सर्द मौसम में उत्तराखण्ड की जनजातियाँ पहनती हैं ये गरम पोशाकें
PEN POINT, DEHRADUN : यूं तो उत्तराखंड को देवभूमि यानी LAND OF GOD भी कहा जाता है। इसका अधिकतम क्षेत्रफल पर्वतीय और उच्च हिमालयी है। इस वजह से यहाँ की जलवायु विशेष होने से यहाँ कई तरह की वनस्तपतियाँ और और जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। छोटा भू भाग होने के बावजूद उत्तराखंड में बड़ी संख्या में बड़े और छोटे आदिवासी समुदाय भी यहाँ हजारों सालों से निवासरत हैं। दो अलग क्षेत्रीय पहचान गढ़वाली और कुमाउनी के अलावा इस राज्य में कई स्थानीय जनजातियां यहाँ की हिमालयी पहाड़ियों को अपना प्राकृतिक ठिकाना मानते हैं। जो इस राज्य की बेहद ख़ास पहचान है। ये आदिवासी समुदाय अपनी जड़ों को संरक्षित करने और उन्हें धीरे-धीरे ख़त्म होने से बचाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। यहाँ की ये जनजातियां अपने पूर्वजों का सम्मान करने और अपनी संस्कृति को जीवित रखने का एक तरीका बेहद ख़ास तरीका आज भी अपनाए हुए हैं जिसे इनके पहनावे के तौर पर स्थानीय पोशाक के रूप में ज्यों का तोयँ देखा जा सकता है।
जौनसारी जनजाति आज भी अपने स्थानीय पोशाकों के साथ कुछ इस तरह नजर आते हैं :
जौनसारी जनजाति समुदाय खुद को पांडवों के प्रत्यक्ष वंशज के तौर पर मानते हैं। उनके यहाँ कपड़े पहनने का तरीका उत्तराखंड की बाकी पहाड़ी आबादी से बहुत अलग है। इस समुदाय की महिलाएं नियमित चांदी या सोने के गहनों के विपरीत बहुत सारे चमकीले रंग के गहने पहनती हैं, यही खासियत इन्हे खुद को गौरवान्वित करने का एहसास दिलाने में जरूरी भूमिका निभाती है।
जौनसारी पुरुषों में भी अपनी संस्कृति की रवायत को ज़िंदा रखने के प्रति इतना ही लगाव देखा जा सकता है। वे भी गले में हार और बड़े कड़े की तरह गहरे रंग के आभूषण पहनते हैं। वे एक खास तरह का हेडगियर पहनते हैं, जिसे डिगवा कहा जाता है। यह एक ऊनी टोपी है। जबकि इस समुदाय की महिलाएं खुद को घाघरा, ढांटू या स्कार्फ से सजाती संवारती हैं। इसके अलाव ऊपर एक ऊनी कोट भी पहना जाता है, जो ठंड से बचने में सर्दियों के दिनों में शरीर को गर्म रखता है। बहुत अधिक सर्दी या बर्फवारी के अलावा यह समुदाय खास मौकों पर लोहिया कहा जो मध्यम साइज़ का फुल बाजू का गरम कोट जैसा होता है।
भोटिया जनजाति द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक : भोटिया जनजाति उत्तराखंड के ऊंचाई वाले हिस्सों में रहती है और उनकी खास विशेषताओं की वजह से ऊंचाई इलाकों को अपना प्राकृतिक घर मानते हैं। जबकि वे बहुत ऊंचाई वाले और ठंडे क्षेत्र हैं, जहाँ साल भर बने रहना बेहद मुश्किल होता है। खून जमा देने वाली कड़ाके की ठंड से निपटने के लिए, वे लगभा साल भर गरम ऊनी कपड़े पहनते हैं। वे लिए खुद कपडे तैयार करते हैं इनमें शर्ट, कोट, वास्कट, स्कर्ट आदि बनाये जाते हैं। ये सब कपड़े ऊन के धागों से बने होते हैं। इस ऊन को तैयार करने के लिए यह समुदाय भेड़ पालन करता है।
उनकी पोशाक का सबसे खास हिस्सा महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण हैं क्योंकि वे नियमित आभूषणों की तुलना में बहुत बड़े होते हैं। इसके अलावा वे चांदी और सोने के आभूषण भी पहनते हैं। जौनसारी जनजाति के पुरुष पतलून के साथ ऊपर ढीला गाउन पहनते हैं। वे अपनी कमर के चारों ओर एक ऊनी पट्टा भी बांधते हैं और इसे एक पारंपरिक टोपी के साथ पूरा पहनावा के तौर पर पहना जाता है।
भोटिया जनजाति के पुरुष पारंपरिक पोशाक पहनते हैं जिसे बाखू के नाम से जाना जाता है। यह एक ढीला परिधान है जिसे एक तरफ से गर्दन के चारों ओर गांठ दिया जाता है और कमर पर रेशम या सूती बेल्ट से बांधा जाता है।
भोटी जनजाति के पुरुष चौड़ी और लम्बी आस्तीन वाली पोशाक भी पहनते हैं जो जमीन तक जाती है। इस बागे को कमर के चारों ओर ऊनी करधनी से बांधा जाता है ताकि यह जमीन को न छुए। छुबा की ऊपरी तह पहनने वाले की छाती के चारों ओर एक विशाल जेब बनाती है। इन जेबों को “अम्पा” के नाम से जाना जाता है। छुआ भोटिया जनजाति की महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक गाउन जैसा परिधान है। गहरे रंगों में निर्मित, इसे आमतौर पर कमर के चारों ओर लपेटा जाता है और बेल्ट से कस दिया जाता है।
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