Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • दावानल : हर साल पहाड़ इस मानव जनित आपदा से क्यों जूझ रहे हैं?

दावानल : हर साल पहाड़ इस मानव जनित आपदा से क्यों जूझ रहे हैं?

Pen Point, Dehradun : इस साल उत्तराखंड में दावानल ने भारी तबाही मचाई है। आग की लपटें गांवों और कस्बों तक पहुंचने लगी हैं। हर गांव में लोग हरे पेड़ों और झाड़ियों की टहनियों से झाड़ू बनाकर जंगल की आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं। खुशनुमा मौसम के लिये राज्य के पहाड़ी इलाकों में घूमने आए पर्यटक जंगल से धुआं निकलते देख हैरान हो रहे हैं। धुएं के कारण हवा की गुणवत्ता और दृश्यता पर असर पड़ा है. स्थानीय लोग आसमान की ओर देख रहे हैं और बारिश के देवता से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे जंगल की आग पर काबू पाने और उसे शांत करने में उनकी मदद के लिए आएं।

आम लोगों के साथ ही उत्तराखंड वन विभाग के लिए जंगल की आग एक बड़ी समस्या बनी हुई है, खासकर गर्मियों के दौरान। इस साल पहाड़ी राज्य के विभिन्न हिस्सों से जंगल में आग लगने की एक हजार से अधिक घटनाएं सामने आई हैं। भीषण आग ने 1,318 हेक्टेयर भूमि (8 मई तक का डेटा) को प्रभावित किया है। वन विभाग ने जंगल की आग से 29 लाख रुपये से अधिक के नुकसान का आकलन किया है। आग की लपटों को बुझाने में मदद के लिए वन कर्मचारियों, स्थानीय लोगों और अन्य लोगों की भारी तैनाती की गई है। यहां तक कि भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर भी इस ऑपरेशन में शामिल हैं।

दावानल से गंभीर हुए हालात पर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि सरकार जंगल की आग पर काबू पाने के लिए हर मोर्चे पर काम कर रही है। वन अधिकारियों को सेना की मदद लेने के साथ ही ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर जंगल की आग पर काबू पाने के निर्देश भी दिए गए हैं। हमारी सरकार उन उपद्रवियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई सुनिश्चित कर रही है जो जंगलों को आग लगाकर नुकसान पहुंचा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में हर साल जंगलों में आग लगती है। किसी वर्ष आग के विकराल होने पर नुकसान ज्यादा होता है तो कभी कम। इस वर्ष रिकॉर्ड संख्या में वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं और माना जा रहा है कि जंगल की आग को रोकने में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी जरूरी है।

जंगल में आग क्यों लगती है?
पहाड़ों में 99 प्रतिशत से अधिक जंगल की आग मानव निर्मित होती है। एक प्रतिशत से भी कम आग प्राकृतिक कारणों से या दुर्घटनावश लगती है। जैसे भारी तूफान और अन्य विषम घटनाओं के कारण पावर ग्रिड का गिर जाना आदि। इस साल सर्दियों में कम बारिश के कारण उत्तराखंड के जंगलों में आग भड़क रही है। घास सूखी है और नमी कम होने के कारण विभिन्न इलाकों में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है। कई लोगों का आरोप है कि वन विभाग के कर्मचारियों ने अपनी असफल वृक्षारोपण परियोजनाओं को छिपाने के लिए आग लगा दी।

कौन लगाता है जंगल में आग हैं?
वन विभाग के अलावा ग्रामीण भी कई कारणों से आग लगाते हैं। मानसून में नई घास पाने के लिए सूखी झाड़ियों को जला दिया जाता है। स्थानीय लोग तेंदुओं और अन्य जंगली जानवरों के छिपने के स्थानों को हटाने के लिए गांव के क्षेत्र से झाड़ियों को भी साफ़ करते हैं। शरारती तत्व मनोरंजन के लिए भी आग लगाते हैं। अभी हाल ही में दूसरे राज्य के तीन युवकों को गैरसैंण (चमोली) में सोशल मीडिया के लिए रील शूट करके जंगल की आग को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कई बार ग्रामीण एहतियातन आग लगा देते हैं। जब वे जंगल की आग को अपने आवास क्षेत्र की ओर बढ़ते देखते हैं तो वे अपने गांव के पास आग लगा देते हैं। ऐसा जंगल की आग से गांव में होने वाले नुकसान से बचने और सूखी घास को पहले से साफ करने के लिए किया जाता है।

इस सीज़न में अधिक मौतें
उत्तराखंड में इस बार दावानल से अब तक चार लोगों की जान चली गई और चार अन्य गंभीर रूप से झुलस गए। राज्य वन विभाग का दावा है कि राज्य के किसी भी हिस्से से पशु हानि की कोई सूचना नहीं है। 16 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर वृक्षारोपण प्रभावित हुआ और जंगल की आग में 427 पेड़ नष्ट हो गए।

आमतौर पर देखा गया है कि उत्तराखंड में कभी-कभार होने वाली बारिश से जंगलों की आग पर काबू पा लिया जाता है। बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों में बुधवार को बारिश हुई। इन दोनों जिलों में अधिकतर जंगलों की आग बुझा ली गई है। भारतीय मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में उत्तराखंड के कई जिलों में बारिश की संभावना जताई है. लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि मौसम का पूर्वानुमान सच हो जाए और जंगल की आग बुझ जाए ताकि उनका जीवन सामान्य हो जाए।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required