संसद की सुरक्षा: जब यूकेडी के त्रिवेंद्र पंवार ने संसद में फेंके थे पर्चे
Pen Point, Dehradun : बीते मंगलवार को देश की संसद में दो युवकों के कूदने की घटना सुर्खियों में है। हालांकि अभी तक इन युवकों और पकड़े गए अन्य साथियों की मांग और मकसद साफ नहीं हो सकी है। ऐसे में विरोध के इस तरीके को सही नहीं कहा जा सकता। लेकिन इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन की एक अहम घटना की याद जरूर दिलाई है। जब यूकेडी के युवा नेता त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने संसद भवन की दर्शक दीर्घा से नारेबाजी करते हुए सदन में पर्चे फेंके थे। ऐसा करके उन्होंने भारत सरकार समेत देश और दुनिया मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इस घटना से उत्तराखंड में आंदोलन को भी तेजी मिली और तभी से अलग राज्य बनने का माहौल और तेजी के साथ शुरू हो गया। लेकिन अफसोस है कि उत्तराखंड आंदोलन के तमाम दस्तावेजों में यह घटना शामिल नहीं की गई।
घटना को याद करते हुए पंवार बताते हैं- वह तारीख 23 अप्रैल 1987 थी। तब मैं 32 साल का युवा था और यूकेडी का केंद्रीय उपाध्यक्ष था। मैं दिल्ली में संसद भवन पहुंचा और पास हासिल कर सुबह ही दर्शक दीर्घा में जाकर बैठ गया, मेरे हाथ में उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लिखे पर्चों का बंडल था। दोपहर से कुछ पहले सदन की कार्यवाही चल रही थी तो मैंने नारेबाजी करते हुए करीब 35-40 पर्चे सदन में फेंक दिये। इससे वहां अफरा तफरी मच गई। ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद यह खबर पूरे देश में आग की तरह फ़ैल गयी। सरकार से सदन में पंवार के पर्चे उछालने के मुद्दे पर सवाल पूछे गए।
पंवार ने बताया कि इस कदम को उठाने की प्रेरणा उन्हें सरदार भगत सिंह से मिली थी। वे शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात देश की लोकसभा में बैठे सांसदों और तत्कालीन कांग्रेस सरकार तक पहुंचाना चाहते थे। हमारा मानना था कि उत्तराखंड का जनमानस लगातार अलग राज्य की मांग कर रहा था, उत्तर प्रदेश के साथ रह कर इस पहाड़ी क्षेत्र का विकास नहीं हो पा रहा था, लेकिन सरकार की कान में जूं तक नहीं रेंग रही थी। ऐसे में उन्होंने राज्य के लोगों के की बात को वहां तक पहुंचाने के लिए ये खतरनाक कदम उठाया। तब करीब 15 मिनट के लिए सदन की करवाई रोक दी गयी थी।
अपने इस दुस्साहस भरे कदम को लेकर पंवार कहते हैं- मैं जानता था कि इसके परिणाम बेहद खतरनाक हो सकते हैं। लेकिन अलग राज्य बनाने के जूनून ने उन्हें यह शांतिपूर्ण कदम उठाने के लिए मजबूर किया। खुफिया एजेंसियों से पूछताछ में मैंने सब कुछ बता दिया।
घटना के 24 घंटे के अंदर उनकी पूरी जानकारी जुटा ली गयी। इसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया, जहाँ से 48 घंटे के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। इन 48 घंटों में सुरक्षा कर्मियों और खुपिया अफसरों ने पेशेवर तरीके से उन्हें टॉर्चर किया। लेकिन वे अपनी बात पर अडिग रहे। पंवार बताते हैं कि इस घटना को सुरक्षा में चूक मानते हुए संसद भवन की सुरक्षा में लगाए करीब 70 से 80 कर्मियों और अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया था।
हालांकि पंवार मंगलवार की घटना का समर्थन नहीं करते है, उनके मुताबिक विरोध का ये तरीका गलत है और ये जब कोई मकसद ही स्पष्ट नहीं है तो इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। उत्तराखंड आंदोलन एक जनांदोलन था और इससे लाखों लोग जुड़े थे जिसका मकसद साफ था कि हमें अलग उत्तराखंड राज्य चाहिए।