चौलाई के लड्डू से क्यों खफा हैं बदरी केदार मंदिर समिति
– इस साल बदरीनाथ मंदिर परिसर में यात्रियों को प्रसाद के रूप में नहीं मिल सकेंगे चौलाई के लड्डू, बदरीनाथ धाम के हितधारकों के विरोध के चलते बदरी केदार मंदिर समिति ने चौलाई के लड्डू पर लगाई रोक
Pen Point, Dehradun : साल था 2016, तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की पहल पर बदरी केदार मंदिर समिति ने बदरीनाथ धाम और केदारनाथ धाम में चौलाई से बनने वाले लड्डू को प्रसाद के तौर पर वितरित करने की योजना शुरू की। इस योजना के तहत स्थानीय महिलाओं को जोड़कर चौलाई के लड्डू बनाकर मंदिर परिसर में ही एक स्टॉल भी दिया गया। देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों को भी चौलाई के लड्डू का स्वाद भी भाने लगा। मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाने के साथ ही तीर्थयात्री इसे घरों के लिए भी खरीदकर ले जाने लगे। चौलाई के लड्डू किस कदर पसंद किए जाते रहे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते साल यात्रा सीजन में बदरीनाथ मंदिर परिसर में ही महिलाओं ने 1 करोड़ रूपए से अधिक की कीमत के लड्डू बेचे तो बदरी केदार मंदिर समिति को शुल्क के रूप में 38 लाख रूपए भी दिए। लेकिन, अब बदरी केदार मंदिर समिति के सदस्यों ने चौलाई के लड्डू पर आंखे तररेसनी शुरू कर दी है। भारी विरोध के चलते अब तक इस साल बदरीनाथ धाम परिसर में चौलाई के लड्डू नहीं बिक सकेंगे। इसके लिए बदरी मंदिर केदार समिति ने चौलाई के लड्डू तैयार करने वाली महिलाओं को भी परिसर में प्रसाद के रूप में लड्डू न बचने का फरमान सुना दिया है। अब प्रसाद के रूप में बदरीनाथ धाम मंदिर परिसर में मुरमुरे, इलायची दाना व चने बेचे जाएंगे।
स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना और महिलाओं को स्वरोजगार देना बदरी केदार नाथ मंदिर समिति के सदस्यों को रास नहीं आ रहा है। करीब सात सालों से बदरीनाथ मंदिर परिसर में प्रसाद के तौर पर चौलाई के लड्डू बेचकर आजीविका चला रही स्थानीय महिलाओं को इस साल चौलाई के लड्डू न बेचने की हिदायत दी गई है। हिमालयी क्षेत्रों में चौलाई पारंपरिक रूप से उगाए जाने वाले मोटे अनाजों में शामिल रहा है। बीते सालों में चौलाई उत्पादन का रकबा तेजी से गिरा है फिलहाल अब यह उन इलाकों में ही उगाया जाता है जहां बहुत ज्यादा ठंड पढ़ने की वजह से अन्य फसलों के उत्पादन की संभावनाएं न्यून है। सदियों से पहाड़ के खान पान का हिस्सा रहे चौलाई को नया जीवन देने के लिए 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे प्रसाद के तौर पर बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में वितरित करने का फैसला लिया था। स्थानीय महिलाओं को साथ लेकर चौलाई के लड्डू तैयार किए गए और यात्रियों को पेश किए गए। इसका अनोखा स्वाद और पहाड़ की पहचान के चलते इस यात्रियों ने भी हाथों हाथ लिया। आलम यह था कि अगले ही साल इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए मंदिर समिति ने एक ठेकेदार को चौलाई के संकलन और प्रसाद बनाने में तेजी लाने के लिए यह काम सौंप दिया। ठेकेदार का काम अलग अलग क्षेत्रों से चौलाई एकत्र करनी थी जबकि लड्डू बनाने और उसे मंदिर परिसर में प्रसाद के रूप में बेचने का काम स्थानीय महिलाएं ही कर रही थी। भारी मांग के चलते यह मंदिर समिति के लिए भी आय का स्रोत बन गया था। बीते साल ही महिलाओं ने बदरीनाथ मंदिर परिसर में 1 करोड़ रूपए से अधिक कीमत के चौलाई के लड्डू का प्रसाद बेचा और शुल्क के तौर पर 38 लाख रूपए मंदिर समिति को सौंपे। लेकिन, स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन देने वाली यह योजना शुरू से ही मंदिर समिति के कुछ सदस्यों की आंखों में खटक रही थी। चौलाई के लड्डू के प्रसाद के तौर पर प्रचलित होने के चलते इलायची दाना, मुरमुरे के व्यापारियों को भारी नुकसान हो रहा था जो सालों से बदरीनाथ समेत अन्य धामों में प्रसादों की आपूर्ति करते हैं। मंदिर समिति के सदस्यों के जरिए इन बड़े व्यापारियों ने चौलाई के लड्डू को प्रसाद के तौर पर बाहर करने के लिए खूब दबाव बनाया। आखिरकार अब बदरी केदार मंदिर समिति ने भी इलायची मुरमुरे चना व्यापारियों के दबाव में आकर चौलाई के लड्डू को प्रसाद के तौर पर बेचने पर रोक लगा दी है। इसके बाद अब इस काम में लगी महिलाओं से भी काम छिन गया है तो साथ ही प्रसाद के रूप में अपने साथ पहाड़ का महत्वपूर्ण उत्पाद लेकर जाने वाले यात्रियों को भी पहाड़ की खूशबू नहीं मिल सकेगी।
बेकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय बताते हैं कि मंदिर समिति के कुछ सदस्य इसका विरोध कर रहे थे कि बदरीनाथ धाम में पारंपरिक रूप से इलायची दाना, मुरमुरे और सूखे चने ही प्रसाद के रूप में चढ़ते आए हैं और चौलाई के लड्डू के रूप में नई परंपरा शुरू की गई है जो अस्वीकार है लिहाजा समिति के सदस्यों के दबाव में यह फैसला लेना पड़ा। वह कहते हैं कि समिति के सदस्यों को मनाया जा रहा है साथ ही अन्य रास्ते भी ढूंढे जा रहे हैं कि चौलाई के लड्डू तीर्थयात्रियों को मिलते रहे और महिलाओं को भी रोजगार मिलता रहे।