पीवी नरसिम्हा राव : राजीव की वजह से सन्यास लेने से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर
– भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मोदी सरकार ने भारत रत्न देने की घोषणा की, देश के आर्थिक सुधारों के पुरोधा माने जाते हैं राव
Pankaj Kushwal, Pen Point : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, पूर्व प्रधानमंत्री व किसान नेता चौधरी चरण सिंह और एशिया को अकाल से बचाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने की घोषणा की। इससे पहले प्रधानमंत्री बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और ओबीसी आरक्षण के अगुवा कर्पूरी ठाकुर, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न देने की घोषणा कर चुके है। इस लिहाज से इस साल भारत सरकार पांच लोगों को भारत रत्न से सम्मानित करेगी जिसमें दो पूर्व प्रधानमंत्री शामिल है। आलोचक इसे 2024 के लोक सभा चुनाव के तहत विपक्षी दलों को साधने की कोशिश करार दे रहे हैं। पीवी नरसिम्हा राव का प्रधानमंत्री बनना और आर्थिक सुधारों का पुरोधा बनने की कहानी भी कम रौचक नहीं है। राजीव गांधी की वजह से राजनीति से सन्यास लेने का फैसला करने वाले राव राजीव की हत्या के बाद मन मसोस कर प्रधानमंत्री बने थे और फिर इतिहास रच दिया।
शुक्रवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने की घोषणा की तो राजनीतिक हलकों में इसकी खूब चर्चा रही। भारत में आर्थिक सुधारों के पुरोधा माने जाने वाले कांग्रेसी नेता पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न की घोषणा से हर कोई हैरान थे। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे लोक सभा चुनाव से पहले दक्षिण भारत के मतदाताओं को साधने की कोशिश बताया तो कईयों ने इसे कांग्रेस का पीवी नरसिम्हा राव के प्रति उनके निधन पर किए गए बर्ताव का जवाब बताया। अपने ऐतिहासिक कार्यकाल में नरसिम्हा राव देश में किए गए आर्थिक सुधारों के लिए याद किए जाते हैं। उन्हें जब देश की कमान मिली थी तो देश की आर्थिक हालत बेहद खराब स्तर पर पहुंच गई थी। ऐसे में उनके सामने आर्थिक सुधारों को लागू करने के साथ ही देश की आर्थिक साख को बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी थी। अपने वित्त मंत्री व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गर्वनर रहे डॉ. मनमोहन सिंह के सहारे उन्होंने देश में जो आर्थिक सुधार किए उन्होंने देश के लिए एक नए युग की शुरूआत की।
लेकिन, पीवी नरसिम्हा राव किन परिस्थितियों में देश के प्रधानमंत्री बने यह भी कम रौचक नहीं है। वन लाइफ इन नॉट इनफ में के. नवटर सिंह इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र करते हैं। 1991 में आम चुनाव के प्रचार के दौरान तमिलनाडु में प्रचार करने पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की 21 मई को एक आत्मघाती बम धमाके में हत्या कर दी गई। राजीव गांधी सत्ता गंवाने के बाद फिर से वापसी के लिए खूब दौड़ धूप कर रहे थे लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस के सामने नेतृत्व संकट खड़ा हो गया था। के. नटवर सिंह लिखते हैं कि बम धमाके से टुकड़ों में बंटे राजीव गांधी के शरीर का अंतिम संस्कार के बाद दिल्ली में राजनीतिक हलचल तेज हो गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद पाने के लिए अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, शरद पवार और माधवराव सिंधिया अपने अपने स्तर से कोशिश कर रहे थे। जबकि, कांग्रेस के एक धड़े ने सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद संभालने का अनुरोध किया जिसे उन्होंने खारिज कर दिया। के. नटवर सिंह ने सोनिया गांधी से अनुरोध किया कि वह अपनी प्राथमिकता तय करते हुए खुद अध्यक्ष पद के लिए किसी नेता को चुने जो स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री भी बनाया जाएगा। सोनिया गांधी को इसके लिए राजी करने में के. नटवर सिंह के साथ ही पीएन हक्सर और एमएल फोतेदार भी शामिल थे। कांग्रेस के बड़े नेता जहां पार्टी अध्यक्ष बनकर प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए जोड़तोड़ में जुटे थे वहीं, सलाहकारों की इस फौज ने आखिरकार सोनिया गांधी को राजी कर लिया कि वह अध्यक्ष पद के लिए किसे चुना जाए इसका फैसला खुद करे। आखिरकार के. नवटर सिंह और पीएन हक्सर की राय को मानते हुए सोनिया गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति और भारत छोड़ों आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लेने वाले शंकर दयाल शर्मा को कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया और जिन्हें आगे जाकर प्रधानमंत्री पद संभालना था। जब यह संदेश शंकर दयाल शर्मा तक पहुंचा तो उन्होंने विन्रमतापूर्वक अपने स्वास्थ्य और उम्र का हवाला देकर प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। इसके बाद पीएन हक्सर ने एक ऐसा नाम सुझाया जो राजीव गांधी की वजह से तकरीबन एक साल पहले राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर चुका था।
कांग्रेस के वरिष्ठ और बौद्धिक नेताओं में शुमार पीवी नरसिम्हा राव को साल 1990 में राजीव गांधी ने राज्य सभा की सीट देने से इंकार कर दिया था जिसके बाद राव ने राजनीति से सन्यास लेने का फैसला करते हुए वापिस हैदराबाद लौटने की तैयारियों में जुट गए। लिहाजा, जब के. नटवर सिंह और पीएन हक्सर ने सोनिया गांधी की ओर से उनके पास प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखा तो पहले तो उन्होंने इसमें रूचि नहीं दिखाई लेकिन अपने मित्रों से राय मशविरे के बाद प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव इस शर्त पर स्वीकारा कि वह प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहेंगे। हालांकि, उनके विरोध में पार्टी के कई बड़े नेता खड़े थे लेकिन सोनिया गांधी की ओर से उनके चयन के चलते खुलकर कोई नेता विरोध नहीं जता सका। 1991 में प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले पीवी नरसिम्हा के हाथों में आर्थिक रूप से बर्बाद होने की कगार पर पहुंचे देश की सत्ता मिली थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उन दिनों प्रधानमंत्री के निजी स्टाफ में शामिल जयराम रमेश अपनी किताब टू द ब्रिंक एंड बैक में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री काल में हुए आर्थिक सुधारों की प्रक्रियाओं, चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए सरकार के उठाए कदमों का विस्तार से वर्णन करते हैं, इस किताब में उन बैठकों के मिटिंग मिनट्स भी उपलब्ध है जिनमें आर्थिक सुधारों की कहानी लिखी गई थी। क्योंकि, यह आर्थिक सुधार जवाहर लाल नेहरू की कांग्रेस के मूल सिद्धांतों के उलट थे इसलिए पार्टी के भीतर भी राव के इन प्रयासों की खूब आलोचना हो रही थी।
देश को लाइसेंसी राज से मुक्ति दिलवाने और आर्थिक सुधारों की नई गाथा लिख देश को आर्थिक रूप से बर्बादी के किनारे से वापिस उन्नति की राह पर लाने वाले पीवी नरसिम्हा राव का प्रधानमंत्री काल पर बाबरी विध्वंस जैसी कालिख भी लगी हुई मिलती है।