नासूर बनने लगे हैं बंद परियोजनाओं के दिए जख्म
गांव से नीचे गुजर रही परियोजना की सुरंग के चलते कुंजन गांव में मंडराने लगा भूधसांव का खतरा, कई भवनों मं उभर रही दरारें
PEN POINT, DEHRADUN: भटवाड़ी प्रखंड में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग से हटकर 10 किमी दूर स्थित कुजन गांव के सुर्मिल सिंह के लिए इन दिनों रात काटना मुश्किल हो गया है। उन्हें हर वक्त अपने घर पर आई दरारों के और ज्यादा फैलने और घर के ध्वस्त होने का डर सताता रहता है। हर मानसून उनके और उनके परिवार की रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेता है। पूरा परिवार रतजगा कर यह सुनिश्चित करने में लगा रहता है कि घर में आई भारी दरारें घर को जमींदोज न कर दे। 90 परिवार के के इस गांव में करीब दर्जन भर परिवारों को इसी अनुभव से गुजरना पड़ रहा है। सुर्मिल सिंह की तरह ही सुमन सिंह, भरत सिंह, नवीन सिंह, बलवीर सिंह, राजेंद्र ंिसह, गिरवरी देवी समेत अन्य परिवारों के लिए मानसून का यह दौर ‘रतजगा’ करने को मजबूर कर देता है। ऐसा नहीं है कि गांव किसी मलबे के ऊपर बसा है या फिर कोई नदी या बरसाती नाला गांव में कटाव कर रहा है। यह मुसीबत गांव को 13 साल पहले इस इलाके में निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं की बदौलत मिली। जिसे केंद्र सरकार ने तो 2010 में बंद करवा दिया लेकिन इन परियोजनाओं के लिए बनाई गई सुरंगें ग्रामीणों के लिए नासूर बन गए हैं। परियोजनाओं के दिए जख्म अब जब उभर कर आ रहे हैं तो ग्रामीणों के वजूद पर संकट मंडराने लगा है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भागीरथी घाटी में 600 मेगावाट की लोहरीनाग पाला जल विद्युत परियोजना, 480 मेगावाट की पाला मनेरी जल विद्युत परियोजना और 391 मेगावाट की भैरोंघाटी जल विद्युत परियोजना का निर्माण शुरू हुआ था। इन परियोजनाओं का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो भैरोघाटी से लेकर भटवाड़ी तक के बीच के हिस्से में दर्जनों सुरंगें खोदी गई। परियोजनाओं का निर्माण कार्य भी तेजी से चल रहा था। परियोजना के लिए खोदी गई सुरंग इस क्षेत्र के कुंजन, तिहार, सुनगर, पाला समेत कई गांवों के नीचे से होकर गुजर रही थी। सुरंग खोदने के दौरान ही इन सुरंगों के दुष्प्रभाव इन गांवों में दिखने शुरू हो गए थे। पेयजल स्रोतों का गायब हो जाना, गांव में अलग अलग हिस्सों में धंसाव संकेत देने लगे थे कि यह सुरंग गांवों के वजूद के लिए भी खतरा बनेंगी। लेकिन, दावा किया गया कि परियोजना निर्माण पूरा होने के बाद सुरंग सुरक्षित रहेंगी और इससे गांवों को भी कोई खतरा नहीं होगा। इन जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के दौरान स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल रहा था तो गांवों पर मंडरा रहे खतरे को भी अनदेखा कर दिया गया। साल 2009 में आईआईटी के प्रोफेसर जेडी अग्रवाल ने इन परियोजनाओं के खिलाफ अनशन शुरू किया तो तत्कालीन केंद्र सरकार ने परियोजनाओं का निर्माण रोक दिया। साल 2010 में केंद्र सरकार ने इन तीनों परियोजनाओं के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। निर्माण में जुटी कंपनियों ने अपना बोरिया बिस्तरा समेट कर इलाका छोड़ दिया साथ ही छोड़ दिए अधूरी बनी सुरंगें और अधूरा निर्माण। तब से लगातार इन सुरंगों को क्षेत्र के लिए खतरा बताया जाने लगा। 2012 में जब केंद्र सरकार ने इस पूरे क्षेत्र को ईको सेंसेटिव जोन घोषित कर यहां 2 मेगावाट से अधिक क्षमता के विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को प्रतिबंधित कर दिया तो इन परियोजनाओं के दोबारा शुरू होने की सारी उम्मीदें भी धरासाई हो गई साथ ही परियोजनाओं के लिए खुदी आधी अधूरी सुरंगे के निर्माण की राह भी बंद हो गई।
उसके बाद से ही यह आधी अधूरी खुदी सुरंगे क्षेत्र के कई गांवों के लिए नासूर बन गई है। ग्रामीण लंबे समय से सरकार से मांग कर रहे हैं कि इन सुरंगों को भरा जाए या फिर सुरक्षात्मक उपाय किए जाए। लेकिन, परियोजना बंद होने के बाद सुरंगें और इनसे प्रभावित ग्रामीणों को सरकार ने उनके हाल पर छोड़ दिया है।
कुंजन गांव इन परियोजनाओं के लिए खोदी जा रही सुरंगों से पहले एक सुरक्षित बसावट माना जाता था। लेकिन, अब गांव के दर्जन भर आवासीय भवनों पर उभरी दरारें हर दिन चौड़ी हो रही हैं। जिसके चलते इन भवनों पर कभी भी ध्वस्त होने का खतरा मंडराने लगा है।
ग्राम प्रधान कुंजन महेश पंवार बताते हैं कि परियोजना के लिए खोदी जा रही सुरंगों से पहले गांव में न कभी कोई भूधसांव जैसी स्थिति आई न ही किसी भवन में कभी दरारें देखी गई लेकिन सुरंग निर्माण के दौरान और अब तब करीब 13 सालों से सुरंगे अधूरी छोड़ी गई है तब से इन सुरंगों की वजह से गांव में धसांव की स्थिति बनी हुई है। महेश पंवार बताते है कि गांव के नीचे से गुजर रही सुरंग की वजह से पानी के स्रोत तो गायब हुए हैं साथ ही कृषि भूमि, चारागाहों में भी धसांव हो रहा है, आवासीय भवनों पर धसांव का खतरा है जो पूरे गांव को चपेट में लेने की तरफ बढ़ रहा है। ग्राम प्रधान महेश पंवार पिछले चार सालों से प्रशासन के चौखट के चक्कर काट रहे हैं कि गांव में खतरे की जद में आए परिवारों को सुरक्षित ठिकानों पर विस्थापित किया जाए साथ ही पूरे गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण कर आपदा संभावित जोखिमों का अध्ययन कर गांव के विस्थापन संबंधी कार्यवाही की जाए लेकिन अब तक प्रशासन की ओर से इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
ग्रामीण जिलाधिकारी से गांव का सर्वे कर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित जगहों पर बसाने की मांग कर रहे हैं। वहीं आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने कहा कि ग्रामीणों की ओर से इस बारे में अवगत कराया गया है तो गांव में जल्द ही टीम भेजकर स्थलीय निरीक्षण किया जाएगा और अग्रिम कार्रवाई के लिए रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजी जाएगी।