जयंती विशेष : भीमा को बाबा साहेब बनाने वाली रमाबाई
-बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की पत्नी रमाबाई की आज जयंती, भीमराव अंबेडकर को मुक्कमल पहचान देने का श्रेय जाता है रमाबाई को
-बाबा साहेब के लिए खुद लड़ती रही पारिवारिक जिम्मेदारियों से, दलित पिछड़ों को दे गई मजबूत आवाज
पेन प्वाइंट, देहरादून। सब जानते हैं कि देश के संविधान निर्माण के साथ ही वंचितों को उनके अधिकार दिलवाने में डॉ. भीमराव आंबेडकर का क्या योगदान है। उन्हें अपनी जिंदगी में सब कुछ मानने वाले देश दुनिया में करोड़ों मिल जाएंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हाशिए के समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर अपनी सफलताओं और खुद के अस्तित्व के लिए रामाबाई आंबेडकर को श्रेय दिया करते थे। अपनी किताब ‘थॉट आफ पाकिस्तान’ में बाबा साहेब ने साफ किया कि अगर रमाबाई आंबेडकर न होती तो गांव का दलित भीमा कभी भीमराव आंबेडकर न बन पाता।
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की पत्नी रमाबाई अंबेडकर की आज जंयती है। रमाबाई भीमराव अंबेडकर का जन्म 7 फरवरी 1898 को एक गरीब दलित परिवार में हुआ था।। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव दाभोल में जन्मीं रमाबाई अंबेडर को रमई या माता राम भी कहा जाता है। बाबासाहेब का जीवन रमाबाई से बहुत प्रभावित था। बाबा साहेब को उच्च शिक्षा के लिए विलायत जाने को प्रेरित करने के साथ ही उनकी गैर मौजूदगी में मुफलिसी में परिवार का भरण पोषण के साथ ही यह सुनिश्चित करना कि उनकी गरीबी की खबर बाबा साहेब तक न पहुंचे ताकि उनकी पढ़ाई में कोई अवरोध न आए। सही मायने में रामाबाई सिर्फ ‘मदर इंडिया’ ही नहीं बल्कि एक ऐसी पत्नी थी जो अर्धांगिनी जैसे शब्द को पूरा करती है। 7 फरवरी 1898 में जन्मीं रमाबाई भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम भीकू धात्रे और माता का नाम रुक्मिणी था। उनके पिता कुली का काम करते थे और अपने परिवार का पालन पोषण बड़ी मुश्किल से कर पाते थे। रमाबाई के पिता दाभोल बंदरगाह से मछली की टोकरी को बाजार तक ढोकर परिवार की आजीविका चलाते थे। 5 साल की उम्र से पहले ही रमाबाई ने अपने माता पिता को खो दिया। उनके देख रेख की जिम्मेदारी उनके मामा के कंधे पर आ गई। उनके मामा उन्हें और उनके भाई बहनों को मुंबई लेकर आ गए और पालन पोषण किया।
महज 9 वर्ष की उम्र में हुआ विवाह
1906 में भायखला बाजार में बाबासाहेब आंबेडकर से उनकी 9 साल की उम्र में शादी की गई। रमाबाई अपने पति भीमराव आंबेडकर को प्यार से साहेब कहकर बुलाती थीं और पति आंबेडकर उनको रामू कहते थे। रमाबाई ने आंबेडकर की महत्वाकांक्षाओं और योग्यता पर विश्वास जताया और उसे पूरा समर्थन दिया। रमाबाई ने उन्हें विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। जब बाबा साहेब अपनी पढ़ाई के लिए विदेश में थे, तो उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्हें अपने लक्ष्यों को पूरा करने से कभी नहीं रोका। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने इसकी भनक तक बाबा साहेब आंबेडकर को नहीं लगने दीं।
बेहद कठिनाईयों का सामना किया
बाबासाहेब जब विदेश में थे, तो भारत में रमाबाई को काफी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। भीमराव आंबेडकर और रमाबाई की एक बेटी (इंदु) और चार बेटे (यशवंत, गंगाधर, रमेश और राजरत्न) थे, लेकिन उनके चार बच्चों की मौत हो गई। उनके सबसे बड़े बेटे यशवंत एकमात्र जिंदा बचे। लंबी बीमारी के बाद रमाबाई अम्बेडकर का 26 मई 1935 को निधन हो गया। जब उनका निधन हुआ, तो भीमराव अंबेडकर और रमाबाई की शादी के 29 साल हुए थे। यहां तक कि उनके निधन के दौरान भीमराव आंबेडकर दिल्ली में संविधान मामलों की एक महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा ले रहे थे। रमाबाई के निधन से वह विचलित तो हुए लेकिन उन्होंने बैठक पूरी की और उसके बाद वह उनके अंतिम संस्कार के लिए रवाना हुए। रमाबाई को बाबा साहेब अपनी जिंदगी की प्रेरणा मानते थे। 1940 में जब उन्होंने पाकिस्तान निर्माण पर अपनी बेहद चर्चित किताब थॉट आफ पाकिस्तान लिखी तो उन्होंने रमाबाई के बारे में विस्तार से लिखा। उन्होंने लिखा कि अगर रमाबाई न होती तो भीमा कभी भीमराव आंबेडकर न बन पाता।