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कहीं चारधाम प्राधिकरण के जरिए देवस्थानम् के रास्ते पर तो नहीं हैं सीएम धामी…

– तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी ही सरकार का देवस्थानम् बोर्ड का फैसला कर दिया था रद, अब चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाने की तैयारियां
Pen Point, Dehradun : चारधाम में उमड़ रही भीड़ ने सरकार और प्रशासन के पसीने छुड़ा दिए हैं। व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई है, भीड़ नियत्रंण के लिए प्रशासन को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। भारी भीड़ और ध्वस्त होती व्यवस्थाओं के बीच अब सरकार को चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाने का ख्याल आया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बीते सोमवार को बताया कि सरकार जल्द ही चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाने जा रही है। हालांकि, मुख्यमंत्री रहते हुए पहले कार्यकाल में पुष्कर सिंह धामी ने ही चारधाम में व्यवस्थाएं सुदृढ़ करने को बनाए देवस्थानम् बोर्ड को तीर्थ पुरोहितों और हक हकूकधारियों के विरोध के चलते रद कर दिया था। ऐसे में तीन साल बाद फिर से चारधाम को लेकर यह नया फैसला कहीं नया विवाद न खड़ा कर दे।
भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में 27 नवंबर 2019 को कैबिनेट ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन विधेयक को मंजूरी दी थी और 9 दिसंबर 2019 को यह विधेयक विधानसभा से पारित कराया गया था। राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन गया। सरकार ने 25 फरवरी, 2020 को इसकी अधिसूचना जारी कर बोर्ड का गठन कर दिया था। बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री और धर्मस्व व संस्कृति मंत्री इसके उपाध्यक्ष बनाए गए। गढ़वाल मंडलायुक्त रविनाथ रमन को बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद सौंपा गया। मुख्य सचिव समेत कई नौकरशाह इसके सदस्य बनाए गए। टिहरी रियासत के राजपरिवार का एक सदस्य, हिंदू धर्म मानने वाले तीन सांसद व छह विधायक इसमें बतौर सदस्य नामित करने का प्रावधान किया गया। इसके अतिरिक्त चार दानदाता, हिंदू धर्म के धार्मिक मामलों का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों, पुजारी और वंशानुगत पुजारियों के तीन प्रतिनिधियों को भी बोर्ड में जगह दी गई। देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के दायरे में चार धाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और इनसे जुड़े मंदिरों समेत कुल 51 मंदिर लाए गए। बोर्ड के माध्यम से इन मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने की मंशा थी।
सरकार की ओर से दावा किया गया कि चारधाम यात्रा में उमड़ने वाले तीर्थयात्रियों की भीड़ और चारधामों में व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने के लिए यह कानून लाया जा रहा है। लेकिन, चारधाम से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक हकूक धारियों ने इस कानून का विरोध करना शुरू कर दिया। सड़क से लेकर न्यायालय तक इस कानून को रद करने का जोर लगाया गया। तीर्थ पुरोहितों ने इस मामलें में कई बार धरना प्रदर्शन भी किया। लेकिन, सरकार अपने फैसले पर अडिग रही। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया, तीर्थ पुरोहितों के विरोध को देखते हुए तीरथ सिंह रावत ने इस कानून को रद करने का आश्वासन दिया लेकिन उन्हें कुल चार महीने से कुछ कम दिनों का कार्यकाल ही नसीब हो सका लिहाजा वह इस कानून पर कोई फैसला नहीं ले सके। उसके बाद बने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तीर्थ पुरोहितों के भारी विरोध के बाद तब 30 नवंबर 2021 को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस फैसले को रद कर दिया।
