पसमांदा मुस्लिम: कौन है यह मुस्लिम जिन पर है भाजपा की नजर
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पसमांदा मुस्लिमों को भाजपा से जोड़ने की चला रहे हैं मुहिम, देश में मुस्लिमों के सबसे बड़े वोट बैंक पर है भाजपा की नजर
PEN POINT, DEHRADUN : जून महीने के आखिर में मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरा बूथ सबसे मजबूत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश के पसमांदा मुस्लिमों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा था कि वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने पसमांदा मुसलमानों को तबाह कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुस्लिमों के बारे में कोई बयान पहली बार नहीं दिया था, इससे पहले भी वह पार्टी कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों से पसमांदा मुस्लिमों के बीच जाकर उन्हें पार्टी से जोड़ने को कह चुके हैं। इन दिनों भाजपा का प्यार पसमांदा मुस्लिमों के लिए खूब उमड़ भी रहा है तो हिंदुत्व की लाइन पर चलने वाली भाजपा का लोक सभा चुनाव से ठीक पहले मुस्लिमों के खैरख्वाह बन जाने की भाजपा के समर्थकों के गले भी नहीं उतर रहा है। अमूमन मुस्लिमों को लेकर विवादित बयानों के चलते चर्चाओं में रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बीते साल अक्टूबर महीने में लखनऊ में पसमांदा मुस्लिमों के बुद्धिजीवी सम्मेलन का भव्य आयोजन करवाया। उत्तर प्रदेश में यह पहला मौका था जब भाजपा के किसी कार्यक्रम में इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिमों को दर्शक दीर्घा में देखा गया था।
इन दिनों देश की राजनीतिक चर्चाओं में एक शब्द लोगों की जुबान पर खूब चर्चित है ‘पसमांदा मुसलमान’। बीते दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के बड़े नेताओं के भाषणों से लेकर टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट में पसमांदा मुसलमानों का खूब जिक्र हो रहा है। आम धारणा यह है कि भाजपा की हिंदुत्व की विचारधारा में मुस्लिम एक विलेन की तरह हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि भी मुस्लिम विरोधी बनाकर हिंदुत्व समर्थक वोटों को एकजुट करने में भाजपा संघ को मदद भी मिली है। लेकिन, बीते दिनों से पसमांदा मुस्लिमों की चिंता सताते भाषणों, बयानों को लेकर लोगों के मन में यह जानने की उत्सुकता जरूर उठ गई है कि यह पसमांदा मुस्लिम है कौन।
पसमांदा मूल रूप से फारसी से लिया गया शब्द है। इसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबाए गए या सताए हुए हैं। भारत में रहने वाले मुसलमानों में 15 फीसदी उच्च वर्ग के माने जाते हैं। जिन्हें अशरफ कहते हैं। इनके अलावा बाकि 85 फीसदी अरजाल, अजलाफ मुस्लिम पिछड़े हैं। इन्हें पसमांदा कहा जाता है। इन मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति उच्च वर्गीय मुसलमानों से कमतर है।
भाजपा का पसमांदा मुस्लिमों पर प्यार यूं ही नहीं उमड़ पड़ा है। पसमांदा मुस्लिमों की उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश समेत 18 राज्यों में बड़ी आबादी रहती है जो इन राज्यों में एक बड़ा वोट बैंक भी है। एक अनुमान के मुताबिक पसमांदा मुस्लिम मतदाताओं के वोट देश की 100 से अधिक लोकसभा सीटों को प्रभावित करती है। अब तक यह मतदाता पारंपरिक रूप से कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का वोट बैंक माना जाता रहा है। जनसंख्या के आधार पर देखें, तो असम और बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 25-30 