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यूकेडी नोटा से भी पीछे, पचास हजार से ज्यादा वोटरों को कोई पसंद नहीं

Pen Point. Dehradun : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में उत्तराखंड में पचास हजार से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया है। राज्य की पांचों सीटों पर नजर डालें तो कई छोटे दलों और प्रत्याशियों से ज्यादा वोट नोटा पर पड़े हैं। चुनाव के लिये वोट मांग रहे प्रत्याशियों और पार्टियों को लेकर सबसे ज्यादा बेरूखी अल्मोड़ा सीट पर देखी गई। यहां 17019 लोगों नोटा को भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर रखा है। खास बात ये है कि उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल यूकेडी के उपर भी लोगों ने नोटा को तरजीह दी है।

उत्तराखंड में भाजपा ने एक बार फिर परचम लहराया है। हालांकि पांचों सीटें जीतने के बाववजूद उसका वोट इस बार पांच फीसदी कम हुआ। वहीं कांग्रेस पिछली बार की तुलना में इस बार कुछ जगहों पर लड़ती नजर आई और उसका वोट शेयर भी बढ़ा है। लेकिन उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल एक बार फिर चुनाव मैदान में फिसड्डी साबित हुआ है। उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में प्रमुख भूमिका होने के बावजूद इस दल की जमीन इस कदर खिसक गई कि उसे नोटा से भी कम वोट मिल रहे हैं।

सीट वार देखें तो हरिद्वार सीट पर यूकेडी को 2854 वोट मिले हैं जबकि यहां 6826 वोट नोटा की तरफ गए हैं। पौड़ी गढ़वाल सीट पर यूकेडी को 4561 वोट हासिल हुए जबकि यहां नोटा पर 11375 वोट पड़े हैं। यानी भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों के टकराव से हॉट सीट बनी इस सीट पर भी अच्छी खासी तादाद में लोगों ने प्रत्याशियों में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

अल्मोड़ा सीट पर भले ही मतदान का प्रतिशत सबसे कम रहा हो लेकिन नोटा पर सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं। लगातार भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर इस बार 17019 वोटरों ने बूथ तक पहुंचकर सभी प्रत्याशियों को खारिज कर दिया। यहां यूकेडी समर्थित उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी को 5758 वोट वोटों से ही संतोष करना पड़ा हैं। इसी तरह नैनीताल सीट पर 10425 लोगों ने नोटा का बटन दबाया। जबकि यहां यूकेडी के खाते में महज 1855 वोट आए हैं।

हालांकि नोटा से कम वोट पाने वालों में अन्य छोटे दल और निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। लेकिल प्रमुख क्षेत्रीय दल होने के नाते उत्तराखंड क्रांति दल के लिये यह सवाल लाजिमी हो जाता है। आंदोलनों की जमीन से निकले इस दल के नेता राजनीतिक विफलता के लिये एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ते रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि यूकेडी ने संगठन के स्तर पर कोई काम नहीं किया, जिससे पुराने लोग छूटते गए और नई पीढ़ी के लोग उससे अनजान हैं।

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