खरीफ फसलों पर MSP बढ़ा, पर किसान बोले – “घाटे का सौदा है सरकार!”
Pen Point, Dehradun : दिल्ली से लेकर गांव के खेतों तक उठ रहा सवाल – क्या वाकई बढ़ा MSP, या फिर बस आंकड़ों का खेल है? 28 मई को केंद्र सरकार ने खरीफ सीजन 2025-26 के लिए 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी का ऐलान किया। दावा किया गया कि किसानों को लागत से अधिक दाम दिलाने के लिए यह फैसला लिया गया है। लेकिन विशेषज्ञ और किसान दोनों कह रहे हैं – यह MSP किसानों की मेहनत और लागत का अपमान है।
किस फसल का कितना बढ़ा दाम?
सरकार के मुताबिक सबसे ज्यादा बढ़ोतरी नाइजरसीड (रामतिल) में की गई है – 820 रुपए प्रति क्विंटल। इसके बाद रागी में 596 रुपए, कपास में 589 रुपए, और तिल में 579 रुपए की बढ़ोतरी हुई है।
बाकी प्रमुख फसलों की बात करें तो:
धान (सामान्य किस्म) – 2369 रु. (पिछले साल 2300 रु.)
ज्वार (हाइब्रिड) – 3699 रु. (पहले 3371 रु.)
बाजरा – 2775 रु.
मक्का – 2400 रु.
अरहर (तूर) – 8000 रु.
मूंग – 8768 रु.
उड़द – 7800 रु.
सोयाबीन – 5328 रु.
मूंगफली – 7263 रु.
सूरजमुखी – 7721 रु.
तिल – 9846 रु.
कपास (मीडियम स्टेपल) – 7710 रु.
कपास (लॉन्ग स्टेपल) – 8110 रु.
कागज पर MSP बढ़ा, लेकिन जेब में आया घाटा!
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठरके मुताबिक- “इस बार भी एमएसपी की घोषणा में किसानों की “वास्तविक लागत” यानी C2 लागत को नजरअंदाज किया गया है। धान की उत्पादन लागत 3135 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि सरकार ने इसका MSP 2369 रुपए रखा है – यानी हर क्विंटल पर किसान को 766 रुपए का घाटा!”
यही हाल दूसरी फसलों का भी है – जैसे:
ज्वार – 1110 रु. घाटा
बाजरा – 539 रु. घाटा
अरहर – 2259 रु. घाटा
मूंग – 2446 रु. घाटा
सोयाबीन – 1629 रु. घाटा
कपास – 2192 से 2366 रु. घाटा
सरकार किस आधार पर तय करती है MSP?
कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (CACP) तीन तरह की लागत का हिसाब लगाता है:
A2 लागत – बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी, डीजल जैसी सीधी लागतें
A2+FL – A2 में परिवार के श्रम का मूल्य जोड़ दिया जाता है
C2 लागत – A2+FL के साथ अपनी ज़मीन का किराया और उपकरणों पर ब्याज भी जोड़ा जाता है
स्वामीनाथन आयोग ने सुझाव दिया था कि MSP, C2 लागत से 50% ज्यादा होनी चाहिए। लेकिन सरकार A2+FL के आधार पर MSP तय करती है, जिससे किसान की जेब में फायदा नहीं, नुकसान पहुंचता है।
क्या कहते हैं किसान
किसानों का मानना है कि हमारे लिए MSP नहीं, मज़बूरी है! कई किसान संगठन कह चुके हैं कि जब तक MSP को कानूनी गारंटी नहीं दी जाएगी और C2 लागत के आधार पर इसकी गणना नहीं होगी, तब तक यह सिर्फ चुनावी जुमला बना रहेगा। एमएसपी बढ़ा जरूर है, मगर इतना नहीं कि किसान की मुस्कान लौट आए। ऐसे में कुछ सवाल आज भी मौजूं हैं- क्या एमएसपी सिर्फ एक आंकड़ा है, या किसानों की जिंदगी का सवाल? क्या सरकार खेती को फायदे का धंधा बनाएगी या फिर किसान घाटे में डूबते रहेंगे? देश का पेट भरने वाले हाथ आज खुद भूखे क्यों हैं? इन सवालों का जवाब किसान की फसलों पर निर्भर लोगों और सरकारों दोनों को ही सोचना होगा।