रहस्य : कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य कैसे बनी गंगोलीहाट की हाट कालिका !
Pen Point (Pushkar Rawat): पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट का इलाका हर कदम पर रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। पाताल भुवनेश्वर गुफा समेत अनेक प्राचीन गुफा और कुण्ड हर किसी को अचरज में डाल देते है। लेकिन यहां सबसे खास जगह है हाट कालिका नाम से विख्यात महाकाली मंदिर, जिससे जुड़ी किंवदंतियां और रहस्य ऐसा गहरा तिलिस्म रचते हैं, कि कोई भी शख्स देवी के चरणों में माथा टेके बिना यहां से लौट नहीं सकता। भारतीय सेना की कुमाउं रेजीमेंट का युद्धघोष कालिका माता की जै, इस मंदिर की महत्ता को ही बतलाता है।
गंगोलीहाट बाजार से करीब एक किलोमीटर दूर देवदार के जंगल के बीच महाकाली मंदिर है। देवदार के पेड़ों से घिरे मंदिर परिसर में मुख्य मार्ग पर टाईल्स, रेलिंग, बैठने की जगह और छोटे बड़े कई निर्माण हुए हैं। जिन पर कुमाऊं रेजीमेंट के उन अफसरों के नाम खुदे हुए हैं जिन्होंने ये निर्माण कार्य करवाए।
दरअसल, हाट कालिका देवी कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य कैसे बनी इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक बटालियन पानी के जहाज पर कहीं कूच कर रही थी। इसी दौरान जहाज में खराबी आग गई और वह डूबने लगा। मौत नजदीक देख बटालियन में शामिल जवान अपने घर परिवार को याद करने लगे। इसी दौरान पिथौरागढ़ के रहने वाले एक जवान ने मदद के लिये हाट कालिका मां का स्मरण किया, देखते ही देखते जहाज किनारे पर लगकर डूबने से बच गया। तभी से देवी रेजीमेंट की आराध्य बन गई और आज भी इस रेजीमेंट का कोई भी काम देवी पूजा के बिना अधूरा है। पिथौरागढ़ में तैनात कुमाऊं रेजीमेंट के ब्रिगेड की तरफ से आज भी नियमित पूजा अर्चना की जाती है।
पुराणों में भी है उल्लेख
महाकाली मंदिर के पुजारी भीम सिंह रावल के मुताबिक चंड और मुंड राक्षसों का संहार करने के बाद मां काली आराम करने के लिये यहां आई थी। लेकिन देवी मां के प्रकोप और तेज की वजह से यह जगह निर्जन हो गई थी। इस प्रसंग के अनुसार उस दौरान देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थीं और जो भी व्यक्ति उस आवाज को सुनता था, उसकी मृत्यु हो जाती थी। इसे ही इस मंदिर में प्रचलित नर बलि से जोडा जाता है,
रावल बताते हैं कि वह आवाज सुनने वाला खुद ब खुद देवी को अपनी बलि दे आता था, यहां पास में मेहता लोगों का गांव है जो लगभग खाली हो चुका था और वे लोग गांव छोड़ कर जाने लगे थे। आदि गुरु शंकराचार्य जब इस क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो उन्हें देवी के प्रकोप के बारे में बताया गया। ऐसे में आस-पास से लोग गुजरने से भी कतराते थे, फिर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने तंत्र मंत्र से देवी को शांत स्वरूप में स्थातपित किया।
महाकाली करती है यहां विश्राम
यहां एक और बात सदियों से प्रचलित है। शाम को मंदिर के पुजारी देवी के लिये एक बिस्तर लगाते हैं, जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं। पंडा भीम सिंह कहते हैं- ऐसी मान्यता है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर में अगर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। यहां पर भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपने मन की बात कहते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है।