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valentine’s day : आज भी पहाड़ों में गूंज रही हैं साहस और संघर्ष भरी ये प्रेमकथाएं

Pen Point Dehradun : उत्तराखंड में अमर प्रेम गाथाओं की झलक मिलती है, जो न केवल प्रेम और समर्पण की मिसाल हैं, बल्कि वीरता, त्याग और संघर्ष की अद्भुत कहानियां भी समेटे हुए हैं। ये लोकगाथाएं सदियों से गाई जाती रही हैं और समाज में प्रेम, संस्कृति और परंपराओं की गहरी छाप छोड़ गई हैं। आइए इन अमर प्रेम कथाओं को एक नई दृष्टि से देखें:

राजुला-मालूशाही: प्रेम और पुनर्जन्म की गाथा

उत्तराखंड की सबसे लोकप्रिय प्रेम गाथा, जो बैराठ के राजकुमार मालूसाह और भोट के राजा सुनपति शौका की पुत्री राजुला की अमर प्रेम कहानी बयां करती है। भाग्य का चक्र ऐसा चला कि दोनों बचपन में किए गए अपने माता-पिता के वचन को भूल गए, लेकिन प्रेम ने उन्हें सपनों में जोड़ दिया।

मालूसाह जोगी का वेश धर भोट देश पहुंचे, लेकिन वहां विष देकर उनकी हत्या कर दी गई और राजुला का विवाह किसी और से करवा दिया गया। परंतु प्रेम की शक्ति अमर होती है—कत्यूर सेना के तंत्रबल से मालूसाह को पुनर्जीवित किया गया, शत्रुओं को पराजित किया गया और राजुला को सम्मानपूर्वक बैराठ लाया गया। यह प्रेम की जीत थी, एक अमर गाथा!

भाना-गंगनाथ: प्रेम, बलिदान और देवत्व की कहानी

कुमाऊं के लोकमानस में गूंजती यह गाथा डोटीगढ़ के राजकुमार गंगनाथ और अल्मोड़ा की सुंदर भाना जोश्याणी की कहानी है। स्वप्न में देखे गए प्रेम के पीछे गंगनाथ राजवैभव त्यागकर संन्यासी के रूप में अल्मोड़ा पहुंचते हैं। लेकिन प्रेम की राह आसान कहां! राज खुला, संघर्ष हुआ, और अंततः भाना और गंगनाथ दोनों की मृत्यु हो गई। पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती—गंगनाथ एक लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे, जो अन्याय का प्रतिकार करते हैं। प्रेम और बलिदान की यह गाथा अमर हो गई।

जीतू-भरणा: प्रेम, आंछरियां और अधूरी कहानी

गढ़वाल के जीतू बगड़वाल की कहानी किसी रोमांचक उपन्यास से कम नहीं। एक सफल व्यापारी, बहन को लेने ससुराल गया और वहीं भरणा से प्रेम कर बैठा। लेकिन यह प्रेम कथा नियति को मंजूर नहीं थी। जीतू की बांसुरी की धुन से मोहित आंछरियां (पर्वतीय परियां) उसे अपने साथ ले जाने को तत्पर हो गईं। जीतू ने उन्हें वचन दिया, और नियत दिन को अपने प्रेम को अधूरा छोड़ आंछरियों के साथ चला गया। यह प्रेम कहानी अधूरी ही सही, लेकिन इसकी मिठास और दर्द आज भी लोकगीतों में जीवित है।

अमरदेव सजवाण और तिलोगा तड़ियाल: प्रेम के संकेत और प्रतीक्षा का संकल्प

टिहरी गढ़वाल के वीर अमरदेव सजवाण और तिलोगा तड़ियाल की प्रेम कहानी प्रतीक्षा और संकेतों की रोमांचक कथा है। समाज के बंधनों को दरकिनार कर दोनों चोरी-छिपे मिलने लगे। उनका मिलन एक मशाल (रांका) के संकेतों से तय होता था—एक जलती मशाल प्रेमी की प्रतीक्षा का प्रतीक थी, और उसे बुझाना मिलने का संकेत। लेकिन यह प्रेम भी आसान न था, परिस्थितियां बदलती गईं और प्रेमी बिछड़ गए। फिर भी, उनकी प्रेमकथा आज भी याद की जाती है, जैसे किसी अंधेरी रात में जलती वह मशाल।

उत्तराखंड की इन प्रेम कहानियों में केवल रोमांस ही नहीं, बलिदान, साहस, संघर्ष और पुनर्जन्म के भी तत्व हैं।** ये सिर्फ किस्से नहीं, बल्कि लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जो प्रेम की शक्ति और समाज की सीमाओं के बीच झूलती इंसानी भावनाओं को दर्शाती हैं। इन कहानियों की आत्मा आज भी पहाड़ों की ठंडी हवा में, मंदिरों के घंटों में और लोकगीतों की गूंज में जीवित है।

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