शालिजा धामी : आसमान में देश का मोर्चा संभालने वाली पहली महिला कमांडर
शालिजा धामी ने पीएयू से गवर्नमेंट हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। 12वीं कक्षा के लिए खालसा कॉलेज फॉर वूमेन (केसीडब्ल्यू), घुमार मंडी में प्रवेश लिया और उसी संस्थान से नॉन-मेडिकल विज्ञान विषयों में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। साल 2003 में वह हेलिकॉप्टर पायलट के रूप में वायुसेना में भर्ती हुई थीं और उन्हें 2,800 घंटों से ज्यादा का उड़ान अनुभव है। वह चीता और चेतक हेलीकॉप्टर की क्वालीफाइड फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर भी हैं और पश्चिमी सेक्टर में हेलीकाप्टर यूनिट की फ्लाइट कमांडर रह चुकी हैं, भारतीय वायुसेना में अपने 15 साल के करियर में शालिजा चेतक और चीता हेलीकॉप्टर्स उड़ाती रही हैं। उनके नाम कई रिकॉर्ड्स दर्ज हैं। वह चेतक और चीता हेलीकॉप्टर्स के लिए वह भारतीय वायुसेना की पहली महिला योग्य फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर भी हैं।
। वह वर्तमान में एक अग्रिम कमान मुख्यालय की आपरेशंस ब्रांच में पदस्थ हैं। बुधवार को ही उन्हें भारतीय वायुसेना ने पश्चिम कमान की अग्रिम लड़ाकू इकाई का कमांडर नियुक्त किया है।
शालिजा पंजाब के लुधियाना की रहने वाली हैं। वहीं उनकी पढ़ाई भी पूरी हुई है। उनका एक बेटा भी है जिसकी उम्र करीब 9 साल है।
शालिजा को जिस हेलीकॉप्टर (चेतक) को उड़ाने की जिम्मेदारी दी गई है वह एक लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर है, जिसमें 6 पैसेंजर बैठ सकते हैं। इसकी अधिकतम स्पीड 220 किमी प्रति घंटा है।
बेटी की कामयाबी से खुश हैं मां-बाप
बेटी की इस उपलब्धि पर शालिजा के माता पिता बहुत खुश हैं। पिता हरकेश धामी ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “हमें उस पर बहुत गर्व है. मुझे इस समय भावना का वर्णन करने के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे हैं।“
उन्होंने कहा, “महिला दिवस के अवसर पर उसे यह जिम्मेदारी मिलने से यह उपलब्धि और खास हो गई है। मुझे उम्मीद है कि वह हजारों अन्य महिलाओं को प्रेरित करेगी।“ हरकेश ने अपनी बेटी की कामयाबी का श्रेय उसकी मेहनत को दिया. उन्होंने कहा, “हमने उसे कभी भी कुछ भी करने से नहीं रोका और कभी भी उसकी पसंद में हस्तक्षेप नहीं किया। इससे ज्यादा हमारा कोई योगदान नहीं है। यह उसकी पूरी मेहनत और समर्पण है.“
सरकारी स्कूल से पढ़ीं हैं शालिजा
शालिजा के पिता ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाया है। शालिजा के पिता बताते हैं कि जो बच्चे कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे, उनके माता-पिता उन्हें शानदार कारों में छोड़ने आते थे और उस समय मेरे पास एक साइकिल थी लिहाजा मैंने तय किया कि मेरे बच्चे उसी स्कूल में पढ़ेंगे जहां मेरे जैसे आम आदमी के बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने आगे कहा, “अगर मैंने उसे किसी कॉन्वेंट में भर्ती करा दिया होता, तो शायद उसमें हीन भावना आ गई होती।
29 साल पहले मिली वायुसेना में भर्ती होने की अनुमति
किसी महिला के लिए यह उपलब्धि बहुत मायने रखती है। भारतीय वायुसेना में 1994 यानि 29 साल पहले महिलाओं की भर्ती की अनुमति मिली थी। लेकिन तब उन्हें नॉन कॉम्बैट यानि गैर लड़ाकू का रोल दिया गया था। समय के साथ महिलाओं ने अपने अधिकार के लिए संघर्ष किया और लड़ाकू भूमिका हासिल किया। दिल्ली हाईकोर्ट में चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भारतीय वायुसेना में महिला अधिकारियों को पुरुषों के समकक्ष स्थाई कमीशन पाने का अधिकार मिला है। फिलहाल भारतीय वायु सेना में 18 ऐसी महिला पायलेट हैं जो चीता, चेतक, मिग जैसे विमान चला रही हैं।
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