ग्लेशियर से बनी झीलों से क्या खतरा है, इसरो ने जारी की रिपोर्ट
Pen Point, Dehradun : गर्म होती धरती के कारण हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय में स्थित इन ग्लेशियरों से बनी झीलें भी उसी तेजी से विस्तार ले रही हैं। निचले इलाकों में बाढ़ के लिये जिम्मेदार इन झीलों का आकार बढ़ता रहा तो हिमालय से निकलने वाली नदियां भीषण तबाही ला सकती हैं। भारतीय अंतरक्षि अनुसंधान संस्थान इसरो की हालिया रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है।
इसरो की अधिकारिक वेबसाइट पर 22 अप्रैल को जारी इस रिपोर्ट में के मुताबिक हिमालय में 27 प्रतिशत से ज्यादा ग्लेशियर से बनी झीलों का आकार लगातार बढ़ रहा है। ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण दुनियाभर में यह स्थिति देखी जा रही है। खास तौर से 1984 के बाद से जिन झीलों के आकार में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, उनमें से 130 झीलें भारत में हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक चुनौतिपूर्ण हिमालयी क्षेत्र की निगरानी और अध्ययन के लिये सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग एक कारगर माध्यम है। 1984 से 2023 तक भारतीय हिमालयी नदी घाटियों के जलागम वाले इलाकों की निगरानी करने वाले लंबी अवधि के उपग्रह चित्र ग्लेशियरों की स्थति में महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत दे रहे हैं। 2016-17 के दौरान 10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 झीलों की पहचान की गई थी, जिनमें से 676 ग्लेशियर से बनी झीलें हैं और 1984 के बाद से इनके आकार में वृद्धि हुई है। 676 झीलों में से 601 का आकार दोगुने से अधिक हो गया है, जबकि 10 झीलें 1.5 से दो गुना और 65 झीलें 1.5 गुना बढ़ी हैं।
तेजी से बढ़ रही इन झीलों में 130 भारत में स्थित हैं, जिनमें से 65 सिंधु नदी घाटी में, सात गंगा नदी घाटी में और 58 ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में स्थित हैं। इन झीलों की समुद्र तल से उंचाई का आकलन करने पर पता चलता है कि 314 झीलें 4,000 से 5,000 मीटर की सीमा में और 296 झीलें 5,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर स्थित हैं।
रिपोर्ट में झीलों की निर्माण प्रक्रिया के आधार पर उनकी चार श्रेणियां भी बताई गई हैं। हिमोढ़-बांध (मोराइन द्वारा रोका गया पानी), बर्फ-बांध (बर्फ द्वारा रोका गया पानी), कटाव (कटाव द्वारा निर्मित अवसादों में रोका गया पानी) और अन्य ग्लेशियर से बनी झीलें।
इसरो की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश में 4,068 मीटर की ऊंचाई पर घेपांग घाट ग्लेशियल झील (सिंधु बेसिन) में लंबी अवधि में हुए बदलावों पर प्रकाश डाला, जिसमें 1989 से 2022 के बीच 36.49 हेक्टेयर से 101.30 हेक्टेयर तक आकार में 178 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई गई। वृद्धि की दर लगभग 1.96 हेक्टेयर प्रति वर्ष है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि उत्तराखंड हिमालय में भी ग्लेशियर से बनी झीलों में लगातार बदलाव हो रहा है। साल 2014 में केदारनाथ में गांधी सरोवर ग्लेशियर से बनी झील के फटने से भीषण आपदा आई थी। जिसमें बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हुआ था। इस त्रासदी को लंबे समय तक भुलाया नही जा सकता। इसके अलावा साल 2020 में चमोली जिले में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी में ग्लेशियर के टूटने से सर्दियों में ही बाढ़ आई थी। जबकि सर्दियों में ग्लेशियर कम पिघलने के कारण नदियों में पानी कम हो जाता है।