मायावती: भाजपा के साथ अघोषित गठबंधन की साथी
– जयललिता बनने से डर कर भाजपा के साथ अघोषित गठबंधन में बहनजी
– 2019 में 14 सौ करोड़ घपले के चक्कर में पड़े ईडी के छापे के बाद से नेपथ्य में गई बहनजी
PEN POINT, DEHRADUN : तमिलनाडु में बेहद ताकतवर रही जयललिता के नशेब और फराज की गवाह पूरी दुनिया रही है। लेकिन, जब उनके उतराव का वक्त था तो पूरी दुनिया गवाह बनी कि कैसे एक दक्षिण भारत के बड़े राज्य की मुख्यमंत्री जेल से अंदर बाहर आने के बाद आखिरकार दम तोड़ गई। यह कहानी आज जयललीता की नहीं बल्कि जयललिता से पहले भारतीय राजनीति में बेहद प्रसिद्ध रही मायावती की है।
2019 में तमाम विपक्षी दल आम चुनाव की तैयारियों में जुट गए थे। 2014 में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद ज्यादातर विपक्षी दल एक साथ आकर भाजपा से मुकाबले की तैयारी कर रहे थे। अचानक 31 जनवरी 2019 को ईडी ने लखनऊ समेत गाजियाबाद, नोएडा में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री, बसपा सुप्रीमो मायावती और उनके नजदीकी लोगांे के ठिकानों पर छापे मारे। ईडी ने यह कार्रवाई कथित रूप से 1400 करोड़ रूपए के घोटाले के आरोप में की थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने बड़े पैमाने पर स्मारकों का निर्माण किया था। 1400 करोड़ रूपए की लागत से बने इन निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था।
ईडी की इस कार्रवाई के कुछ दिनों बाद ही मायावती ने किसी भी तरह के चुनावी गठबंधन में शामिल होने से इंकार किया। उसके बाद 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया तो बसपा ने इस गठबंधन से भी किनारा कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। विधानसभा चुनाव 2017 में बसपा ने केवल एक सीट जीती। हाल ही में बसपा ने नगर निकाय चुनावों में भी मेयर पद 17 मुस्लिम प्रत्याशी उताकर भाजपा की जीत की राह आसान कर दी। रविवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे हैं तो विपक्षी दलों की ओर से उद्घाटन में राष्ट्रपति को शामिल न किए जाने के विरोध में इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया गया है। लेकिन, मायावती ने शुक्रवार को ट्वीट कर जानकारी दी कि बसपा इस उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होगी। मायावती बीते पांच सालों से यदा कदा ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखाई दी है। यहां तक कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी वह दो चुनावी रैलियों में ही मौजूद रही। ज्यादातर समसमायिक मामलों में खामोशी ओढ़ने के बाद ऐसे मामलों में अपने बयान ट्वीटर के जरिए ही दे रही है जिसमें मुख्य विपक्षी दलों को घेरा जाए।
कभी दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरी और प्रधानमंत्री तक बनने का दावा करने वाली मायावती को आखिर क्या हुआ कि पिछले पांच सालों से वह खुद ही किनारे हो गई हैं। उन पर आरोप लग रहे हैं कि वह बस अब भाजपा की बी टीम की तरह ही राजनीति कर रही हैं और उनका हर कदम तभी उठता है जब उनके कदम उठाए जाने से भाजपा को फायदा हो। हाल की चुनावी घटनाएं, उनके बयान, उनकी प्रतिक्रियाएं इसकी तस्दीक भी करते हैं।
जानकार बताते हैं कि 2019 में लोक सभा चुनाव से पहले ईडी की कार्रवाई के बाद मायावती ने यह खामोशी ओढ़ कर भाजपा के हिसाब से चलने का फैसला लिया। मायावती ने दूसरी जयललिता बनने के बजाए समझौता करने का फैसला लिया है। तमिलनाडु में अप्रत्याशित रूप से राजनीतिक उभार के बाद बेहद लोकप्रिय मुख्यमंत्री रही जय ललिता का नाम कई बड़े घोटालों में जुड़ता रहा। उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। लगातार जेल में रहने के कारण उनकी सेहत भी बुरी तरह प्रभावित हुई और 2016 में उनकी मौत हो गई। राजनीतिक रूप से जयललिता और मायावती में कई समनाताएं हैं। दोनों देश के सबसे बड़े राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। दोनों का नाम कई बड़े भ्रष्टाचार, राज्य के संसाधनों का जमकर दुरूपयोग करने में आया। हालांकि, मायावती पर भी फिजूलखर्ची के कई आरोप लगे लेकिन वह अब तक सुरक्षित रही हैं। जबकि, जयललिता को मुख्यमंत्री पद से हटने से कई बार जेल यात्रा करने से लेकर 100 करोड़ का भारी भरकम जुर्माना भी चुकाना पड़ा।
आमतौर पर यह धारणा बन चुकी है कि 67 वर्षीय मायावती ऐसे किसी भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है जो उनके लिए मुसीबत पैदा कर दे। भाजपा का हाल का शासन विपक्षी नेताओं के लिए खिलाफ ईडी, सीबीआई के छापे, जांच, जेल भिजवाने के लिए चर्चित रहा है। विपक्षी दल भाजपा पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षी नेताओं को नियंत्रित करने, परेशान करने और विपक्षी दलों को अपने साथ शामिल होने पर मजबूर करते हैं। हाल के वर्षों में कई विपक्षी दलों को केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए लंबी लंबी जांच प्रक्रिया से गुजरने के साथ ही मामूली आरोपों पर भी कई महीने जेल में गुजारने पड़े हैं।
संभव है कि इस तरह के डर की आशंका के बाद मायावती फिलहाल भाजपा के सामने हथियार डाले हुए है और भाजपा के हर उस कदम का समर्थन करती दिखती है जिसके खिलाफ ज्यादातर विपक्षी दल खड़े होते हैं या फिर ऐसे मौकों पर मायावती खामोशी अख्तियार कर लेती हैं।