सत्ता, संपत्ति और सस्पेंस : 54 करोड़ का भूमि घोटाला- तीन IAS आए लपेटे में
देहरादून/हरिद्वार | 29 मई 2025: उत्तराखंड के हरिद्वार नगर निगम में करोड़ों रुपये की जमीन खरीद में घोटाले की हाई-प्रोफाइल जांच पूरी हो गई है। वरिष्ठ IAS अफसर रणवीर सिंह चौहान ने गुरुवार को इस मामले की रिपोर्ट शहरी विकास सचिव नितेश झा को सौंप दी। रिपोर्ट में तीन वरिष्ठ अधिकारियों – हरिद्वार डीएम कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त (वर्तमान अपर सचिव स्वास्थ्य) वरुण चौधरी और तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह को प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है।
क्या है मामला?
2024 में नगर निगम हरिद्वार ने सराय गांव में स्थित 33 बीघा कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदा, जबकि उस वक्त उसका वास्तविक सर्किल रेट पर मूल्य महज 15 करोड़ रुपये था।
लेकिन लैंड यूज में बदलाव कर कुछ ही दिनों में इस भूमि को कामर्शियल घोषित किया गया, जिससे उसकी कीमत में चार गुना तक उछाल आ गया।
विशेष बात यह रही कि यह जमीन कूड़ा निस्तारण केंद्र के पास स्थित है और इसकी खरीद नगर निगम के प्रशासक (IAS वरुण चौधरी) के कार्यकाल में हुई थी।
लैंड यूज में हुआ खेल
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अक्टूबर 2024 में तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह ने भूमि का लैंड यूज कृषि से बदलकर व्यावसायिक किया।
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चंद दिनों में नगर निगम ने इस भूमि का खरीद एग्रीमेंट कर लिया और नवंबर में रजिस्ट्री भी कर दी।
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नियमों को ताक पर रखकर 20 दिन में लैंड यूज में बदलाव और खरीद का सौदा पूरा हो गया।
पारदर्शिता और प्रक्रिया में भारी खामियां
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भूमि खरीद बिना किसी पारदर्शी बोली प्रक्रिया के की गई।
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नगर निगम एक्ट और शासनादेशों का उल्लंघन हुआ।
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खरीद के लिए शासन से पूर्व अनुमति नहीं ली गई।
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भूमि को गोदाम के लिए सशर्त अनुमति दी गई थी, लेकिन कूड़ा डंपिंग के लिए इस्तेमाल किया गया।
फाइल दौड़ाने में कौन था मास्टरमाइंड?
इस मामले में जांच रिपोर्ट में यह सवाल भी उठाया गया है कि 33 बीघा जमीन की खरीद की फाइल ‘बिना ठोस परियोजना’ के इतनी तेजी से कैसे मंजूर हुई?
सत्ता के गलियारों में इस बात की चर्चा है कि इसके पीछे कोई ‘बाहरी व मजबूत’ दबाव काम कर रहा था। लेकिन यह मास्टरमाइंड कौन है, इस पर अब तक परदा पड़ा हुआ है।
तीन अफसरों पर कार्रवाई की संस्तुति
रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि यह सौदा वित्तीय अनियमितता, प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का त्रिकोण है। दोषियों पर कार्मिक विभाग द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है।
जांच रिपोर्ट में हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं।
इससे पहले हुई कार्रवाई
1 मई को इस मामले में चार अधिकारियों को निलंबित किया गया था:
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रवीन्द्र कुमार दयाल (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त)
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आनंद सिंह मिश्रवाण (प्रभारी अधिशासी अभियंता)
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लक्ष्मीकांत भट्ट (कर एवं राजस्व अधीक्षक)
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दिनेश चन्द्र काण्डपाल (अवर अभियंता)
साथ ही, सेवा विस्तार पर कार्यरत वेदपाल (सेवानिवृत्त सम्पत्ति लिपिक) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए गए।
वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट से स्पष्टीकरण मांगा गया।
अब अगली कार्रवाई पर टिकी निगाहें
अब पूरा मामला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार और कार्मिक विभाग के पाले में है। रिपोर्ट आने के बाद जनता और विपक्ष की निगाहें सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।
क्या इस बार दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी या फिर पहले की तरह ‘बड़े अफसरों को क्लीन चिट’ देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?