सरनौल से सरूताल ट्रैक : जो बात इस जगह वो कहीं पर नहीं…
गर्मियां दस्तक दे चुकी हैं, ऐसे में अगर आप भट्टी से तप रहे शहरों से दूर सुकून तलाशने किसी अनछुए ट्रैक पर जाना चाहते हैं तो सरूताल ट्रैक आपका इंतजार कर रहा है। सरूताल तक पहुंचने के लिए बैस कैंप से करीब 21 किमी की लंबी ट्रैकिंग करनी पड़ती है लेकिन खूबसूरत कुदरती नजारों से भरा यह ट्रैक न तो आप पर थकान हावी होने देगा न ही आपको निराश करेगा।
नौगांव प्रखंड का सरनौल गांव, बड़कोट कस्बे से करीब 35 किमी दूर यह गांव सरूताल तक पहुंचने का आधार शिविर गांव है। सरनौल गांव से करीब 21 किमी की दूरी तय कर और सात बुग्यालों को पार कर रतौड़ी बुग्याल पहुंचा जा सकता है जहां करीब एक वर्ग किमी तक फैली यह ताजे पानी की झील सरूताल पर्यटकों का स्वागत करती है। समुद्रतल से 15 हजार फीट की उंचाई पर स्थित इस ताल और रतेड़ी बुग्याल तक पहुंचने को भले ही सरनौल से 21 किमी की पैदल दूरी तय करनी होती है लेकिन ट्रैक के बीच में हर दो से तीन किमी पर कई किमी तक फैले बुग्याल आपको इस ट्रैक में थकान महसूस नहीं होने देंगे।
कैसे पहुंचे सरूताल
देहरादून से सरनौल गांव की दूरी 165 किमी है। करीब 6 घंटे की दूरी तय कर सरनौल गांव में पहुंचा जा सकता है। हैरीटेज गांव सरनौल में आप किसी भी पारंपरिक पहाड़ी शैली में बने भवनों में रात गुजार सकते हैं। अगले दिन यहां से सरूताल के लिए पैदल ट्ैरकिंग शुरू कर सकते है। सरनौल से 3 किमी की पैदल दूरी पर डोबियाका बुग्याल है, वहां से एक किमी की दूरी पर हडीका थाथरा बुग्याल है। यहां से 1 किमी की पैदल दूरी पर सुतुड़ी बुग्याल है जहां से दो किमी की दूरी पर भुजका ताल स्थित है। आप पहले दिन का कैंप सुतुड़ी बुग्याल में कर सकते हैं या फिर भुजका ताल से 3 किमी दूरी पर स्थित कुडका बुग्याल में भी आप कैंप लगाकर रात गुजार सकते हैं। गर्मियों के दौरान ट्रैक करेंगे तो यहां स्थानीय लोगों की छानियों में भी आपको रहने का ठिकाना और खाना मिल सकता है।
अगले दिन कुडका बुग्याल से 3 किमी की दूरी पर चंद्रूणी बुग्याल स्थित है जहां से 4 किमी की दूरी पर फचुकांडी बुग्याल स्थित है जहां से 3 किमी की दूरी पर रतेड़ी बुग्याल में प्रवेश करते ही आप सामने एक वर्ग किमी में फैले ताजे पानी की इस अद्भुत झील सरूताल का दीदार कर सकते हैं। आप दूसरी रात यहां कैंप लगाकर गुजार सकते हैं रात को ऑक्सीजन की कमी महसूस होने का डर हो तो वापिस 3 किमी आकर फच्चु कांडी में कैंपिंग कर सकते हैं।
सरनौल गांव
मां रेणुका को अपनी आराध्य देवी मानने वाला यह गांव हैरीटेज गांव है। करीब तीन हजार की आबादी वाले इस सरनौल गांव में करीब 95 फीसदी से अधिक परिवार आज भी पारंपरिक रूप से बने पुराने भवनों में ही रहते हैं। पत्थरों की छत वाले यह भवन करीब तीन सौ साल पुराने बताए जाते हैं। भूकंप से बचने के लिए इन आवासीय भवनों में लिंटेल बैंड तकनीकि अपनाई गई है। यानि पत्थरों की चिनाई में हर दो फीट पर देवदार के तने बैंड की तरह लगाए गए हैं जिसके चलते यह भवन उत्तरकाशी जनपद में 1803 व 1991 में आए विनाशकारी भूकंप से तो सुरक्षित रहे ही है साथ ही अपनी अनोखी बनावट के चलते मौसम के अनुकूल व्यवहार भी करते हैं। तकरीबन सभी परिवार इन पारंपरिक हैरीटेज घरों में निवासरत है लिहाजा इस गांव में होमस्टे संचालन की भरपूर संभावनाएं व्याप्त है।