रघुराम राजन: अर्थशास्त्री जिसने की थी मंदी की सटीक भविष्यवाणी
आज है भारत के पूर्व चर्चित आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का जन्म दिन, दुनिया के अर्थजगत में कमाया बड़ा नाम
PENPOINT देहरादून, रघुराम राजन का नाम भारत में लोगों ने बखूबी सूना और देखा है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रहे। लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि दुनिया के आर्थिक जगत में उनका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है। जिसकी वजह है आर्थिक मसलों पर उनकी गहरी नजर और पकड़। एक बड़े अर्थवेत्ता की चिंताएं किस तरह की होनी चाहिए उन्होंने कई बार साबित किया। जिसके लिए पहले उनकी आलोचना हुई, लेकिन दुनिया की आर्थिकी ने जब भी करवट ली, उनके नतीजों ने रघुराम राजन को कई सम्मान दिलाए।
इंजीनियरिंग से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आए
भोपाल में आज ही के दिन यानी 3 फरवरी 1963 में जन्मे थे रघुराम गोविंद राजन। आईआईटी दिल्ली इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होने के बाद आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया। फिर 1991 में एमआईटी से इकॉनॉमिक्स में पीएचडी कर डाली। कैरियर पर नजर डालें तो सबसे पहले शिकागो यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बिजनेस में शामिल हुए। उसके बाद सितंबर 2003 से 2007 तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में आर्थिक सलाहकार और मुख्य अर्थशास्त्री रहे। 4 सितम्बर 2013 को उन्होंने आरबीआई के गवर्नर का पदभार संभाला। अपने पहले संबोधन भाषण में ही राजन ने भारतीय बैंकों की नयी शाखाएँ खोलने के लिये लाईसेंस प्रणाली की समाप्ति की घोषणा कर दी थी।
जब राजन ने दुनिया के अर्थशास्त्रियों को हैरत में डाला
साल 2005 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व से ऐलन ग्रीनस्पैन के रिटायरमेंट समारोह का मौका था। जिसमें राजन ने वित्तीय क्षेत्र की आलोचना पर अपना शोध पत्र पढ़ा। जिसका मूल विचार था कि अंधाधुंध विकास से विश्व में आपदा हावी हो सकती है। जिससे आर्थिक और वित्तीय जगत में हलचल मच गई। ये चेतावनी भरा शोधपत्र काफी विवादास्पद हो गया। लेकिन राजन का तर्क था कि वित्तीय क्षेत्र मैनेजरों या प्रबंधकों को निम्न बातों के लिए प्रेरित करता है-
“उन्हें ऐसे जोखिम उठाने हैं जो गम्भीर व प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं मगर इसकी सम्भावना कम होती है। पर यह जोखिम बदले में बाकी समय के लिए बेहिसाब मुआवजा मुहैय्या कराते हैं। इन जोखिमों को टेल रिस्क के रूप में जाना जाता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चिन्ता का विषय यह है कि क्या बैंक वित्तीय बाजारों को वह चल निधि प्रदान कर पायेंगे जिससे टेल रिस्क अगर कार्यान्वित हो तो वित्तीय हालात के तनाव कम किये जा सकें? और हानि को इस प्रकार आवण्टित किया जाये कि वास्तविक अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव कम से कम हो।”
उस समय राजन के शोधपत्र पर काफी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के साथ ही सवाल उठाए गए। मसलन, अमेरिका के वित्त मंत्री और हार्वर्ड के अध्यक्ष रहे लॉरेंस समर्स ने इसे गुमराह करने वाली चेतावनी माना। लेकिन 2007-2008 की आर्थिक मंदी ने राजन की चेतावनी को सही साबित किया। इस तरह दुनिया के फाइनेंसियल सिस्टम के ध्वस्त होने की भविष्यवाणी उन्होंने तीन साल पहले ही कर दी थी। जिसके बाद दुनिया भर में उन्हें सम्मान मिले 2011- में नासकोम द्वारा ग्लोबल इंडियन ऑफ द ईयर, 2012 में इन्फोसिस द्वारा-आर्थिक विज्ञान के लिए सम्मान 2013 वित्तीय अर्थशास्त्र के लिए सैंटर फार फाइनेंशियल स्टडीज़, ड्यूश बैंक सम्मान प्रमुख हैं।