गढ़वाल में सफल लेकिन कुमाऊं में असफल रही है भाजपा की ये रणनीति
Pen Point, Dehradun :कांग्रेसी नेताओं को अपने साथ शामिल करने की रणनीति पर भाजपा लगातार कायम है। कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ यह अभियान हर बार चुनाव से पहले तेज हो जाता है। जिसके तहत कांग्रेस नेताओं को भाजपाई बनाकर चुनाव प्रचार में लगा दिया जाता है। यूं तो भाजपा ये अभियान पूरे देश में चला रही है, लेकिन उत्तराखंड की बात करें तो यहां भी कद्दावर माने जाने वाले कई कांग्रेसी नेता अब भाजपा का चोला ओढ़ चुके हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज मानकर इन नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है। जिससे उनके राजनीतिक करियर की नय्या पार हो सके। इस सियासी चाल में भाजपा को गढ़वाल में तो बड़ी कामयाबी मिली लेकिन कुमाउं मे इसका ज्यादा असर नहीं दिखा। राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि यह भी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। चुनाव से ठीक पहले कुमाउं से कांग्रेस के कई दिग्गज चेहरे भाजपा में दिख सकते हैं।
गढ़वाल संसदीय सीट
गौर किया जाए तो एक खास रणनीति के तहत भाजपा ने कांग्रेस के कांग्रेस विधायकों को तोड़ने का सिलसिला शुरू किया। जिसके तहत कांग्रेस विधायकों के साथ ही उन नेताओं को टारगेट किया गया जो पिछले विधानसभा चुनाव में नजदीक अंतर से हार गये थे। इसी अभियान के तहत बद्रीनाथ विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी ने भाजपा की सदस्यता ली। जबकि एक दिन पहले ही वे भाजपा की राज्य और केंद्र सरकार को जमकर कोस रहे थे। गढ़वाल लोकसभा सीट पर राजेंद्र भंडारी का किरदार बेहद अहम था।
इसके अलावा गढ़वाल संसदीय क्षेत्र की केदारनाथ विधानसभा से 2022 का चुनाव लड़ चुके कुलदीप रावत भी भाजपा में शामिल हुए। चौबट्टाखाल विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे केसर सिंह भी भाजपा में चले गए। पौड़ी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे नवल किशोर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। यमकेश्वर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े शैलेंद्र सिंह रावत भी वापस भाजपा के हो गए। ये सभी 2022 के विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे। सभी प्रत्याशियों ने बारह हजार से ज्यादा वोट हासिल किये थे। इसके अलावा श्रीनगर गढ़वाल सीट से यूकेडी के लिये चुनाव लड़े मोहन काला भी भाजपा के हो गए। काला को विधानसभा चुनाव में 4271 वोट मिले थे।
टिहरी संसदीय सीट
टिहरी लोकसभा सीट में कांग्रेस में भाजपा ने बड़ी सेंध लगाई है। जहां पुरोला विधानसभा सीट से पहले भाजपा विधायक और उसके बाद 2022 में कांग्रेस प्रत्याशी रहे मालचंद ने भाजपा में वापसी की है। मालचंद को विधानसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी 21,560 वोट हासिल हुए थे। जबकि गंगोत्री में खांटी कांग्रेसी और दो बार के विधायक रहे विजयपाल सजवाण भी भाजपा में शामिल हो गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में सजवाण इस सीट पर 21,590 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। टिहरी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे धन सिंह नेगी ने भी भाजपा में वापसी कर ली। यहां निर्दलीय चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे पूर्व विधायक दिनेश धनै भी भाजपा में शामिल हो गए। टिहरी लोकसभा क्षेत्र की ही धनोल्टी सीट पर चुनाव लड़े जोत सिंह बिष्ट भी भाजपा के हो गये। बिष्ट ने 2022 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था। उसके बाद वो कांग्रेस छोड़ आम आदमी पार्टी में चले गये थे। लेकिन अब भाजपाई हैं।
हरिद्वार संसदीय सीट
विरोधी दल के नेताओं को तोड़कर अपने संग मिलाने की भाजपा की मुहिम का हरिद्वार लोकसभा में भी असर दिखा। जहां बड़ी तादाद में पंचायत प्रतिनिधियों ने भाजपा का दामन थामा। गुरूवार को ही हरिद्वार विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे पुरूषोत्तम शर्मा, पूर्व कांग्रेस प्रदेश सचिव एसपी सिंह और स्वामी ऋषिश्वरानंद, पूर्व प्रवक्ता राजेश रस्तोगी ने भाजपा की सदस्यता ले ली। इससे पहले टिहरी से पिता दिनेश धनै के भाजपा में शामिल होने के साथ ऋषिकेश से चुनाव लड़े कनक धनै भी भाजपा के हो गए। कनक ने 2022 के विस चुनाव में 13,080 वोट हासिल किए थे। भगवानपुर सीट पर अपनी भाभी कांग्रेस की ममता राकेश से हारे सुबोध राकेश ने बसपा छोड़कर भाजपा में वापसी कर ली।
कुमाऊं में नहीं दिखा मुहिम का असर
गढ़वाल में जहां भाजपा की मुहिम बहुत ज्यादा सफल रही वहीं कुमाऊं की लोकसभा सीटों पर ज्यादा सेंध नहीं लगाई जा सकी। कुमाऊं में नैनीताल लोकसभा क्षेत्र की कालाढुंगी विधानसभा से महेश चंद्र शर्मा ने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा ज्वाइन की। 2022 के चुनाव में महेश चंद्र शर्मा को 43 हजार से अधिक वोट मिले थे। इसके अलावा भीमताल विधानसीभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे दान सिंह भंडारी ने भी भाजपा में वापसी कर ली। किच्छा से प्रत्याशी रहे अजय तिवारी भी अब भाजपा में शामिल हैं। वहीं अल्मोड़ा सीट से अभी कोई भी बड़ा कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल नहीं हुआ है।
इससे साफ है कि कुमाऊं की नैनीताल संससीय सीट पर ही भाजपा की मुहिम को कुछ हद तक सफलता मिली है। अब फिलहाल विरोधी दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल करवाने की ये मुहिम धीमी पड़ गई है। लेकिन बताया जा रहा है कि पार्टी यह भी भाजपा की रणनीति का ही हिस्सा है। इस बात में कोई ताज्जुब नहीं कि ऐन चुनाव से पहले गढ़वाल और कुमाऊं से कुछ और कांग्रेसी भाजपा में नजर आएं।