगस्त 1998 को 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि को कृषि उद्देश्य से देना और फिर 1999 में उसे हाउसिंग सोसाइटी को बेचना पूरी तरह अवैध था।” इसके साथ ही पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2007 में दी गई मंजूरी को भी अवैध करार देते हुए उसे रद्द कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी सभी जमीनें तीन महीनों के भीतर वन विभाग को लौटाई जाएं।

क्या जंगल में मकान जायज है?

इससे पहले 29 अप्रैल 2025 को भी सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार से तीखा सवाल पूछा था –

“क्या जंगल में मकान बनाना जायज है? यदि हां, तो इसके लिए कौन-कौन से कानून और नियम हैं?”

यह सवाल अब पूरे देश में गूंज रहा है। विशेष रूप से उत्तराखंड जैसे राज्यों में, जहां पर्यटन, चारधाम यात्रा, और विकास कार्यों के नाम पर वनों में निर्माण कार्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है, यह फैसला नीतियों की समीक्षा की मांग करता है। अब देखना होगा कि उत्तराखंड समेत अन्य राज्य सरकारें इस आदेश को किस गंभीरता से लागू करती हैं और वनों की रक्षा के लिए किस हद तक आगे बढ़ती हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह संदेश स्पष्ट है – जंगल किसी के निजी इस्तेमाल के लिए नहीं, देश और पर्यावरण के भविष्य के लिए हैं।

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