Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • उत्तराखंड में सियासी उबाल- सीबीआई की आहट, मंत्रियों की बैठकें और 2027 की चुपचाप बिछती बिसात

उत्तराखंड में सियासी उबाल- सीबीआई की आहट, मंत्रियों की बैठकें और 2027 की चुपचाप बिछती बिसात

Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों एक गहरी हलचल महसूस की जा रही है, जो सतह पर भले ही बेहद शांत दिखाई दे, लेकिन भीतर ही भीतर बहुत कुछ पक रहा है। हाल ही में एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों – सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल समेत कुछ अन्य कांग्रेस मूल के नेता एकांत में बैठक करते नजर आए। यह तस्वीर सामान्य नहीं थी और न ही इसका समय।

इस बैठक के कुछ दिन बाद खबर आई कि 2016 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों से सीबीआई पूछताछ करने जा रही है। इस खबर ने राजनीतिक गलियारों में यह सवाल जोर पकड़ लिया कि क्या यह जानकारी पहले ही नेताओं को मिल गई थी? क्या यही वजह थी कि श्बैठक बैठक का सिलसिला शुरू हुआ?

भले ही इस बैठक की मीडिया में खबरें इस तरह आई कि सीएम धामी की तारीफ हुई लेकिन अफसरों की मनमानी पर नेता खूब बरसे। हालांकि सूत्रों की मानें तो ये बैठकें केवल पुराने रिश्ते निभाने भर की नहीं थीं, बल्कि आने वाले समय की राजनीतिक बिसात को समझने और खुद को उसमें फिट करने की कोशिश थीं। जो मंत्री खुद को कभी “मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार” मानते थे, वो आज भाजपा के अनुशासन और केंद्रीय नेतृत्व की पकड़ के कारण राजनीतिक हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।

धामी युग और नेताओं का सन्नाटा
राज्य की सत्ता की बागडोर जब पुष्कर सिंह धामी के हाथों में आई, तब कई पुराने धुरंधर नेता उम्मीद कर रहे थे कि सत्ता में उनकी चलती रहेगी। लेकिन बीते दो सालों में स्थिति उलट गई है। मंत्रियों के दफ्तरों में कभी दिनभर चहल-पहल रहती थी, वो अब शांत पड़े हैं। कार्यकर्ता जो कभी हर हफ्ते नेता के सामने अपनी हाजिरी दर्ज करते थे, अब हफ्तों से नजर नहीं आते। धामी सरकार की कार्यशैली में केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों का प्रभाव इतना गहरा है कि ष्मैं कर लूंगाष् वाला आत्मविश्वास अब रिस्पना नाले में बह चुका लगता है।

हरीश रावत की दौड़ से हटने की घोषणा और नई सुगबुगाहट
इन सबके बीच, कांग्रेस के बुजुर्ग लेकिन प्रभावशाली चेहरे हरीश रावत ने ऐलान कर दिया कि वे 2027 का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह घोषणा अपने आप में एक बड़ा संदेश थी। भले ही रावत ने यह भी कहा कि ष्कुछ चीज़ों पर नियंत्रण रखेंगे, लेकिन उनके सक्रिय राजनीति से एक कदम पीछे हटने के संकेत ने भाजपा में शामिल श्कांग्रेस मूलश् नेताओं के बीच एक नई सुगबुगाहट पैदा कर दी है। उन्हें कांग्रेस में वापसी की संभावनाएं फिर दिखने लगी हैं।

बैठकें और 2026 की तैयारी
राजनीतिक सूत्र बता रहे हैं कि इन नेताओं ने 2026 तक का एक अनौपचारिक रोडमैप बनाना शुरू कर दिया है। मकसद है 2027 से पहले माहौल बनाना और हरीश रावत से नाराज रहे पुराने कांग्रेस नेताओं को फिर से एक मंच पर लाना। परंतु ये नेता शायद भूल रहे हैं कि भाजपा में ष्तंत्रष् और ष्लगामष् अब भी पार्टी के पास ही है दृ और वो भी केंद्र के स्तर पर।

आने वाले दिन, नई खबरें और बदलती चालें
उत्तराखंड की राजनीति में अगला साल निर्णायक साबित हो सकता है। 2026 तक भीतरखाने की चालें और बाहर उठते सवाल एक नई दिशा ले सकते हैं। सीबीआई की संभावित जांच सिर्फ कानूनी प्रकिया नहीं बल्कि राजनीतिक संकेत भी है। कौन बच पाएगा, कौन फंसेगा दृ ये आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन यह तय है कि देहरादून के सचिवालय, विधानसभा और कैंट रोड की दीवारें बहुत कुछ सुन और कह रही हैं।

हालांकि राजनीति में न तो कुछ स्थायी होता है, न कुछ अंतिम। उत्तराखंड में धामी युग ने सत्ता की परिभाषा बदली है और अब अगला मोड़ उस समय का संकेत दे रहा है जब पुराने दावेदार नई जगह तलाशेंगे, गठजोड़ फिर बनेंगे, और सियासत की गाड़ी नए ट्रैक पर दौड़ेगी। सवाल यही हैरू कौन बनेगा ड्राइवर, और कौन उतर जाएगा स्टेशन से पहले?

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required