100वीं जयंती : भारत का सबसे महंगा वकील, जिसने कनाडा में रहते हुए जीत लिया भारत में सांसदी का चुनाव
आज देश के सबसे महंगे वकील रहे राम जेठमलानी की 100वीं जयंती, 17 साल की उम्र में ले ली थी कानून की डिग्री, 78 साल रहा वकालत का अनुभव
PEN POINT, DEHRADUN : अदालत में एक मामले के लिए करोड़ों रूपए की फीस लेने वाले देश के सबसे महंगे वकील राम जेठमलानी आज जीवित होते तो आज अपना 100वां जन्मदिन मना रहे होते। हालांकि, अदालती मामलों में सबसे ज्यादा पैसा पाने वाले राम जेठमलानी को कुदरत ने उम्र के मामले में भी लंबी जिंदगी दी। वह साल 2019 में 95 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए वह भी अपने 96वें जन्मदिन से महज 6 दिन पहले, तो माना जा सकता है राम जेठमलानी वह शख्स थे जिन्होंने उम्र के खिलाफ भी भगवान की अदालत से स्टे ले रखा था। वह ऐसे पहले शख्स भी थे जिन्होंने विदेश में रहते हुए लोकसभा चुनाव जीत लिया था। गिरफ्तारी के डर से कनाडा चले गए और आम चुनाव में कनाडा में रहते हुए ही भारत में चुनाव लड़ा और सांसद भी बन गए।
गूगल पर देश का सबसा महंगा वकील के बारे में जब खोजा जाता है तो सबसे पहला नाम राम जेठमलानी का ही आता है। बताया जाता है कि वह किसी मामले में एक बार अदालत में पेश होने के लिए 25 लाख रूपए तक की फीस लेते हैं। कई अपराधियों, हत्यारों के पक्ष में मामला लड़ने से लेकर देश के कानून मंत्री रहने वाले राम जेठमलानी का जन्म 14 सितंबर 1923 को अविभाजित भारत के सिंध के शिकारपुर में हुआ था। पढ़ाई में अव्वल व तेज बुद्धि के राम जेठमलानी ने 13 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर ली थी तो कुल 17 साल की उम्र में कानून की पढ़ाई भी पूरी कर ली। लाहौर हाईकोर्ट में वकालत करने की गरज से पहुंचे तो कम उम्र की वजह से अनुमति नहीं मिल सकी। न्यायाधीश से गुहार लगाई, न्यायाधीश इस 17 साल के युवा के लिए बार काउसिंल में पंजीकरण के नियमों में शिथिलता बरती। उसके बाद उन्होंने जल्दी ही लॉ फर्म बना दी। जब तक वकालत पटरी पर दौड़ती तब तक विभाजन हो गया और उन्हें भारत आना पड़ा। भारत में वकालत जमाने की बजाए राम जेठमलानी ने कराची से मुंबई आ जाने के बाद उन्होंने मुंबई गवर्नमेंट लॉ कालेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। हालांकि, कुछ समय बाद फिर वह वकालत के क्षेत्र में लौट आए। फिर वकालत में उन्होंने वह ऊंचाईयां छुई जो किसी भी वकील के लिए संभव नहीं होगा।
वकालत में आसमान छूने वाले राम जेठमलानी ने राजनीति में भी हाथ आजमाया। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का विरोध करने के लिए उन पर भी अन्य नेताओं की तरह गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी तो राम जेठमलानी को गिरफ्तारी से बचने के लिए भागकर कनाडा चले गए जहां अगले दस महीनों तक उन्हें अपना ठिकाना बनाना पड़ा। साल 1977 में आपातकाल खत्म कर इंदिरा गांधी ने जब चुनाव की घोषणा की तो राम जेठमलानी ने कनाडा में रहते हुए ही लोकसभा चुनाव बॉम्बे उत्तर-पश्चिम सीट से लड़ा और जीत भी हासिल की। इसके अगले चुनावों में यानी 1980 में भी उन्होंने इस सीट से विजय हासिल की. हालांकि अगली बार यानी 1984 में वो कांग्रेस के सुनील दत्त से चुनाव हार गए थे। साल 1988 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। 1996 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वो भारत के कानून मंत्री बने। लेकिन, कानून मंत्री की कुर्सी उनके पास ज्यादा दिनों तक रही नहीं। तत्कालीन सालिसिटर जनरल से मतभेद के कारण प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया।
