आज : जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया
कभी सर्वाधिक पोलियो ग्रस्त देशों की सूची में अव्वल देश पर तीन दशक में पोलियो मुक्त होने की उपलब्धि भी की हासिल
PEN POINT, DEHRADUN- भारत, दुनिया में आबादी के लिहाज से दूसरा बड़ा देश लेकिन हर महामारी से बच निकलने वाला सबसे तेज देश, जब पूरी दुनिया में पोलियो का हाहाकार मचा था तब यह सबसे बड़ी आबादी वाला देश हर गली, हर मोहल्ले में घुसकर बच्चों को पोलियो खुराक पिलाकर देश को पोलियो मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रहा था। आखिरकर 25 फरवरी 2012 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर उसे पोलियो ग्रसित देशों की सूची से निकाला तो देश ने आराम नहीं किया आज भी एक दशक बीतने के बाद भी देश भर में लाखों कर्मी बच्चों को पोलियो ड्राप पिलाकर इस देश को मिला पोलियो मुक्त देश का टैग बचाने के लिए काम कर रहे हैं।
ये भारत की सरकार ही नहीं उसकी जनता की भी कामयाबी है, जिसने पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। भारत में पोलियो महामारी की तरह बड़ा खतरा बना हुआ था। वर्ष 2014 में भारत पोलियो से मुक्त हुआ था। वर्ष 1981 में भारत में पोलियो के 38090 मामले थे, जो वर्ष 1987 में कम होकर 28,264 मामले ही रह गए। वर्ष 2009 में दुनिया में सबसे ज्यादा पोलियो के 741 मामले भारत में थे। वर्ष 2010 में ये तादाद 43 ही रह गई। मगर ये आंकड़ा भी कम नहीं था क्योंकि दुनिया में पोलिया को तकरीबन नामोनिशान खत्म हो गया था। कुछ देशों के साथ सिर्फ भारत में पोलियो का दानव अपना शिकार बना रहा था। सार्ल 2010 के बाद पोलियो उन्मूलन अभियान को युद्धस्तर पर आगे बढ़ाया जाने लगा। शायद दुनिया में कहीं भी इतने बड़े पैमाने पर इतने कामयाब अभियान की मिसाल और नहीं है। उत्तर प्रदेश में 2010 में पोलियो का आखिरी मामला आया था जबकि 2011 में पूरे भारत में पोलियो का आखिरी मामला आया था। 24 लाख पोलियो कार्यकर्ता, 1.5 लाख कर्मचारी, सालाना 1000 करोड़ रुपये का बजट, सालाना 6 से 8 बार पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम, हर कार्यक्रम में 17 करोड़ बच्चों को वैक्सीन। ये आंकड़े हैं उस विराट अभियान के, जो पूरी दुनिया के सामने एक बेमिसाल नजीर बना।
पोलियो मुक्त भारत का अभियान शुरू करना आसान नहीं था। जब यह अभियान शुरू हुआ तो उस समय कई चुनौतियां सामने आई थी। वैक्सीन को हर 5 वर्ष तक के बच्चे तक पहुंचाना था हर बीमारी में खुद आदमी चलकर स्वास्थ्य विभाग के पास आता है लेकिन इस टीकाकरण में स्वास्थ्य विभाग को घर घर और बच्चे बच्चे तक जाना था। उत्तर प्रदेश और बिहार में ज्यादा केस थे इसलिए वहां पर ज्यादा काम करना पड़ा जिस समय टीकाकरण का कार्य चल रहा था लोगों के मन में गलत धारणाएं आ रही थी। वेक्सीन हमें क्यों दी जा रही है लोगों के मन में यह चल रहा था कि यह नपुंसकता के लिए हमें दी जा रही है, जिससे आगे कोई भी जन्म नहीं ले पाए इस बात से लोगों को निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। जनसंख्या ज्यादा थी और लोगों में जागरूकता बहुत कम, लोगों को जागरुक करना टीकाकरण के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था।
पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान भारत ने डब्ल्यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणाम स्वरूप 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया। इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसंबर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं। यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियो माइलिटिस की दर में काफी कमी आई। हर महीने में 8 बार बच्चे को पोलियो की खुराक पिलाई जानी थी। दूर-दूर इलाकों में पहुंचना बहुत मुश्किल हो रहा था, लेकिन फिर भी पोलियो उन्मूलन में लगी टीम कार्य करती रही।
आज करीब एक दशक हो गया है और देश में एक भी पोलियो का मामला नहीं आया है। लेकिन, धर्म आधारित अंधविश्वासों के चलते हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही दुनिया के दो देश है जो पोलियो मुक्त नहीं हो सके हैं। क्योंकि, इन देशों के कट्टरवादी मानते हैं पोलियो ड्राप असल में पश्चिमी मुल्क की साजिश है कि मुस्लिमों को नपुंसक बनाया जाए और मुस्लिमों की आबादी पर लगाम लगाई जाए, इस कारण पाकिस्तान में आज भी पोलियो उन्मूलन में लगे कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले होते हैं।