मुख्यमंत्री बनते ही पुष्कर सिंह धामी ने इस कानून को रद करने की मंशा साफ कर दी थी। लिहाजा, जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की। रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए बनाई तीन कैबिनेट मंत्रियों सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल व स्वामी यतीश्वरानंद की मंत्रिमंडलीय उपसमिति की संस्तुति पर यह कानून रद करने की घोषणा की। 2022 में भाजपा की सत्ता में वापसी हुई और पुष्कर सिंह धामी फिर मुख्यमंत्री बने। दो साल तक चारधाम यात्रा में भारी भीड़ तो उमड़ी लेकिन स्थिति नियंत्रण में बनी रही। लेकिन, 2024 में जब चारधाम यात्रा शुरू हुई तो भारी भीड़ ने चारधाम यात्रा व्यवस्थाओं की पोल खोल दी। आलम यह था कि तीर्थयात्रियों को 10 किमी के सफल के लिए दस-दस घंटे वाहनों में गुजारने पड़े। अव्यवस्थाओं की खबरें जब सामने आने लगी तो सरकार ने भी आनन फानन में यात्रा अव्यवस्थाओं की खबरों को प्रकाशित करने वाले पत्रकारों और व्लॉगरों पर कानूनी कार्रवाई का आदेश जारी करना पड़ा।
लोकसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त राज्य के पर्यटन तीर्थाटन मंत्री सतपाल महाराज ने चारधामों में उमड़ती भारी भीड़ को देखते हुए शिगूफा छोड़ा कि राज्य सरकार जल्द ही चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाएगी तो लोकसभा चुनाव को लेकर दिल्ली समेत अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार में जुटे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी सोमवार को चारधाम यात्रा प्राधिकारण पर अपनी मौखिक सहमति जता दी।
इसके बाद से ही सवाल उठने लगे हैं कि जिन व्यवस्थाओं की निगरानी, समन्वय, जवाबदेही के लिए देवस्थानम् बोर्ड बनाया गया था उसे रद करने के बाद फिर क्यों चारधाम यात्रा प्राधिकरण बनाने की जरूरत आन पड़ी।
हालांकि, सरकार ने दावा किया है कि चारधाम यात्रा प्राधिकरण केवल यात्रा व्यवस्था, पर्यटन को लेकर फैसले लेगा जबकि देवस्थानम् मंदिरों के प्रबंधन को लेकर कानून था। हालांकि, प्राधिकरण का दायरा सिर्फ यात्रा व्यवस्थाओं को लेकर है तो फिर इसमें चारधामों का आना भी लाजमी है क्योंकि आखिरी मंजिल तो चारधाम ही हैं जहां व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
राज्य सरकार के प्राधिकरण के बाद मंदिरों और हक हकूकधारियों के हितों में कितना दखल होता है इसके लेकर फिलहाल असमजंस की स्थिति बनी हुई है। गंगोत्री धाम के रावत रजनीकांत सेमवाल कहते हैं कि प्राधिकरण की बाते मौखिक तौर पर सुनी जा रही है लेकिन इसका मसौदा क्या होगा उस पर निर्भर करता है। वह कहते हैं कि अगर पुरोहितों, धार्मिक संस्थानों और हक हकूकधारियों हितों को क्षति पहुंचाए बगैर सरकार यह फैसला लेती है तो इसका स्वागत है क्योंकि पुरोहितों और हक हकूकधारियों की बदौलत ही धामों में व्यवस्थाएं पटरी पर है जबकि यात्रा पड़ावों की तस्वीरें और वीडियों यात्रा व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने की कहानी कह रहे हैं। रजनीकांत सेमवाल कहते हैं कि सिर्फ शासन प्रशासन ही मुस्तैदी से काम करे और यात्रा पड़ावों में व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने के लिए मजबूत एसओपी बनाए तो अव्यवस्थाओं वाली स्थिति कभी नहीं आ सकती है। वहीं यमुनोत्री धाम के रावल पीपी उनियाल कहते हैं कि सरकार कोई भी फैसला ले बस पुरोहितों हक हकूकधारियों और धर्म आस्था से कोई खिलवाड़ न हो यह सुनिश्चित करें। वह कहते हैं कि जब यात्राओं के लिए इतनी सुविधाएं नहीं थी उससे पहले से ही यात्राओं के सफल संचालन में पुरोहित हक हकूकधारी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं लेकिन अब इतने बड़े तंत्र के बावजूद व्यवस्थाएं बनाने के लिए अलग संस्था का गठन करना पड़ रहा है तो यहां सरकार को सोचने की जरूरत है।

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