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नए भारत के नए नेता : राहुल सांकृत्यायन ने उत्तरकाशी में लिखी थी ये किताब

PEN POINT, DEHRADUN : आज घुम्मकड़ी को धर्म मानने वाले भारत के सबसे बड़े घुम्मकड़ व धर्म, दर्शन, संस्कृति, इतिहास लेखक महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती है। तिब्बत यात्रा के साथ ही हिमालयी यात्रा के लिए वह कई बार उत्तराखंड आए। लेकिन, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उत्तरकाशी में बैठकर उन्होंने अपनी एक प्रसिद्ध किताब लिखी थी। बाबा नागार्जुन के साथ तिब्बत यात्रा के लिए उत्तरकाशी पहुंचे राहुल सांस्कृत्यायन ने उत्तरकाशी में कुछ दिन आराम करने के दौरान यह किताब लिखी। हालांकि, उन्होंने एक दूसरी किताब लिखनी भी शुरू की थी लेकिन वह लिखते हैं कि कुछ पन्ने लिखने के बाद उन्होंने वह किताब कचरे के डिब्बे में फेंक दी थी।
आज महान घुमक्कड़ राहुल सांस्कृत्यायन की जयंती है। घुमक्कड़ी करते हुए ज्ञान हासिल करना और उसे लोगों के सामने रखने का उनका अंदाज अनूठा रहा। उनकी हर यात्रा और हर पदचाप इतिहास में झांकने का झरोखा है। हिंदी साहित्य की महान कृतियों में से एक वोल्गा से गंगा उनकी ही कलम से निकल सकती थी। जिसमें उन्होंने मानव सभ्यता के इतिहास और विकास को बेहतरीन ढंग से पिरोया है। यह किताब बिना ऐतिहासिक घटनाओं और विवरणों का बोझ लादे हुए कहानियों और पात्रों के जरिए आदिम युग से आज के युग तक की सैर कराती है। वोल्गा से गंगा जैसी एक किताब राहुल सांकृत्यायन ने और लिखी, जिसका नाम है नए भारत के नए नेता। यह किताब तिब्बत के थोलिंग मठ जाते हुए उत्तरकाशी में बिताए दिनों के दौरान लिखी।
1940 के मई महीने में राहुल सांकृत्यायन महान कवि बाबा नागार्जुन के साथ टिहरी होते हुए उत्तरकाशी पहुंचे थे। बाबा नागार्जुन ने इस पर टिहरी से नेलंग यात्रा वृतांत लिखा। जिसमें वे बताते हैं कि धरासू और जमनोत्री का रास्ता अलग हो गया था। इस चट्टी पर जो यात्री थे, उनमें स्त्रियों की ही संख्या अधिक थी। बाबा नागार्जुन अपने इस यात्रा वृतांत में लिखते हैं कि डुंडा में रोडया लोगों के ख़ाली मकान पड़े हुए थे। वे गर्मी तिब्बती सीमांत के पास बिताते हैं और सर्दी यहाँ बिताते हैं। उनकी ख़ानाबदोशी बस अब यहीं तक सीमित रह गई है। अगले दिन हम उत्तरकाशी पहुँचे। यह स्थान टिहरी से चौवालिस मील है, रियासत का तहसील है। आबादी मामूली है। इंगलिश मिडिल स्कूल और अस्पताल भी है। कहने को एक टेकनिकल स्कूल भी है। इस ओर का अंतिम डाकख़ाना यहीं है।

नागार्जुन अपने यात्रा वृतांत में आगे बताते हैं कि वे पहले बिड़ला धर्मशाला में ठहरे, फिर पंजाबी -सिन्धी क्षेत्र में एक कमरा मिल गया। साथ आए घनानंद को यहीं से वापस जाना था। सवा रुपया रोज़ पाकर वह ख़ूब ख़ुश हो गया। अब खाना पकाने की समस्या सामने थी। पंजाब सिंधी क्षेत्र का मैनेजर पहाड़ी ब्राह्मण था। उस मैनेजर ने बाबा नागार्जुन और राहुल सांस्कृत्यायन की दिक्कत दूर कर दी। मैनेजर ने कहा कि आटा और दाल या चावल-दाल रोज़ आप हमारे रसोइयों को दे दीजिए, खाना पका-पकाया मिल जाया करेगा।
दोनों उत्तरकाशी में हम कुल बीस दिन रहे। राहुलजी ने “नए भारत के नए नेता” का अधिकांश भाग यहीं तैयार किया। गँवार नाम का एक उपन्यास भी उन्होंने आरंभ किया था, परंतु चालीस पृष्ठ लिखकर उसे रद्दी क़रार दिया। बाबा नागार्जुन अपने प्रसंग में लिखते हैं कि मैं अपना सारा समय तिब्बती पढ़ने में लगाता था। इसके अलावा पश्चिमी तिब्बत के मार्गों का सही अंदाज़ पाने के लिए हिमालय के नक़्शों की छानबीन करनी ही पड़ती थी। यहाँ पता लगा कि गंगोत्री से थोलिडः आठ दिन में पहुँचा जा सकता है। लेकिन रास्ता विकट है। राहुलजी ने दिन-भर में एक नया नक्शा मेरे लिए तैयार कर दिया, बाद में वह ख़्ब काम आया। उसमें उत्तराखंड के तमाम रास्ते, कैलाश, मानसरोवर की परिक्रमा, लेह (लद्दाख), स्पिति, थोलिडः, गतांक और बिचले तिब्बत का प्रदेश अंकित था। यहाँ भी साधुओं की काफ़ी संख्या रहती है। दस-पंद्रह ऐसे भी शिक्षित साधु हैं।

इसी लेख में नागार्जुन उत्तरकाशी के बारे में बताते हैं कि- उत्तरकाशी का बाज़ार बहुत छोटा था। पाँच ही दुकान थीं। लोगों ने बताया-“अभी ठंड है, बीस -पच्चीस रोज़ बाद खुलेगा बाज़ार।’ डाक तीन रोज़ पर आती थी। वीर भारत (उर्दी) और विश्व बंध (हिन्दी) पढ़ने को सनातन-धर्म -प्रतिनिधि -सभा के पुस्तकालय जाना पड़ता था। एक दिन डाकख़ाना में लोकवुद्ध (कम्युनिस्ट साप्ताहिक) का पैकेट देखकर राहुलजी ने कहा– “कलयुग अब उत्तराखंड को भी नहीं छोड़ेगा!’ और मुसक्राने लगे। बीस रोज़ उत्तरकाशी रहकर जब हम गंगोत्री की ओर चले, तो मई का अंत आ गया था। फिर भी सर्दी गई नहीं थी. उत्तरकाशी में बीस दिन के प्रवास के बाद राहुल सांकृत्यायन और बाबा नागार्जुन मनेरी भटवाड़ी होते हुए हरसिल पहुंचे। वहां से एक बार गंगोत्री होकर वापस लौटे और थोलिंग मठ जाने के लिए नेलंग तक पहुंचे। लेकिन कोई दुर्घटना हो जाने के बाद राहुल सांकृत्यायन को वहां से वापस लौटना पड़ा। जबकि नागार्जुन आगे तिब्बत की यात्रा पर निकले।नए भारत के नए नेता किताब इसके बाद प्रकाशित हुई। जिसकी भूमिका में राहुल सांकृत्यायन ने इसे वोल्ग से गंगा की साथी ग्रंथ बताया है।

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