Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • अबीर गुलाल के साथ गीत संगीत के रंग बिखेरती है कुमाउंनी होली

अबीर गुलाल के साथ गीत संगीत के रंग बिखेरती है कुमाउंनी होली

Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड में होली की बात करें तो कुमाऊं की होली देश दुनिया में खास पहचान रखती है। होली का उल्लास यहां अबीर गुलाल के साथ मिट्टी की सोंधी खुशबू लिये लोकगीतों के साथ परवान चढ़ता है। अनूठी संस्कृति का यह जीवंत स्वरूप तीन तरह तीन तरह की होली में दिखता है- – बैठी होली, खड़ी होली और महिलाओं की होली।
आम तौर पर बैठी होली हिंदू पंचांग के पौष माह से शुरू हो जाती है। जिसमें गीत और संगीत की छटा बिखेरी जाती है। ज्यादातर शहरी परिवेश में इस होली का आयोजन किया जाता है। लोगों के समूह किसी एक जंगह एकत्र होकर होली गीत गाते हैं, जिसमें शास्त्रीय धुनों पर गीत गाने की परंपरा है। बसंत पंचमी के बाद संगीत के ये सुर उच्च सप्तक में बदल जाते हैं। माना जाता है कि उन्नीसवीं सदी के आस पास बैठी होली की यह परंपरा है। अल्मोड़ा में द हुक्का क्लब जैसी स्थानीय सांस्कृतिक संस्थाएं इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। जहां पौष महीने के पहले रविवार से लेकर फागुन की पूर्णिमा तक, लोग गीत गाने के लिए एक साथ आते हैं और होली समारोह के इस अनोखे रूप का आनंद लेते हैं।

खड़ी होली- आम तौर पर ग्रामीण इलाकों में मनाई जाती है। जिसमें आम लोगों की भागीदारी बढ़ चढ़कर होती है। खड़ी होली पर संगीत और गीत फाल्गुन एकादशी के दिन पैय्यां यानी पदम पेड़ की शाखा के चारों ओर कपड़े का एक टुकड़ा बांधने और रंग लगाने की रस्म के साथ शुरू होते हैं और पूर्णिमा के अगले दिन तक जारी रहते हैं।

खड़ी होली के गीत मुख्य तौर पर पुरुष वर्ग द्वारा गाए जाते हैं। पुरुष एक घेरे में इकट्ठा होते हैं और ये गीत गाते हैं। उनकी पदगति और हाथ गीत की लय के साथ तालमेल बिठाते हैं। इन गायकों को होल्यार कहा जाता है। सफेद रंग के कुर्ता-पायजामा पहने और टोपी पहने होल्यार एक घर से दूसरे घर जाते हैं और ये गीत गाते हैं। मंजीरा और ढोलक बजाते हुए तालवादक नाचते श्होल्यारों के घेरे के बीच रहते हैं।

महिलाओं की होली मनाने की परंपरा कुमाऊं के कुछ हिस्सों में है। इसमें भी गीत और संगीत के साथ पकवानों का खास महत्व है। कहा जा सकता है कि महिलाओं की होली ये गाने बैठी होली और खड़ी होली शैलियों का मेल है। महिलाओं द्वारा ये होली उत्सव होली से एक दिन पहले एकादशी से शुरू होता है। घर और खेत के कामकाज निपटाने के बाद बाद महिलाएं उत्साह के साथ बैठी होली में भाग लेती हैं। इन होली गीतों में आमतौर पर हास परिहास भी खूब है। जिनमें आस पास के समाज की महत्वपूर्ण घटनाओं और यहां तक कि राजनीति पर भी व्यंग कसे जाते हैं।

कुमाउंनी होली की परंपरा में ब्रज और अवधी का प्रभाव साफ तौर पर दिखता है। होली का त्योहार, उत्तर प्रदेश के ब्रज-अवध में उत्पन्न होकर, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में फैल गया और धीरे-धीरे स्थानीय स्वादों और प्रभावों को आत्मसात करना शुरू कर दिया, जिसने इसे एक अलग रूप दिया है। समय के साथ, लोक संस्कृति और विद्या त्योहार की भावना में सहजता से मिश्रित हो गईं। क्षेत्रीय बारीकियों से ओत-प्रोत होली का यह विशिष्ट रूप आज कुमाऊँ की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत है।

 

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required