मिशन आदित्य: चंद्रयान की कामयाबी के बाद अब सूरज पर इसरो की निगाह
Pen Point, Dehradun : चंद्रयान 3 की सफलता से पूरे देश में खुशी और उत्साह का माहौल है। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञानियों की मेहनत और सोच ने भारत को यह बड़ी कामयाबी दिलाई है। भारत का यह 124 वां अंतरिक्ष मिशन था। इसके साथ ही उस पल को भी याद किया जा रहा है जब 19 अप्रैल 1975 को भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में भेजा गया था। अब जब चंद्रयान चांद पर अपना काम शुरू कर चुका है। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञानियों की नजर अब सूरज पर भी है। इसरो के भविष्य के अभियान इस बात की तस्दीक करते हैं कि भविष्य में अंतरिक्ष भारत की मौजूदगी काफी मजबूत होगी। इस दिशा में इसरो के तीन आगामी अंतरिक्ष मिशन काफी अहम माने जा रहे हैं।
आदित्य एल1- सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा। जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को सूर्य को बिना किसी आच्छादन/ग्रहण के लगातार देख सकेगा। यह वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को समझने में कारगर साबित होगा। अंतरिक्ष यान वैद्युत-चुम्बकीय कण और चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण भी करेगा। इस तरह सौर गतिकी के प्रसार और प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन के लिये यह मिशन महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
एक्सपोसैट- उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए यह भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन है। अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक ले जाएगा। विभिन्न खगोलीय स्रोतों जैसे ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय आकाशगांगेय नाभिक, पल्सर पवन निहारिका आदि को समझना जटिल होता है। एक्सपोसैट इस खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन प्रक्रियाओं को समझने की दिशा में काम करेगा। इसरो के अनुसार यह भारतीय विज्ञान समुदाय द्वारा एक्सपोसैट के अनुसंधान की प्रमुख दिशा होगी।
निसार– नासा और इसरो संयुक्त रूप से इस अंतरिक्ष वेधशाला को विकसित कर रहे हैं। यह 12 दिनों में पूरे ग्लोब का मानचित्र तैयार करेगा और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ के द्रव्यमान, वनस्पति बायोमास, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भूजल और भूकंप, सूनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों को समझने के लिए स्थानिक और अस्थायी रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा। एन.आई.सार यह एल और एस दोहरे बैंड रडार (एस.ए.आर.) के साथ होगा, जो उच्च तकनीक से संचालित होगा । एकीकृत रडार इंस्ट्रूमेंट स्ट्रक्चर (आई.आर.आई.एस.) पर लगे उपकरण और अंतरिक्ष यान को एक साथ मिलाकर वेधशाला कहा जाता है। जेट प्रणोदन लैब् और इसरो इस वेधशाला को साकार कर रहे हैं। यह न केवल संबंधित राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि संबंधित डेटा को प्रोत्साहित करने वाले अध्ययन के साथ विज्ञान समुदाय के लिये लाभकारी होगा।
गगनयान
चांद पर टूरिस्ट पहुंचाने की दिशा में गगनयान एक अहम मिशन है। इस परियोजना पर भारत नासा के साथ काम कर रहा है। जिसमें 3 सदस्यों के चालक दल का 3 दिनों का मिशन होगा। उसके बाद इस दल को 400 कि.मी. की कक्षा में प्रक्षेपित करके और उन्हें भारतीय समुद्री जल में उतारा जाएगा। पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी के इस प्रयोग में मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन की परिकल्पना की गई है। परियोजना को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के पास उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीकों के साथ-साथ आंतरिक विशेषज्ञता, भारतीय उद्योग के अनुभव, भारतीय शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों की बौद्धिक क्षमताओं के साथ तैयार किया जा रहा है।
Source- ISRO website