सांसद रिपोर्ट 2 : दस सालों में 20 करोड़ रूपए की निधि खर्च नहीं कर सके माननीय
– प्रदेश में पिछले दस सालों में चुने गए सात लोक सभा सांसद अपने हिस्से में जारी सांसद निधि पूरी नहीं कर पाए खर्च, सांसद निधि खर्चने में सबसे फिसड्डी साबित रहे पूर्व सांसद खंडूरी
Pen Point, Dehradun : सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास योजनाओं के लिए केंद्र सरकार की ओर से सांसद निधि दी जाती है। वर्तमान में हर वर्ष 5 करोड़ यानि पांच साल के कार्यकाल में 25 करोड़ रूपए की सांसद निधि सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए खर्च करने को दी जाती है। लेकिन, पिछले एक दशक में प्रदेश के सांसद अपनी सांसद निधि खर्च करने में इतने सुस्त रहे कि उनके हिस्से के 20 करोड़ रूपए खर्च ही नहीं हो सके। अब तक पूर्व सांसद बीसी खंडूरी सबसे कम सांसद निधि खर्च करने वाले सांसद साबित हुए हैं।
पिछले दस सालों यानि 16वीं और 17वीं लोक सभा में प्रदेश की सभी पांचों संसदीय सीटों पर भाजपा काबिज हैं। टिहरी से माला राज्यलक्ष्मी शाह, हरिद्वार से रमेश पोखरियाल निशंक और अल्मोड़ा से अजय टम्टा को यह दूसरा कार्यकाल था जबकि गढ़वाल से तीरथ सिंह रावत और नैनीताल से अजय भट्ट का यह पहला कार्यकाल रहा। इससे पहले 16वीं लोकसभा में गढ़वाल संसदीय सीट से बीसी खंडूरी सांसद थे जबकि नैनीताल संसदीय सीट से भगत सिंह कोश्यारी सांसद रहे। आने वाले कुछ हफ्तों में प्रदेश की पांचों संसदीय सीटों पर मतदाता अपने सांसद चुनने वाले हैं। ऐसे में जरूरी है यह जानना कि अब तक केंद्र की भाजपा सरकार में पिछले दस सालों से लोक सभा में बैठने वाले सांसदों का काम काज कैसा रहा है। पेन प्वाइंट ने जब सांसद निधि खर्च करने के आंकड़े जुटाए तो आंकड़े हैरान करने वाले थे। प्रदेश के मतदाताओं के चुने हुए माननीय अपनी सांसद निधि खर्च करने में कंजूसी बरतते रहे हैं। साल 2014 से 2019 तक गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद रहे बीसी खंडूरी पांच सालों की पांच सालों की 25 करोड़ रूपए की सांसद निधि के सापेक्ष केवल 12 करोड़ 50 लाख रूपए ही जारी हो सके जिसमें से कार्यकाल समाप्त होने तक बीसी खंडूरी 5 करोड़ 46 लाख रूपए खर्च ही नहीं कर सके थे। यानि वह पांच सालों में सांसद निधि के 10 करोड़ रूपए ही खर्च कर सके। वहीं, 2014 में हरिद्वार से पहली बार सांसद बने रमेश पोखरियाल निशंक को 25 करोड़ की सांसद निधि के सापेक्ष 25 करोड़ जारी हो गए थे लेकिन वह 2 करोड़ 99 लाख रूपए खर्च नहीं कर सके। अपने मौजूदा कार्यकाल में भी हरिद्वार सांसद निशंक 7 करोड़ रूपए की जारी सांसद निधि में से 1 करोड़ 96 लाख रूपए खर्च नहीं कर सके हैं। वहीं, अल्मोड़ा से सांसद अजय टम्टा अपने पहले कार्यकाल में 25 करोड़ के सापेक्ष जारी 15 करोड़ रूपए की विधायक निधि में से केवल 97 लाख ही खर्च नहीं कर सके जबकि मौजूदा सत्र में वह जारी 9 करोड़ 50 लाख रूपए की सांसद निधि में से 1 करोड़ 74 लाख रूपए खर्च नहीं कर सके। टिहरी से सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह 2014-2019 के कार्यकाल में जारी 25 करोड़ रूपए की सांसद निधि से 2 करोड़ 60 लाख रूपए खर्च नहीं कर सकी जबकि मौजूदा कार्यकाल में साढ़े नौ करोड़ रूपए की जारी निधि में से वह 1 करोड़ 43 लाख रूपए खर्च नहीं कर सकी हैं। नैनीताल से 2014-2019 में सांसद रहे भगत सिंह कोश्यारी 25 करोड़ रूपए के सापेक्ष जारी 22.50 करोड़ रूपए में से सिर्फ 26 लाख रूपए ही खर्च नहीं कर सके। वहीं, इसी संसदीय सीट से मौजूदा सांसद अजय भट्ट अब तक जारी 7 करोड़ रूपए की सांसद निधि में से सिर्फ 2 लाख रूपए ही खर्च नहीं कर सके। वहीं, गढ़वाल संसदीय सीट से मौजूदा सांसद तीरथ सिंह रावत 7 करोड़ रूपए की जारी सांसद निधि में से 2 करोड़ 89 लाख रूपए खर्च नहीं कर सके।
हालांकि, सांसद निधि के पूरी तरह खर्च न होने पर एक पूर्व सांसद बताते हैं कि स्वीकृति की लंबी प्रक्रिया, धन आहरण संबंधी नियम, धनराशि जारी होने में लेट लतीफी की वजह से भी सांसद निधि पूरी तरह से खर्च होने से बच जाती है। वह बताते हैं कि निधि के खर्च करने को लेकर बने नियमों के तहत धन आवंटन करना कई बार मुश्किल हो जाता है लिहाजा विशेष मद के लिए सांसद निधि के तहत योजना स्वीकृत नहीं हो पाती है। वहीं, भाजपा से जुड़े एक नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि सांसदों तक आम कार्यकर्ताओं की पहुंच बहुत मुश्किल है और कुछ ही कार्यकर्ता अपनी योजनाओं के लिए सांसद निधि स्वीकृत करवाने में सफल हो पाते हैं। वह कहते हैं कि सांसदों का क्षेत्र में कम सक्रिय रहने के चलते आम कार्यकर्ता उन तक अपने क्षेत्र की समस्याओं के निस्तारण के लिए निधि की मांग को लेकर नहीं पहुंच पाता।
यूं तो सांसदों को पूरी कोशिश करनी चाहिए थी कि वह सांसद निधि के तहत जितनी धनराशि का प्रावधान है उसे जारी करवाकर अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यों, जन समस्याओं के निस्तारण, मूलभूत ढांचागत सुविधाओं की स्थापना व विकास में खर्च करते लेकिन मौजूदा आंकड़ों को देखकर कहा जा सकता है कि अब तक माननीय सांसद निधि को खर्च करने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं रहे हैं।