रामायण और उत्तराखंड: पौड़ी जिले के देवल गांव में है लक्ष्मण जी का मंदिर
Pen Point, Dehradun : लक्ष्मण मंदिर, कोट ब्लॉक के पास एक छोटे से गांव देवल में स्थित है। जिला मुख्यालय पौड़ी से केवल 15 मिनट की दूरी पर है। भूरे पत्थर के परिसर और छोटी ऊंचाई वाली वास्तुकला युक्त यह मंदिर लगभग हजार साल पुराना बताया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया, तो उन्होंने सीताजी का त्यागने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा। तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही ४ किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है। यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये। वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है।
पास में सीता जी यहां से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे। इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है। उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा। इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है तथा रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है।
देवल गांव में स्थित शेषावतार लक्ष्मण मंदिर एक प्राचीन धरोहर है। मूल रूप से यह छोटे बड़े 11 प्राचीन मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों की संरचना और उनमें स्थापित मूर्तियां बेहद खूबसूरत और कलात्मक हैं। लक्ष्मण मन्दिर के सामने एक प्राचीन नौबतखाना हैं। ख़ास बात ये है कि पौड़ी जिले के कुछ प्राचीन मन्दिरों ही नौबतखाना है जिनमें से यह लक्षमण मंदिर शामिल है। इससे इस मंदिर की मान्यता और पुरातनता का परिचायक है। क्षेत्रीय पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार समय सारिणी के नजरिये से इस मन्दिर को दो वर्गों में बांटा गया है। पहला कि यह लक्ष्मण के साथ साथ शिवमन्दिर भी है। इन मन्दिरों का निर्माण 1879वीं श0ई0 में हुआ बताया जाता है। इन मन्दिरों की वास्तु योजना बेहद सरल है। लक्ष्मण मन्दिर के गर्भगृह में पद्म. चक्र और शंख धारण किये हुऐ विष्णु, लक्ष्मी, नारायण, ब्रह्मा, गणेश और महिष-मर्दिनी दुर्गा की मध्यकालीन मूर्तियां स्थापित हैं।
देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है। रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है। गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है। केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पहुँचने का वर्णन मिलता।