पुण्यतिथि विशेष : उत्तराखंड का अंबेडकर हरिप्रसाद टम्टा
पहाड़ में तब अपमानजनक नामों से बुलाई जाने वाली दलित जातियों को दिया शिल्पकार नाम, अंग्रेजों ने भी दी इस नाम को मान्यता
पहली बार दलितों के लिए सेना में भर्ती के लिए खोले रास्ते, आजीवन दलित उत्थान में जुटे रहे
PEN POINT, DEHRADUN- देश में दलितों को नई पहचान और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसी तरह करीब सौ साल पहले उत्तराखंड में भी दलितों को नई पहचान देने के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस दौर में पहाड़ भीषण जातिगत भेदभाव की चपेट में था और दलितों को बेहद अपमानजनक नामों से बुलाया जाता था तो मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने दलितों को शिल्पकार नाम दिया बल्कि दलितों के लिए सेना में भर्ती के दरवाजे भी खोले। पहाड़ में दलितों में शिक्षा, आत्मविश्वास की चेतना जागृत करने वाले मुंशी हरीप्रसाद टम्टा की आज पुण्यतिथि है।
पहाड़ का अंबेडकर के नाम से मशहूर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का जन्म 26 अगस्त 1887 को अल्मोड़ा में तांबे का काम करने वाले एक दलित परिवार में हुआ था। पिता का नाम गोविंद प्रसाद व माता का नाम गोविंदी था। बहन कोकिला व भाई का नाम ललित था। बाल्यकाल में ही माता-पिता का देहांत हो गया तो इनका पालन पोषण इनके मामा ने किया। उस दौर में पहाड़ में जातिगत छुआछूत तो चरम पर थी ही लेकिन दलितों को आम बोलचाल में अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाता था, जिसे देखकर हरीप्रसाद टम्टा काफी व्यथित हुए। उत्तराखंड में तब भी दलित निर्माण, शिल्प का काम किया करते थे। तो शिल्प सृजन के काम में जुटे दलितों को मुंशी हरीप्रसाद टम्टा ने शिल्पकार नाम दिया। 1927 में उनके अथक प्रयासों व संघर्षों से शिल्पकार नाम को सरकारी मान्यता मिली। हरिप्रसाद टम्टा के प्रयासों की वजह से 1913 में लाला लाजपत राय ने एक कार्यक्रम में सबसे पहले शिल्पकार शब्द का इस्तेमाल किया और उच्च जाति के लोगों से भी इसी शब्द का इस्तेमाल करने को कहा। उन्होंने अछूतों के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल की निंदा भी की। लंबे संघर्ष के बाद 1926 में ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र के अछूतों के लिए शिल्पकार शब्द के इस्तेमाल को औपचारिक मान्यता दी और शिल्पकार सभा की तकरीबन सभी मांगें मान लीं।
सामाजिक सुधारों के अलावा व्यापार के क्षेत्र में भी हरिप्रसाद टम्टा बहुत दूरदर्शी थे 1920 में उन्होंने ‘हिल मोटर्स ट्रांसपोर्ट कंपनी’ की स्थापना की. तब हल्द्वानी से पर्वतीय क्षेत्र की ओर पैदल ही जाया जाता था. हरिप्रसाद टम्टा की ट्रांसपोर्ट कंपनी अल्मोड़ा से नैनीताल और हल्द्वानी के लिए मोटर का संचालन करने वाली पहली ट्रांसपोर्ट कंपनी बनी। इतना ही नहीं उन्होंने हल्द्वानी में वाहन प्रशिक्षण केंद्र खोलकर ड्राइविंग के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना भी शुरू किया। 1931 में हरिप्रसाद ने गोलमेज सम्मेलन में पूना पैक्ट के लिए बाबा साहेब आंबेडकर का समर्थन करते हुए लंदन तार भेजा। 1924 में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने उत्तराखंड में शिल्पकारों का वृहद सम्मेलन आयोजित किया। जिसके बाद कुमाऊं शिल्पकार सभा का जन्म हुआ।
उन्हीं के प्रयासों से 1930-40 के मध्यम कुमाऊं-गढ़वाल में भूमिहीन शिल्पकारों को ब्रिटिश सरकार ने 30 हजार एकड़ कृषि भूमि वितरित की। उन्होंने शिक्षा की अलख जगाने के लिए शिल्पकार सभा के माध्यम से 150 प्राथमिक और प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना की।
साल 1934 में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक समता का प्रकाशन शुरू किया। हरिप्रसाद टम्टा अछूतों की लड़ाई लड़ने वाले अकेले नहीं थे उनका पूरा परिवार ही छुआछूत के खिलाफ इस लड़ाई में जुटा था। हरिप्रसाद टम्टा की भतीजी लक्षमी देवी टम्टा न सिर्फ उत्तराखण्ड की पहली दलित ग्रजुएट थीं बल्कि समता की सम्पादक होने की वजह से उत्तराखंड की पहली महिला सम्पादक भी थी।
अंग्रेजों ने दिया रायबहादुर का खिताब
दलितों के लिए उनके संघर्ष और समतामूलक समाज के लिए उनके प्रयासों को देखते हुए अंग्रेजों ने 1935 में हरी प्रसाद टम्टा को रायबहादुर की उपाधि दी। यह सम्मान उस दौर में किसी दलित को मिलना बेहद दुलर्भ क्षण था।
सेना के लिए खोला रास्ता
ब्रिटिश सेना में शिल्पकार वर्ग की भर्ती नहीं हुआ करती थी। उन्हें डरपोक जाति समझा जाता था। लेकिन इसके लिए मुंशी जी ने लंबा संघर्ष किया। द्वितीय विश्व युद्ध में पांच हजार शिल्पकारों से पायनियर बटालियनों का निर्माण किया गया। मुंशी जी ने ही बताया कि यह जाति बंदूक बनाना व चलाना दोनों जानती है। जिसके बाद से शिल्पकारों की सेना में भर्ती होने लगी।
अल्मोड़ा के चेयरमैन भी रहे
सामाजिक समरसता के लिए संघर्षरत हरि प्रसाद टम्टा आजादी से पहले अल्मोड़ा नगर पालिका के चेयरमैन भी रहे। 1945 में वह अल्मोड़ा के चेयरमैन चुने गये। राजनीतिक रूप से सक्रिय हरी प्रसाद टम्टा ने अपने कार्यकाल में अल्मोड़ नगर पालिका में उल्लेखनीय कार्य किए। इसके अलावा हरी प्रसाद टम्टा 1934 से 1940 तक आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास ऐसोसिएशन की उप्र शाखा के उपाध्यक्ष रहे। साल 1937 में वह गोंडा संयुक्त प्रांत से विधानसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए।
आजीवन दलितों के उत्थान के लिए संघर्षरत मुंशी रायबहादुर हरी प्रसाद टम्टा का आज के ही दिन 23 फरवरी को 1960 को इलाहबाद में उनका निधन हो गया।