रहस्य : उत्तरकाशी में हिटलर का वो जासूस कौन था?
Pen Point, Dehradun : जर्मनी की कमान हाथ में आने के बाद हिटलर ने लगभग पूरी दुनिया में अपना जासूसी नेटवर्क फैला दिया था। जिसमें एशिया का उच्च हिमालयी क्षेत्र भी शामिल था। हिटलर के जासूस यहां बौद्ध लामा बनकर भी रहे तो अन्य लिबासों में भी मौजूद रहे। मशहूर पर्वतारोही और लेखक हेनरिख हेरर को लेकर भी यही दावा किया जाता है कि वो भी जर्मन जासूस था। दलाई लामा को दुनियावी बातों से रूबरू करवाने वाला हेनरिख हेरर की चर्चित किताब है सेवन इयर्स इन तिब्बत। जिसमें उसने 1942 में देहरादून की जेल से तिब्बत तक पहुंचने और वहां बिताए वक्त के बारे में लिखा है। इसी नाम से एक हॉलीवुड फिल्म भी बनी है। फिल्म में हेरर की भूमिका में ब्रैड पिट हैं। भले ही पर्वतारोही और लेखक के रूप में उसे खूब ख्याति मिली हो, लेकिन कहा जाता है कि वो एक नाजी जासूस था। तिब्बत तक पहुंचने में हिटलर के नेटवर्क ने उसकी मदद की थी। उस दौर में किसी भी विदेशी का तिब्बत जाना प्रतिबंधित था। लेकिन हेरर और उनका दोस्त पीटर ऑफ़शनर किसी तरह ल्हासा तक पहुंचने में कामयाब रहे।
हेरर की कहानी के मुताबिक सन् 1939 के बसंत में पश्चिमी हिमालय के नंगा पर्वत आरोहण को एक जर्मन दल पहुंचा। ऑस्ट्रियाई हेनरिच (ब्रैड पिट) का जर्मन दल के साथ आना उस समय की वैश्विक खेमेबाजी को दर्शाता है। जब जर्मनी और ऑस्ट्रिया साथ मिलकर मित्र राष्ट्रों का विरोध कर रहे थे। नाजी स्वाभिमान को लेकर हिटलर दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में झोंकने की तैयारी में था। बहरहाल, खराब मौसम के कारण नंगा पर्वत के बेहद नजदीक पहुंचकर दल को पीछे लौटना पड़ा। वापसी हो ही रही थी कि बेस कैंप पर ब्रिटिश सैनिकों ने पूरे दल को गिरफ्तार कर लिया गया। हैरान पर्वतारोहियों को बताया गया कि दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया है और जर्मन होने के नाते तुम्हें युद्धबंदी के तौर पर पकड़ा गया है।
इस दल को देहरादून पहुंचाकर ब्रिटिश आर्मी कैंप में बंदी बनाकर रखा गया। यहां से हेनरिच ने चार मर्तबा भागने की कोशिश की। पांचवीं बार अपने दल के अन्य साथियों के साथ भागने में कामयाबी मिली। लेकिन कुछ दूर पहुंचने के बाद हेरर ने साथियों से विदा ली और अकेले ही आगे के सफर पर निकल पड़ा। फिल्म इतनी तफ़सील से उसके तिब्बत पहुंचने के रास्ते को नहीं दिखाती। लेकिन किताब में सबकुछ मौजूद है। मसूरी से अग्लाड़ घाटी और वहां से नाग टिब्बा होते हुए वह भागीरथी घाटी में घुसा। उत्तरकाशी में उसकी मुलाकात अपने दल के मुखिया पीटर ऑफ्सनर से हो जाती है। दो भागे हुए कैदी, दुर्गम हिमालयी इलाका, फटेहाल और भूख प्यास से बेहाल तिब्बत तक कैसे पहुंचे। इस बात पर सवाल उठता है। सेवन इयर्स इन तिब्बत में हेनरिख उत्तरकाशी में अपने एक मददगार मित्र से मिलने की बात लिखते हैं। जिसका इशारा वो सिर्फ एक बार देते हैं।
बिल एटकिन अपने यात्रा संस्मरण गंगा महारानी में बताते हैं कि एक पर्वतारोही और लेखक के रूप में बहुचर्चित हेरर के करियर के आखिरी वर्षाें में उनके राज खुलने लगे। इस संस्मरण में ही हेरर के नाजी अतीत पर रोशनी डालते हुए एटकिन के मुताबिक उत्तरकाशी में उसका दोस्त कौन था? किसने हेरर और ऑफ़शनर को सोना दिया था? जिसकी मदद से वह ल्हासा पहुंच पाए? उन्हें यह बात जर्मनी में ही बता दी गई होगी कि सोने के बदले कोई भी उन्हें दुनिया की छत तक पहुंचा देगा। जिस तरह अंग्रेजों ने ल्हासा जाने वाले रास्ते में जानकारी इकट्ठा करने के लिए पंडित जासूसों को लगाया था, उसी तरह जर्मनी ने एशिया के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अंग्रेजों की हरकतों पर नजर रखने के लिए ऐसे जासूस तैनात किये थे।
हिमालय अभेद्य है ऐसा विश्वास करने वाले लोगों को यह जानकार कैसा लगेगा कि हेरर ने केवल कपड़े के जूते पहनकर नेलांग दर्रे को पार किया था। एटकिन यह भी मानते हैं कि पूरे रास्ते और ल्हासा में अपनी पहल और दृढ़ संकल्प का बखान करते हुए हेरर ने अपने साथी आफ्शनर के साथ अन्याय किया जो विलक्षण प्रतिभा का धनी था। अध्येता प्रवृत्ति के इस व्यक्ति को कोई परवाह नहीं थी और उसने हेरर को वाहवाही लूटने दी। इससे यह बात भी पता नहीं चल पायी की दोनों जासूस हैं। लेकिन यह रहस्य आज तक बना हुआ है कि उत्तरकाशी में हिटलर को वो जासूस कौन था जो हेरर का मददगार बना।
Photo- a clip from movie Seven Years in Tibbet