बाबू जगजीवन राम, हो सकते थे देश के पहले दलित प्रधानमंत्री
पांच दशक तक सांसद, तीन दशक तक कैबिनेट मंत्री रहे बाबू जगजीवन राम की आज जयंती
1977 में जनसंघ की ओर से प्रधानमंत्री के तौर पर बाबू जगजीवन राम को दिया गया समर्थन, पर चरण सिंह की हठ से देश को नहीं मिल सका पहला दलित प्रधानमंत्री
PEN POINT DEHRADUN : आपातकाल खत्म होने के बाद पहले लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके थे। जनता पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर चुकी थी, अब प्रधानमंत्री बनने पर रार मच गई थी। गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली जनसंघ यानि आज की भाजपा ने खुद को प्रधानमंत्री की रेस से अलग कर दिया था। अब रेस में थे मोरारजी देसाई, चरण सिंह व जगजीवन राम। दलित नेता जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाने के समर्थन में जनसंघ ने आवाज बुलंद की। जनसंघ का मानना था कि देश का प्रधानमंत्री यदि दलित होगा तो उसके नेतृत्व में काम करने से हिंदु एकजुट नजर आएंगे। देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलने जा रहा था लेकिन सदियों से भारतीय समाज में जातिगत श्रेष्ठता जो गहरी जड़े जमाए थी वह इतनी आसानी से कहां हिलती। जनसंघ के बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव चरण सिंह ने यह कह कर ठुकरा दिया कि वह दलित के नेतृत्व में काम नहीं करेंगे।
जनसंघ की तमाम कोशिशों के बाद भी 1977 में देश को पहला दलित प्रधानमंत्री नहीं मिल सका। बाबू जगजीवन राम के पास यह पहला मौका नहीं था जब वह प्रधानमंत्री बनने से चूके। इससे पहले भी वह दो बार प्रधानमंत्री बनने से सिर्फ इसलिए चूक गये क्योंकि दलित को उस वक्त यह शीर्ष पद देने को देश तैयार नहीं हो सका। और आजादी के साढ़े सात दशक बाद भी दलित इस पद पर नहीं बैठ सका।
करीब पांच दशक की राजनीति, तीन दशक तक कैबिनेट मंत्री, देश के उप प्रधानमंत्री रहे बाबू जगजीवन राम की आज जयंती है। शिवनारायणी संप्रदाय के पुरोहित के संस्कृत बोलने वाले पुत्र जगजीवन राम का जन्म आज के ही दिन साल 1908 में बिहार के आरा गांव में हुआ था। दलित परिवार में पैदा हुए जगजीवन राम को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।
बिहार के आरा के जिस स्कूल में वे पढ़ते थे, वहां दलित छात्रों के पानी पीने के लिए अलग मटका रखा गया था। उन्होंने इसका विरोध मटका फोड़कर किया। आगे 1931 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया, लेकिन भेदभाव से यहां भी पीछा नहीं छूटा। यहां तक कि नाई ने उनके बाल काटने से इनकार कर दिया। जगजीवन राम ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि, भेदभाव के कारण उन्होंने बीएचयू को छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया।
अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री, पांच दशक तक रहे सांसद
कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पड़ाई के दौरान जगजीवन राम की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई। यहीं वे महात्मा गांधी के संपर्क में भी आए। वे 1931 में कांग्रेस से जुड़े तथा 1946 में जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। साल 1952 के स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में वे पहली बार सासाराम से चुनाव लड़े और 1986 तक वहां के सांसद रहे। जगजीवन राम 30 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे। साल 1986 में देहांत तक उन्होंने आधी सदी तक सांसद रहने का रिकॉर्ड बना लिया था। जगजीवन राम ने 1937 से 1975 तक कांग्रेस में कई अहम दायित्वों का निर्वाह किया। 1940 से 1977 तक वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। वे नेहरू से लेकर मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार तक में मंत्री रहे। इस दौरान वे उप प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री व सूचना-प्रसारण मंत्री जैसे कई बड़े पदों पर रहे। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध व बांग्लादेश के निर्माण के वक्त जगजीवन राम देश के रक्षा मंत्री थे। देश में जब हरित क्रांति आई उस समय वह देश के कृषि मंत्री थे।
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का दिया था साथ
आपातकाल के दौरान जगजीवन राम इंदिरा गांधी के साथ रहे। साल 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। तब इंदिरा गांधी सबसे पहले जगजीवन राम से हीं मिलने गईं थीं। बताया जाता है कि इंदिरा ने उनसे वादा किया था कि अगरे उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा तो वे अगले प्रधानमंत्री होंगे। हालांकि, इंदिरा गांधी से मनमुटाव होने पर बाबू जगजीवन राम ने आपातकाल के बाद अलग होकर हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ मिलकर अलग पार्टी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाई। फिर, जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा।
बेटे की आपत्तिजनक तस्वीरों ने किया राजनीतिक संकट खड़ा
इसी दौर में उनके बेटे की न्यूड तस्वीरों ने भारी राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया था। साल 1978 में पत्रिका ’सूर्या’ में जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरें छपीं। बताया जाता है कि सुरेश राम ने उस महिला से शादी भी की थी, लेकिन विवाद तो खड़ा हो ही गया था। उस वक्त जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे। इस मामले ने उनके पीएम बनने के सपने को तोड़ दिया। जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार 1979 में गिर गई।
1980 में आम चुनाव में जनता पार्टी ने बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर चुनावी समर में ताल ठोंकी। लेकिन, इंदिरा गांधी ने भारी बहुमत से सत्ता में वापसी की। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस में वापसी की कोशिश भी की लेकिन वह सफल नहीं हुए।