आरटीआई के मामले में माफीदार क्यों है पीरान कलियर दरगाह ?
-राज्य सूचना आयोग की टिप्पणी के बाद वक्फ बोर्ड में हचलल, आयोग ने कहा जब श्रीबदरीनाथ और केदारनाथ धाम मंदिर से जुड़ी सूचनाएं आरटीआई में मांगी जा सकती हैं तो फिर पिरान कलियर की क्यों नहीं ?
Pen Point, Dehradun : धार्मिक आस्था के केन्द्र श्रीबदरीनाथ और केदारनाथ धाम मंदिर की तरह पवित्र दरगाह पिरान कलियर से सम्बंधित सूचनाएं भी सूचना के अधिकार के तहत दी जानी चाहिए। इस सम्बंध में उत्तराखण्ड सूचना आयोग ने अपने एक अंतरिम आदेश में कहा है कि राज्य में एक ही जैसी संस्थाओं के लिए दो नियम लागू नहीं हो सकते, जब श्रीबदरीनाथ और केदारनाथ धाम मंदिर से जुड़ी सूचनाएं आरटीआई में मांगी जा सकती हैं तो फिर पिरान कलियर की क्यों नहीं ? आयोग की इस टिप्पणी के बाद उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड में हलचल मची हुई है। मामले की अगली सुनवाई से पहले ही वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी मुख्तार मोहसिन ने सभी वक्फ प्रबंधकों को आदेश जारी कर तत्काल प्रभाव से लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करते हुए मांगी गई सूचना उपलब्ध कराने को कहा है। हालांकि मुख्तार मोहसिन के प्रोएक्टिव होकर किए गए इस आदेश को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं। संदेह जताया जा रहा है कि जब सूचना आयोग ने अपने अंतिरम आदेश में सिर्फ पिरान कलियर का जिक्र किया है तो उन्होंने वक्फ की सभी सम्पत्तियों के आलोक में यह आदेश जारी क्यों किया ? कहीं मोहसिन का यह आदेश वक्फ की सम्पत्तियों को खुर्दबुर्द करने में जुटे संगठित गिरोह का हथियार न बन जाए।
दरअसल, उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड की प्रदेशभर में हजारों करोड़ की सम्पत्ति है। इनमें से कुछ सम्पत्तियां खुदबुर्द की जा चुकी हैं या इसकी तैयारी की जा रही है। खासतौर पर पवित्र दरगाह पिरान कलियर में तो चढ़ावे और दान के रूप में आए पैसों के साथ ही तमाम तरह के ठेकों में कई घपले घोटाले किए जा रहे हैं। वर्ष 2022 में जब पिरान कलियर वार्ड नम्बर 8 निवासी दानिश सिद्दिकी Danish Sabri ने आरटीआई के तहत वक्फ बोर्ड से दरगाह के सम्बंध में जानकारी मांगी तो अधिकारियों ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि पिरान कलियर लोक प्राधिकारी नहीं है और वहां लोग सूचना अधिकारी की व्यवस्था लागू नहीं होती। प्रकरण जब सूचना आयोग पहुंचा तो राज्य सूचना आयुक्त Yogesh Bhatt ने सम्बंधित अधिकारियों का जवाब तलब किया।
बीते 30 जून को आयोग ने एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए बोर्ड के अधिकारियों को सूचना न दिए जाने के सम्बंध में विधिक कठिनाई स्पष्ट करने को कहा था। इसके साथ ही अगली सुनवाई 21 अगस्त को निर्धारित की गई थी, लेकिन इससे पहले ही गत 5 जुलाई को वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी मुख्तार मोहसिन ने सभी वक्फ प्रबंधकों को आदेश जारी कर तत्काल प्रभाव से लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। पिरान कलियर दरगाह में होने वाली गड़बड़ियों के बारे में वाकिफ लोगों का कहना है कि जब आयोग में मामला सिर्फ पिरान कलियर दरगाह को लेकर है तो लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करने के आदेश वक्फ बोर्ड के सभी प्रबंधकों को क्यों जारी किए गए। दरअसल, वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों पर एकाधिकार जमाने वाले और उसे खुर्दबुर्द करने में लगे रसूखदार लोग नहीं चाहते कि पिरान कलियार की व्यवस्था पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बने। वो चाहते हैं कि किसी भी सूरत में दरगाह आरटीआई के दायरे में न आए। वो जानते हैं कि जब तक सूचना आयोग का इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता तब तक वे हायर कोर्ट में इसके खिलाफ अपील नहीं कर सकते, क्योंकि अपीलीय अदालत अंतरिम आदेश में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि ट्रायल कोर्ट का अंतिम फैसला न आ जाए।
अब हो यह सकता है कि वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी मुख्तार मोहसिन के ऑफिस आर्डर के खिलाफ वो कोर्ट से स्टे ले आएं ताकि आयोग में चल रही सुनवाई प्रभावित हो सके। चूंकि आयोग के अंतरिम आदेश में केवल पिरान कलियार की बात कही गई थी और मोहसिन ने सभी वक्फ कमेटियों को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करने का आदेश जारी कर दिया है इसलिए उनके आदेश पर स्टे लिया जा सकता है। अब यह पहचान करना जरूरी है कि वो कौन लोग हैं जो पिरान कलियर जैसी पवित्र दरगाह में हो रहे घपले घोटालों पर रोक नहीं लगाना चाहते और धामी सरकार के भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस नीति को सफल नहीं होने देना चाहते। इस मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट दानिश सिद्दिकी की दाद देनी पड़ेगी कि अल्पसंख्यक समुदाय से होने के बावजूद वो पूरी ताकत के साथ पिरान कलियार दरगाह में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और उन्होंने इसके लिए सूचना के अधिकार को सशक्त हथियार बनाया है।
… इसलिए है जरूरी
कुछ साल पहले मशहूर दरगाह पिरान कलियर में चढ़ावे के लाखों रुपये का घपला सामने आया था। ये वो पैसा था जो मनीअर्डर के जरिए दरगाह में चढ़ावे के लिए भेजा गया। हैरत वाली बात ये है कि पिछले कई सालों से दरगाह के खाते में मनीऑर्डर से भेजी गई रकम जमा ही नहीं हुई। अकिदतमंदों की ओर से दरगाह के लिए लाखों रुपए के मनीऑर्डर दान के रूप में भेजे गए, लेकिन एक भी रुपया दरगाह के खाते में नहीं डाला गया, जबकि दरगाह कर्मचारियों की ओर से सैकड़ों मनीआर्डर इस दरम्यान रिसीव किए गए। मामले का खुलासा उस समय हुआ था जब कलियर निवासी साजिद व इरशाद ने स्थानीय डाकघर से मनीआर्डर से संबंधित जानकारियां सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी। संबंधित लोक सूचना अधिकारी ने मनिआर्डरों की रिसिविंग सत्य प्रतिलिपियों को उपलब्ध कराया, जिसके बाद आरटीआई एक्टिविस्ट ने दरगाह दफ्तर जाकर जिम्मेदार अधिकारियों से दरगाह के खाते में डाली गई मनीआर्डर राशि की जानकारी ली। लाखों की मनीआर्डर राशि दरगाह के खाते में जमा करने के बजाए हड़प ली गई थी। उस वक्त तत्कालीन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मंगेश घिल्डियाल ने मामले की जांच के आदेश दिए थे।
(लेखक दीपक फर्सवाण वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनकी फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।)