हालांकि एक दफा राम जेठमलानी अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लखनऊ से चुनावी मैदान में उतरे। साल 2004 के आम चुनाव में राम जेठमलानी ने वाजपेयी के खिलाफ दम ठोका तो कांग्रेस ने भी उनके समर्थन में अपने प्रत्याशी का नामांकन वापिस ले लिया लेकिन राम जेठमलानी इस चुनाव में जीत नहीं सके। राम जेठमलानी ने भले ही राजनीतिक करियर की शुरूआत भाजपा के साथ की हो लेकिन वह कई राजनैतिक दलों में आते जाते रहे।
विवादित मामलों की पैरवी की
राम जेठमलानी की प्रसिद्धि का दौर 1959 से शुरू हुआ जब उन्हें केएम नानावती मामले में पैरवी करने का मौका मिला। केएम नानावती नौसेना का एक अधिकारी था। उसने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी। यह मामला मीडिया ने खूब उछाला और उस दौर का सबसे चर्चित मामला भी बना। कुछ साल पहले अक्षय कुमार अभिनित इस मामले पर एक फिल्म भी लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया। उस दौर में न्यायालयों में जूरी द्वारा भी फैसले दिए जाते थे। जूरी ने नानावती को हत्या के इस मामले में दोषमुक्त करार दे दिया था। बाद में यह मामला महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के आदेश पर दोबारा शुरू किया गया तो राम जेठमलानी ने केएम नानावती के खिलाफ पैरवी की। जूरी द्वारा निर्दोष दिए गए नानावती के साथ मीडिया के जरिए पैदा की गई सहानुभूति थी लेकिन राम जेठमलानी की दमदार पैरवी ससे नानावती को न सिर्फ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई बल्कि तब से भारत में जूरी की व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई। इसी मामले ने राम जेठमलानी को वकालत के क्षेत्र का सितारा बना दिया। इसके बाद उनके हाथ कई हाईप्रोफाइल मामले आए लेकिन इसके बाद उन्होंने कई विवादित अभियुक्तों के मामलों में भी पैरवी की। 60 के दशक की शुरुआत से ही राम जेठमलानी तस्करों के वकील के रूप में बदनाम होने लगे थे। कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान, शेयर बाजार घोटालों के आरोपित हर्षद मेहता और केतन पारेख, इंदिरा गांधी के हत्यारों, राजीव गांधी के हत्यारों, जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा, प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान हुआ सांसद रिश्वत कांड यौन शोषण के आरोप में फंसे आसाराम बापू, अवैध खनन के आरोपित येदियुरप्पा और आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसी जयललिता समेत तमाम लोगों की पैरवी उन्होंने की। हालांकि, इन मामलों पर उनके द्वारा पैरवी पर विवाद उठने लगा तो वह हर बार अपना बचाव सिर्फ यह बोलकर किया कि अभियुक्त की ओर से पैरवी करना बतौर वकील उनका कर्तव्य है।
जब सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को डपट देते थे
राम जेठमलानी का वकालत में कुल 78 साल के करीब का अनुभव था। सुप्रीम कोर्ट में किसी न्यायाधीश की अधिकमत उम्र 65 साल हो सकती है। इस लिहाज से राम जेठमलानी का कुल अनुभव सर्वोच्च न्यायालय में बैठने वाले न्यायाधीशों से कई ज्यादा था। कई बार ऐसे किस्से भी सुने सुनाए जाते रहे हैं जहां पैरवी के दौरान राम जेठमलानी न्यायाधीशों को यह कहकर डपट देते थे कि जितनी उनकी उम्र नहीं उससे कई ज्यादा अदालतों में पैरवी का मेरा अनुभव है.