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61वां संविधान संशोधन : जब सरकार बचाने का दांव पड़ गया उल्टा

आज के ही दिन 1988 में 61वां संविधान संशोधन कर मतदान की न्यूनतम उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल कर दी गई, इस फैसले से पांच करोड़ के करीब नए मतदाता जुड़े सूची से
PEN POINT, DEHRADUN : भारत में 18 साल की उम्र होते ही व्यक्ति सरकार चुनने के काबिल हो जाता है। मतदान करने की उम्रसीमा न्यूनतम 18 साल होने की वजह से हर साल तकरीबन 2 करोड़ नए मतदाता सूची में जुड़ते है। लेकिन, साल 1988 तक देश में मतदान करने के लिए कम से कम 21 साल का होना अनिवार्य था। राजीव गांधी सरकार से आम चुनाव में जाने से पहले एक महत्वपूर्ण संविधान संसोधन कर मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 साल कर दी। हालांकि, चुनाव जीतने के लिए किया गया यह संशोधन राजीव गांधी सरकार पर उल्टा पड़ गया और 84 में मिले प्रचंड बहुमत के उल्टे 89 के चुनाव में राजीव गांधी को आधी से भी ज्यादा सीटें गंवानी पड़ी।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई सहानुभूति लहर के चलते कुल 513 सीटों में से कांग्रेस ने 404 सीटें जीती थी। उस दौरान असम, पंजाब के साथ तीन अन्य लोक सभा सीटों पर चुनाव नहीं हुए थे। इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई सहानुभूति से कांग्रेस को इतना प्रचंड बहुमत मिला जो आज तक किसी भी राजनीतिक दल के लिए पाना संभव नहीं हो सका। कांग्रेसी प्रत्याशियों के खिलाफ चुनावी मैदान में खड़े हुए बड़े से बड़े नेता भी चुनाव जीत नहीं सके। भारी बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी। भारी प्रचंड बहुमत से सरकार तो बन गई लेकिन सरकार चलाने में राजीव गांधी का दम फूलने लगा था। सत्ता और पार्टी के मामले में राजीव गांधी संकटों से घिरते चले गए। तत्कालीन राष्ट्रपति से तक उनके संबंध सबसे खराब दौर में पहुंच चुके थे। साल 1987 तक आते आते राजीव गांधी पर उनके ही पार्टी के लोग बोफोर्स तोप सौदे और पनडुब्बी खरीद पर कमीशनखोरी का आरोप लगाने लगे। विपक्ष के साथ ही अपनी पार्टी के लोगों के निशाने पर आए राजीव गांधी के लिए अगला लोकसभा चुनाव जीतना बड़ी चुनौती बन गया था। अगले साल यानि 1988 में इलाहबाद लोक सभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार की बुरी तरह से हार के बाद राजीव सरकार का आत्मविश्वासन भी डमगमाने लगा था। वहीं किसान आंदोलन, राम मंदिर आंदोलन की वजह से भी राजीव गांधी के लिए परिस्थितियों को नियंत्रित करना बूते से बाहर हो रहा था। चुनाव सिर पर थे और देश भर में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था।
ऐसे में राजीव गांधी ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए एक जरूरी संविधान संसोधन का पांसा फेंका। राजीव गांधी को उम्मीद थी कि इस संविधान संसोधन कर वह नए मतदाताओं को आकर्षित कर फिर से चुनाव जीतने में सफल हो सकेंगे। आज के ही दिन 20 दिसंबर 1988 को 61वें संविधान संशोधन विधेयक को पास किया गया और राजीव गांधी की सरकार ने मतदान की उम्र सीमा को 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दिया था। इस विधेयक के द्वारा देश में मतदान करने के लिए न्यूनतम उम्र सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था, जबकि लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा था। संविधान में हुए इस महत्वपूर्ण संशोधन का तत्कालिक असर भी दिखा। अगले साल यानि 1989 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या 40 करोड़ के करीब होने की उम्मीद थी लेकिन इस संसोधन के बाद मतदान की उम्र 21 साल से 18 कर देने की वजह से लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या 40 करोड़ से बढ़कर 45 करोड़ के करीब पहुंच गई। यानि एक झटके में ही पांच करोड़ नए वोटर मतदाता सूची में जुड़ गए। राजीव गांधी सरकार को उम्मीद थी कि युवा इस फैसले से आकर्षित होकर कांग्रेस के पक्ष में वोट करेंगे और एक झटके में ही पांच करोड़ के करीब वोटर बढ़ने का फायदा कांग्रेस को चुनाव में मिलेगा। लेकिन, इस फैसले के फायदे की बजाए कांग्रेस को तगड़ा नुकसान पहुंचा। मतदान का अधिकार मिलने से युवाओं में जोश तो जागा लेकिन उस दौरान देश भर में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते युवा विपक्षी दलों के पाले में चले गए है।
हालांकि 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को शर्मनाक हार मिली। 1984 में 404 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत पाने वाली कांग्रेस 197 सीट ही जीत सकी और सत्ता से बाहर हो गई। हालांकि, 1988 में आज के दिन किए गए महत्वपूर्ण संविधान संशोधन की बदौलत 18 साल तक के युवाओं को मतदान का अधिकार मिल सका और हर साल 2 करोड़ से ज्यादा युवाओं को मतदाता सूची में जुड़ने का मौका मिलता है।

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