जब टिहरी रानी ने राज दरबार के पास करवाया था चारधाम मंदिरों का निर्माण
-टिहरी राजा प्रतापशाह की चौथी पत्नी रानी गुलेरिया ने अपने पुत्र कीर्तिशाह को राजपाट सौंपकर टिहरी राज दरबार के समीप गंगा तट पर स्थापित किए थे चारधामों के मंदिर
Pen Point, Dehradun : बीते दिनों दिल्ली में श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट की ओर से केदारनाथ धाम मंदिर का भूमि पूजन खूब विवादों में आया था। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस भूमि पूजन कार्यक्रम के शामिल होने की खूब आलोचनाएं हुई तो साथ ही केदारनाथ धाम के नाम पर उसकी रेप्लिका बनाने के इस विचार के खिलाफ चारधाम के पंडे पुरोहित भी विरोध पर उतर आए। तो वहीं कांग्रेस ने भी दिल्ली में केदारनाथ धाम मंदिर बनाने के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के शामिल होने पर भाजपा को घेरा तो भाजपा ने जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस शासन काल में मुंबई में भी बदरीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया गया था। हालांकि, इसके बाद राज्य सरकार ने चारधामों के नाम पर ट्रस्ट और उनके मिलते जुलते मंदिरों के निर्माण पर रोक लगाने का फैसला लिया। आपको जानकर हैरानी होगी कि करीब सवा सौ साल पहले टिहरी राजा की माता और अलग अलग समय पर टिहरी राजगद्दी की संरक्षक रही व प्रतापशाह की पत्नी रही गुलेरियाल रानी ने अपने आखिरी दिनों में भी टिहरी दरबार में गंगा तट पर चारों धामों के मंदिरों की स्थापना कर वहां नियमित पूजा पाठ की व्यवस्था भी करवाई थी।
गुलेरिया राणी टिहरी के राजा प्रतापशाह की चौथी पत्नी थी। प्रतापशाह की दो रानियों से कोई संतान पैदा नही हो सकी थी तो उन्होंने हिमाचल के कुमारसेण कठुराई की राजकुमारी से तीसरा विवाह किया, रानी के दो पुत्र व एक पुत्री पैदा हुए लेकिन पुत्र पैदा होने के कुछ समय बाद ही असयम काल के ग्रास बन गए। इसके बाद हिमाचल के ही मंडी राज्य से गुलेरिया परिवार की पुत्री से प्रतापशाह ने विवाह किया। जिससे उन्हें कीर्ति शाह समेत तीन पुत्र और 2 पुत्रियां पैदा हुईं।
साल 1887 में प्रतापशाह के निधन के समय कीर्ति शाह की उम्र 13 वर्ष की थी लिहाजा राजनैतिक संकट से निकलने के लिए गुलेरिया रानी ने अपने बेटे के संरक्षक के रूप में सत्ता संभालना शुरू कर दिया। 1891 में कीर्तिशाह जब अपनी पढ़ाई कर वापिस टिहरी राज्य लौटे तो 17 मार्च 1892 को गुलेरिया रानी ने कीर्ति शाह को राज्यभार सौंप दिया। और उसके बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह से धार्मिक कार्यों में समर्पित कर दिया। गुलेरिया रानी को टिहरी राज्य की ओर से एक बड़ी रकम ‘बंधान’ के रूप में मिलती थी जिसे वह राज्य की गरीब महिलाओं, ब्राह्मणों और गरीब परिवारों को दान करती थी। राज दरबार की ओर से मिलने वाली ‘बंधान’ का बड़ा हिस्सा गुलेरिया रानी राज्य के कई जरूरतमंद व्यक्तियेां को मासिक तौर पर बांट देती थी। धार्मिक कार्यों में लीन रहने वाली गुलेरिया रानी के बारे में डॉ. शिव प्रसाद डबराल अपनी किताब टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास में लिखते हैं कि रानी गुलेरिया ने अपने आभूषण बेचकर जो रकम जुटाई उससे पुराने दरबार के निकट गंगा तट पर बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री मंदिरों का निर्माण करवाया जहां उन्होंने एक धर्मशाला का निर्माण भी करवाया। उस दौरान चारधाम की पैदल यात्रा हुआ करती थी और गंगोत्री यात्रा के लिए पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को इस धर्मशाला में रहने व भोजन की निशुल्क व्यवस्था दी जाती साथ ही तीर्थयात्री गंगा तट पर रानी गुलेरिया की ओर से बनाए गए बदरीनाथ, गंगोत्री और केदारनाथ मंदिरों में पूजा पाठ भी किया जाता था।
गंगा तट पर बनाए गए तीनों धामों के मंदिरों के संचालन के लिए रानी गुलेरिया ने पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था भी की थी साथ ही मंदिरों के संचालन के लिए एक व्यवस्था समिति का भी गठन किया था। रानी गुलेरिया का निधन 70 वर्ष की आयु में 23 अगस्त 1926 को हुआ था।