उत्तराखंड के जंगबाजों ने किये थे नेताजी के हाथ मजबूत
Pen Point, Dehradun : आज ही के दिन यानी 9 जुलाई 1944 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (INA) की कमान संभाली थी। अंग्रेज हुकूमत से भारत को आजाद कराने के मकसद से बनाई गई इस फौज का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा। यहां के अनेक रणबांकुरे नेताजी के साथ शामिल हो गए थे। आजाद हिंद फौज का इतिहास बताता है कि 2600 सैनिकों वाली गढ़वाल रायफल की दो बटालियन उसमें शामिल हो गई थी। पहले ये बटालियनें भारतीय ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा थी। किसी भी भारतीय बटालियन से आजाद हिंद फौज में जाने वाले सैनिकों में यह सबसे बड़ी तादाद थी। देशप्रेम के चलते ये गढ़वाली सैनिक नेता जी के साथ खड़े हो गए। इनमें से 600 सैनिकों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ते हुए अपनी शहादत भी दी।
1942 में जब दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था, तब भारत को सशस्त्र युद्ध के जरिए से अंग्रेजों से आजादी दिलाने की एक कोशिश शुरू हुई। जिसके तहत रास बिहारी बोस ने 1943 में जापान की मदद से टोकियो में आजाद हिंद फौज की स्थापना की। तब इसमें उन सैनिकों को शामिल किया गया, जो अंग्रेजों की और से लड़ते हुए जापान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए थे। इसके एक साल बाद नेता जी जापान पहुंचे। जहां नौ जुलाई 1944 को उन्होंने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली। नेताजी के उत्साही नेतृत्व और देशप्रेम की भावना ने अनेक युवाओं और सैनिकों को इस फौज से जुड़ने को प्रेरित किया। जिसमें उत्तराखंड के सैनिकों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
आजाद हिंद फौज आईएनए का ऑफीसर्स ट्रेनिंग सेंटर सिंगापुर में था। जिसकी कमांड ले.कर्नल चंद सिंह नेगी के पास थी। इस सेंटर में अफसरों की ट्रेनिंग होती थी । इसके अलावा मेजर देव सिंह दानू के पास पर्सनल गार्ड बटालियन की जिम्मेदारी थी। जबकि ले.कर्नल बुद्धि सिंह रावत पर्सनल एड्यूजेंट का काम संभाले हुए थे।
फर्स्ट बटालियन को कमांड करते थे ले.कर्नल पीएस रतूड़ी। जिनको माउडॉक की जंग में बहादुरी के लिए रदार ए जंग की उपाधि दी गई। उन्हें खुद सुभाष चंद बोस ने अपने हाथों से सम्मानित किया था। इसी तरह मेजर पद्म सिंह गुसांई थर्ड बटालियन के कमांडर थे।
इसी साल 20 मई को बागेश्वर में आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे राम सिंह चौहान का निधन हुआ। 103 साल तक जिये चौहान 1942 में गढ़वाल राइफल की बटालियन के साथ नेता जी के साथ जुड़े थे। एक दशक पहले तक उत्तराखंड के विभिन्न गांवों में आजाद हिंद फौज के ऐसे सैनिक मिल जाते थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी और यातनाएं सही।