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निर्दलीय प्रत्याशी: बॉबी ने दिखाया दम तो उमेश कुमार फीके पड़े

Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड में इस बार लोकसभा चुनाव में दो निर्दलीय प्रत्याशियों पर सबकी नजरें रही। पहले बेरोजगार युवाओं के आंदोलन से निकले बॉबी पंवार और दूसरे खानपुर विधायक उमेश कुमार। नतीजे आने के बाद नजर आ रहा है टिहरी सीट पर बॉबी पंवार अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे। जबकि हरिद्वार सीट पर उमेश कुमार विधानसभा चुनाव जैसा जलवा नहीं दिखा सके।

उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर सुर्खियां बटोरने वाले उमेश कुमार इस लोकसभा चुनाव में फीके नजर आए। 2022 के विधानसभा चुनाव में खानपुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव जीतकर उन्होंने अपना लोहा मनवाया था! इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस बार हरिद्वार लोकसभा सीट से ताल ठोक दी। शुरूआत में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ उनकी तीखे बयानबाजी ने लोगों का ध्यान खींचा। इस सीट पर जीत भाजपा प्रत्याशी व पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को जीत हासिल हुई। जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के विरेंद्र रावत रहे। जाहिर है कि उमेश कुमार की दोनों से ही पुरानी राजनीतिक अदावत चल रही है लिहाजा वह दोनों के खिलाफ पूरे चुनाव में मुखर रहे। बड़े लाव लश्कर और चुनावी स्टंट के बावजूद वह 91188 ही जुटा पाए।

दूसरी ओर, बेरोजगारी और पेपर लीक और युवाओं के विभिन्न मुद्दों को लेकर चर्चा में आए बॉबी पंवार ने टिहरी सीट पर अच्छा खासा दम दिखाया। उन्हें कुल 1680088 वोट पड़े। हालांकि वह तीसरे नंबर पर रहे लेकिन बड़ी कैडर बेस पार्टी कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला से महज 1200 वोट उन्हें कम पड़े। बॉबी को अपने गृहक्षेत्र चकराता विधानसभा में 27000 के करीब वोट पडे़। यानी लोगों ने भरपूर समर्थन दिया इस सीट पर उन्हें भाजपा और कांग्रेस से आगे रखा। गौरतलब है कि चकराता विधानसभा कांग्रेस के दिग्गज प्रीतम सिंह और भाजपा के मुन्ना सिंह का गृहक्षेत्र भी है। इसके अलावा पुरोला विधानसभा से भी बॉबी पंवार दोनों पार्टियों से आगे रहे। हालांकि अन्य विधानसभाओं में वह पिछड़ गए लेकिन इसके बावजूद उन्हें देहरादून टिहरी और उत्तरकाशी जिलों की हर विधानसभा से वोट हासिल हुआ। जिसके आधार पर उन्हें भविष्य के नेता के तौर पर देखा जाने लगा है। ं

हालांकि युवाओं के आक्रामक प्रचार के चलते माना जा रहा था कि बॉबी पंवार इस बार चौंका सकते हैं। नतीजे आने के बाद कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया और अन्य तरीकों से मुखर चुनाव प्रचार ने उन्हें लड़ाई में बनाए रखा। लेकिन भाजपा के मजबूत कैडर और चुनाव प्रबंधन का जवाब युवाओं की टीम के पास नहीं नजर आया।

इसके अलावा अन्य निर्दलीय और छोटे दलों के प्रत्याशी किसी भी सीट पर कुछ खास करते नजर नहीं आए। हरिद्वार सीट पर बसपा को छोड़ दें तो नोटा पर पड़े वोट ऐसे प्रत्याशियों से कहीं ज्यादा हैं। इस सीट पर छह हजार से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया है।

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