गुलाब की खुशबू से टूटा रैथल उद्यान फार्म का सन्नाटा
– करीब सात दशक पहले स्थापित रैथल उद्यान केंद्र में गुलाब की खेती कर हो रहा है गुलाब जल का उत्पादन, सालों तक वीरान पड़ा रहा उद्योग केंद्र
Pen Point, Dehradun : उत्तरकाशी जनपद के पर्यटन गांव रैथल में सरकारी उद्यान केंद्र में जब बीते दिनों गुलाब के फूलों से गुलाब जल निकालने का काम किया जा रहा था तो ग्रामीणों को यकीन नहीं हो रहा था कि कई दशकों तक अनाथ छोड़े गए इस उद्यान केंद्र में गुलाब की उन्नत किस्मों का उत्पादन कर सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग होने वाले गुलाब जल का उत्पादन किया जा रहा है। करीब सात दशक पहले स्थापित इस उद्यान केंद्र ने अपने इस सफर में कई उतार चढ़ाव देखे तो पिछले ढाई दशक तक बुरी तरह उपेक्षित भी रहा लेकिन अब फिर से इस उद्यान केंद्र में हलचल देखी जा रहा है जो ग्रामीणों को फिर से उम्मीद दे रही है।
साल 1957, तब के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सीमांत बसे रैथल गांव में जहां तक पहुंचने के लिए करीब 30 किमी लंबी पैदल दूरी तय करनी पड़ती थी, तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने गांव की 30 हेक्टेयर भूमि पर उद्यान केंद्र की स्थापना की, उद्देश्य था कि उद्यान केंद्र में फलदार पौधों की नई किस्मों की नर्सरी तैयार कर इस इलाके में ग्रामीणों को बागवानी के लिए प्रेरित किया जाए। उद्यान केंद्र में विदेशी प्रजाति के चेस्टनेट, कागजी अखरोट, बादाम, सेब, पल्म, आडू के पेड़ों की नर्सरी तैयार की गई, इन पौधों का व्यापक वृक्षारोपण किया गया। अगले तीन से चार दशकों तक यह उद्यान केंद्र खूब फलने फूलने लगा। समुद्रतल से सात हजार फीट की उंचाई पर स्थापित यह उद्यान केंद्र दूर दराज के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया था। रैथल गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 70 के दशक में कुछ लोग रैथल सिर्फ इस उद्यान को ही देखने पहुंचते थे। तब पूरे इलाके में फलदार वृक्षों और बागवानी को लेकर ग्रामीणों में उत्साह नहीं था लेकिन जब उद्यान केंद्र में फलों के लकदक पेड़ों से ग्रामीणों का वास्ता पड़ा तो इलाके में बागवानी को लेकर उत्साह बढ़ने गला। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि साल 1991 में उत्तरकाशी में आए विनाशकारी भूकंप से इस उद्यान केंद्र में बने भवनों को भी भारी नुकसान हुआ और यहां तैनात कुछ कर्मचारियों को भूकंप में जान गंवानी पड़ी। इसके बाद शुरू हुआ इस उद्यान केंद्र का बुरा दौर। अगले ढाई दशकों तक यह उद्यान केंद्र बुरी तरह से उपेक्षित रहा। नया राज्य बना तो उम्मीद थी कि उद्यान केंद्र के भी दिन बहुरेंगे लेकिन राज्य बनने के बाद इस उद्यान केंद्र को निजी हाथों में देने की कवायद शुरू हो गई। साल 2005 में इस उद्यान केंद्र को निजी हाथों में सौंपा भी गया लेकिन बागवानी को बढ़ावा देने की बजाए इस लीज पर लेने वाले व्यापारी ने उद्यान केंद्र की जमीन पर उगे शैवाल और दारूहल्दी की जड़ों का बड़े पैमाने पर उत्खनन शुरू किया और अगले दो तीन सालों में इस उद्यान केंद्र को बदहाल कर छोड़ दिया।
अगले कुछ सालों तक उद्यान केंद्र में बदहाल स्थिति में रहा लेकिन अब पिछले कुछ सालों से फिर से सरकार ने इसकी सुध लेनी शुरू की है। सगंध पौधा केंद्र देहरादून ने यहां गुलाब की खेती कर गुलाब जल निकालने का केंद्र स्थापित किया है तो उद्यान विभाग ने फिर से सेब की उन्नत किस्मों की नर्सरी शुरू कर दी। पिछले पांच सालों में बेजार पड़े इस उद्यान केंद्र में फिर से बहार लौट आई है। सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई की ओर से यहां करीब 20 नाली भूमि पर गुलाब की हेन रोज और नूरजहां की किस्मों का उत्पादन किया जा रहा है। बीते दिनों यहां पहली बार इन किस्मों के गुलाब से गुलाब जल निकाला गया। केंद्र से पहली बार 15 लीटर गुलाब जल निकाला गया है जिसे गुणवत्ता जांच के लिए सगंध पौधा केंद्र के मुख्यालय सेलाकुई में भेजा जाएगा जहां इसकी गुणवत्ता जांच के बाद इसे सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों में निर्यात किया जाएगा। हालांकि, अभी फिलहाल गुलाब उत्पादन बेहद सीमित क्षेत्र में किया जा रहा है लेकिन जिस तरह से इन दोनों गुलाब प्रजातियों की नर्सरी तैयार की गई है जिसके बाद केंद्र के 30 हेक्टेयर में से 23 हेक्टेयर पर गुलाब का उत्पादन किया जाएगा।
ग्राम प्रधान सुशीला राणा कहती हैं कि उद्यान विभाग ने जब से वापिस इस उद्यान केंद्र की सुध लेनी शुरू की है उसके बाद गांव के कई लोगों के लिए यहां रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और जिस तरह से यहां फूलों और फलदार पेड़ों की नर्सरी तैयार की जा रही है वह भी अन्य ग्रामीणों को बागवानी के लिए प्रेरित करेगा।