प्रतिशत, बिहार में करीब 17 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत, दिल्ली में भी 10-12 प्रतिशत, महाराष्ट्र में करीब 12 प्रतिशत है, केरल में 30 प्रतिशत संख्या मुस्लिम समुदाय की है। अब तक विपक्षी दलों का इस समुदाय का समर्थन मिलता रहा है लेकिन भाजपा ने मुस्लिमों में अगड़े और पिछड़े वर्ग का कार्ड खेलकर पसमांदा समुदाय के बड़े वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश भी शुरू कर दी है। देश की मुस्लिम आबादी में उच्च वर्गीय मुस्लिमों की तादात केवल 15 फीसद है जबकि पिछड़े मुस्लिमों यानि पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 85 फीसदी है। वहीं, राजनीतिक हिस्सेदारी की बात करें तो मुस्लिमों की 15 फीसदी अगड़ी जातियों को ही राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलता रहा है जबकि यह 85 फीसदी आबादी राजनीतिक प्रतिनिधित्व से दूर रही है।
क्यों हैं देश के 85 फीसद मुस्लिम पिछड़े
दक्षिण एशियाई देशों में आमतौर पर सभी मुस्लिम धर्म बदलकर मुसलमान बने हैं। इसे लेकर खूब चर्चा और विवाद भी होते रहे हैं। लेकिन वो जिस जाति और वर्ग से आए, उन्हें मुस्लिम होने के बावजूद उसी जाति या वर्ग का आज भी समझा जाता रहा है। यानि पूर्व धर्म में यदि कोई मुस्लिम कथित नीची जाति से संबंध रखता था तो मुस्लिम बनने के बाद भी उससे निची जाति का ही माना जाने लगा। जिस जातिवादी वर्ण व्यवस्था के शिकार हिंदू धर्म में दलित, पिछड़े हैं ठीक उसी तरह की समस्या से मुस्लिम धर्म भी जूझ रहा है। भारतीय मुस्लिम भी जाति आधारित व्यवस्था के शिकार हैं। हालांकि, भारतीय मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों का दावा रहता है कि मुस्लिम धर्म में जाति व्यवस्था की जगह नहीं है लेकिन भारत के मुस्लिम तीन मुख्य वर्गाे और सैकड़ों बिरादरियों में बंटे हुए हैं। जो सवर्ण या उच्च जाति के मुस्लिम हैं वो अशरफ कहे जाते हैं, इनका संबंध पश्चिम या मध्य एशिया से है, इसमें सैयद, शेख, मुगल, पठान आदि लोग आते हैं और भारत में जिन सवर्ण जातियों से लोग मुस्लिम बने, उन्हें भी उच्च वर्ग में शामिल किया गया। मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी या चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम, सैयद ब्राह्णण के तौर पर जाने जाते हैं।
कौन है मुस्लिमों में पिछड़े मुस्लिम
कुंजरे (राइन), जुलाहा (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अल्वी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवाराती), लोहार-बढ़ाई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वनगुर्जर।
भारत पाक विभाजन का भी किया था पसमांदा ने विरोध
पसमांदाओं के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई पुरानी है। पसमांदाओं को सामाजिक न्याय दिलवाने के लिए आजादी से पहले ही आंदोलन शुरू हो गए थे। उस दौरान जुलाहा (बुनकर) समुदाय से आने वाले अब्दुल कय्यूम अंसारी और मौलाना अली हुसैन असीम बिहारी की अगुवाई में शुरू हुआ यह आंदोलन भले ही पसमांदाओं के सामाजिक न्याय की मांग को लेकर था लेकिन यह आंदोलन भारत पाकिस्तान विभाजन का भी सख्त विरोधी था। पसमांदाओं ने जिन्ना के ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ का विरोध करने के लिए मोमिन कांफ्रेंस बनाकर की गई थी। इसके बाद, 1980 के दशक में, महाराष्ट्र के अखिल भारतीय मुस्लिम ओबीसी संगठन ने इस समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी। इसी के बाद महाराष्ट्र में अधिकांश पसमांदा मुस्लिमों को ओबीसी सूची में शामिल किया गया था।