कानूनी तकाजा : वैध-अवैध निर्माण और साम्प्रदायिक नजरिया ?
PEN POINT, देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में अवैध निर्माण को लेकर खूब हो-हल्ला मचा। इस पर सोशल मीडिया से लेकर प्रदेश के सियासी मैदान में भी खूब हलचल मचाई। राज्य के सीएम तक ने इस पर बयान जारी किया। लेकिन कानूनी नजरिये से कोई भी बात स्पष्ट तौर पर किसी भी जिम्मेदार नेता के मुंह से नहीं निकली। इस पर ज्यादा दिलचस्पी राजनीतिक लाभ और नुकसान को देखते हुए की गयी। इसके बात जब बात बहुत ज्यादा सियासी होती दिखी तो वन विभाग ने जंगलों में अवैध धार्मिक निर्माण को लेकर सर्वे तक करवाया। लेकिन इस सर्वे की कोई स्पष्ट रिपोर्ट अब तक पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाई है। मामले में मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अपनाते हुए ऐसे लैंड जिहाद जैसे शब्दों का स्पष्ट प्रयोग करते हुए अवैध निर्माण पर कार्रवाई के निर्देश दिए। लेकिन अब जो खबर निकलकर आ रही है उसके मुताबिक विभाग के शीर्ष अफसरों ने तय कर लिया है कि ये अब ऐसे विभागीय अफसरों को चिन्हित किया जा रहा है, जिनके कार्यकाल में अवैध धार्मिक निर्माण करवाया गया।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के रिजर्व फारेस्ट इलाकों में एक धर्म विशेष के पूजा स्थल मिलने से पिछले दिनों उत्तराखंड की सियासत खासी गर्म दिखाई दी। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने तो सीधे तौर पर अधिकारियों को उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी जारी किए थे। इन हालातों को गंभीर मानते हुए वन विभाग ने आईएफएस अधिकारी डॉ. पराग मधुकर धकाते को अवैध धार्मिक निर्माण पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए नोडल अधिकारी बनाया है। हालांकि अभी इस पर प्रदेशभर की रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
क्योंकि इस पूरे मामले में सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिरकार जंगलों के अंदर अवैध निर्माण कैसे कर दिए गए। इसी को लेकर फिलहाल वन विभाग तीन तरह से काम कर रहा है इसमें पहला प्रदेश भर से अवैध धार्मिक निर्माण के असल आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। जिसके लिए नोडल अधिकारी तैनात किया गया है। दूसरा ख़ास कर ऐसे अवैध धार्मिक निर्माणों पर निगरानी का काम किया जाएगा। जिसके लिए पहली बार उत्तराखंड वन विभाग राज्य के संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन के जरिए निगरानी करेगा। जंगलों में ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन की व्यवस्था की गई है। जिसमें अब आसमान से ऐसे क्षेत्रों की निगरानी की जा सकेगी।
विभाग की तरफ से इस मामले में तीसरा प्रयास सेटेलाइट मैपिंग के जरिए अवैध धार्मिक निर्माण के समय को पता लगाना भी है। इसके जरिए अब यह पता चल पाएगा कि कौन सा निर्माण किस समय किया गया था। खास बात यह है कि इसके जरिए उस दौरान उस वन क्षेत्र में तैनात अधिकारी का भी पता चल सकेगा और ऐसे जिम्मेदार अधिकारियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकेगी। बता दें कि राज्य में फिलहाल वन विभाग की तरफ से जो सर्वे किया गया था उससे कहीं ज्यादा अवैध धार्मिक निर्माण वन क्षेत्रों में होने की बात कही जा रही है।
इस पूरे मामले में अब देखना यह होगा कि धार्मिक नजरिये से किए गए अवैध निर्माण वन भूमि पर स्वामित्व ज़माने के मकसद से किये गए या किसी हिडेन एजेंडे के तहत ? जैसी धारणा बनाने की कोशिशें हो रही हैं वह कानूनी कम और सियासी ज्यादा लग रही हैं।
वन विशेषज्ञों की माने तो :
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 80- ए के अवलोकन से बिल्कुल स्पष्ट है कि उसके अन्तर्गत वन भूमि पर अवैध कब्जे को हटाने व अन्य कार्यवाही अभियोजन की कार्यवाही के समानान्तर की जा सकती है। उक्त धारा के अन्तर्गत की जाने वाली कार्यवाही में अधिनियम के किसी अन्य उपबंध के अधीन की जाने वाली कोई कार्यवाही बाधा नहीं है।
भारतीय वन अधिनियम 1927 –
धारा 26 ज (एच) के अनुसार:-
‘‘खेती या अन्य प्रयोजन के लिये किसी आरक्षित वन की सफाई करता है,
या तोडता है या काष्त करता है या अन्य विधि से काष्त करने का प्रयास करता है।
धारा 26 च के अनुसार:-
‘‘किसी वृक्ष को काटेगा, वृक्ष के सुखने के उद्देष्य से उसके चारों ओर
घाव बनायेगा, छांटेगा, छेवेगा या उसे जलाएगा, या
उसकी छाल उतारेगा, या पत्ती तोडेगा, या उसे अन्यथा नुकसान पहुँचाएगा या
किसी अन्य वनोपज को नुकसान पहुँचाऐगा।
दण्ड:- वन को नुकसान पहॅुचाने के कारण, ऐसे प्रतिकार के अतिरिक्त जिसका
संदाय किया जाना, सिद्ध दोष करने वाला न्यायालय निर्दिष्ट करें, ऐसी अवधि के
कारावास से जो एक वर्ष तक हो सकेगा या जुर्माना से जो पन्द्रह हजार रूपये तक
हो सकेगा या दोनो से दंडित किया जा सकेगा।