उद्धव ठाकरे ने मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण दिए जाने पर प्रतिक्रिया क्यों दी ?
पेन पोइंट, देहरादून: बीते बुधवार को राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार वितरण कार्यक्रम किया गया। इस सम्मान समारोह के बाद सबसे अधिक चर्चा तब हुई जब केंद्र सरकार की तरफ से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और धरती पुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्विभूषण से नवाजा गया। मुलायम को यह सम्मान दिए जाने पर महाराष्ट्र से प्रतिक्रिया आई। शिवसेना बालासाहेब के नेता उद्धव ठाकरे ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सामना में लिखा है कि राममंदिर आंदोलन के दौरान हिंदू कारसेवकों पर गोलिया चलवाने वाले मौलाना मुलायम को पद्मविभूषण देना कारसेवकों का अपमान है।
बता दें कि यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव को अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
मुलायम सिंह सरकार के दौरान मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई और महिलाओं से दुर्व्यवहार किया गया। उस दिन दो अक्तूबर को पुलिस की गोली से कई आंदोलनकारी शहीद हो गये । यह काण्ड तब हुआ जब गढ़वाल मण्डल के तमाम जिलों से आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे। मुजफ्फरनगर पुलिस ने आंदोलनकारियों को जिले की सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया। इससे पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प होने लगी। पुलिस की मारपीट में कई महिलाओं को चोट लगी। इसके बाद सुबह चार बजे रामपुर तिराहे पर मुजफ्फरनगर पुलिस ने गोलियां चला दी। इसमें कई प्रदर्शनकारी शहीद हो गए।
उस घटना को याद करते हुए वहां मौजूद रहे आंदोलनकारी आज भी वह दृश्य याद करके सहम जाते हैं। बताया जाता है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठीचार्ज किया। लोग तितर-बितर हो गए। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, हो क्या रहा है। तबसे लेकर आज तक तक उत्तराखण्ड के लोग उस वीभत्स काण्ड के लिए लिए मुलायम सिंह को जिम्मेदार मानते हैं। उन्हें इस पहाड़ी राज्य में विलेन की तरह देखा जाता रहा है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी को राज्य बनने के बाद यहां से अपना जनाधार गंवाना पड़ा। लेकिन अब जिस तरह से मुलायम सिंह को पद्मविभूषण दिया गया और उत्तराखंड में इसपर कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई , राजनीतिक जानकार इसे समय के साथ बदलते सियासी परिवेश का नतीजा बता रहे हैं। इससे लगता है कि आने वाले समय में यदि सपा यहाँ अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए प्रयास करे तो राज्य के मैदानी हिस्सों में उसके वोट बैंक में कुछ हद तक इजाफा हो सकता है।
मरणोपरांत मुलायम को पद्मविभूषण दिये जाने पर उत्तराखण्ड में सोशल मीडिया पर थोड़ा बहुत प्रतिक्रियाएं देखी गई। लेकिन न राज्य आंदोलनकारियों की तरफ से और न उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों की तरफ से इस पर कोई बड़ी और सार्वजनिक प्रतिक्रिया आई। इसके उलट देशभर में जब आज हिन्दुत्व की सियासत चरम पर है और धार्मिक आधार वाली सियासी पार्टी बीजेपी देश के कई राज्यों और बीते 9 सालों से केंद्र में सत्ता में काबिज है। इतना ही नहीं हिन्दुत्व की झण्डेबरदार इस पार्टी के सबसे बड़े चेहरे नरेंद्र मोदी सरकार ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित किया, तो सवाल उठने ही थे। क्योंकि राम मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर गोली चलाने के आरोप बीजेपी उन पर लगाती रही और सियासत करती रही। उसी राम मंदिर आंदोलन की बदौलत आज वह देश में सत्ता के शीर्ष पर काबिज है। लेकिन अब मुलायम परिवार और समाजवादी देखते हुए उठाए गए कदम के तौर पर देखा जा रहा है।वोट बैंक को साधने के लिए ही मुलायम सिंह को नवाजने से भी नहीं कतरा रही है। इसे 2024 के लोक सभा चुनाव को
उद्धव ठाकरे ने क्यों मुलायम सिंह को पद्मविभूषण दिए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी
बताया जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने ऑर्डर दिया और अयोध्या में कारसेवकों को गोली मार दी गई। इसके बाद भी बेखौफ होकर मुलायम ने बयान दिया कि बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। साथ ही कहा कि अगर भीड़ को जाने देते तो हिंदुस्तान का मुसलमान महसूस करता कि अब हमारे धर्मिक स्थल भी नहीं रहेंगे तो इस देश की एकता के लिए वो खतरा पैदा हो जाता। मुलायम सिंह ने कहा था कि अगर 16 जानें तो कम थी अगर 30 भी जानें जाती देश की एकता के लिए तो भी मैं अपना फैसला वापस ना लेता।
घटना के मुताबिक कारसेवकों के साथ साधु-संतों की भीड़ ने अयोध्या में हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने का प्रयास किया। एहतियातन अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया । इसके बावजूद अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो गई कि उन्हें काबू में नहीं किया जा सकता था।
पुलिस ने बाबरी मस्जिद के आसपास के 1.5 किलोमीटर के इलाके में बैरकेडिंग कर रखी थी. किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा था। सुबह 10 बजे तक हनुमानगढ़ी के इलाके में भीड़ बढ़ चुकी थी. पुलिस का जत्था लगातार आगे बढ़ रहे कारसेवकों से पीछे हटने का आग्रह कर रहा था। लेकिन भीड़ भी उन्माद में थी। खबरों के मुताबिक, कारसेवकों का एक गुट बैरकेडिंग के पास पहुंच गया। कहा ये भी जाता है कि उन्होंने पुलिस की वैन के जरिए बैरकेडिंग के एक हिस्से को तोड़ दिया और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। इसी समय पुलिसवालों को लखनऊ से गोली दागने का ग्रीन सिग्नल दिया गया। पुलिस ने आदेश का पालन किया। गोलियां चलाई गईं। जिसमें कई कारवसेवकों की मौत हुई। लेकिन बस गोली लगने से ही नहीं सरयू नदी पर बने पुल के जरिए भाग रहे लोगों के बीच भगदड़ हो गई, उसमें भी कई लोगों की मौत हुई। मृतकों की सही संख्या का अंदाज कभी नहीं लगाया जा सका।
लेकिन ये पूरे घटनाक्रम का एक छोटा-सा अध्याय था। 1 नवंबर 1990, इस दिन मृतकों का अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन 2 नवंबर को एक बार फिर से प्रतिरोध मार्च का आयोजन किया गया। इस मार्च में कारसेवक थे, उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे नेता इस भीड़ की अगुआई कर रहे थे। हनुमान गढ़ी के पास लाल कोठी में मौजूद संकरी गली में इस भीड़ ने प्रवेश किया। सामने पुलिस खड़ी थी। पुलिस ने शुरुआत में लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। भीड़ आगे बढ़ चुकी थी।
फिर से आदेश आया – फायर ! 48 घंटों के भीतर अयोध्या में पुलिस दूसरी बार कारसेवकों पर गोली चला रही थी। फिर से कई मौतें हुईं। कई लोग घायल भी हुए और कारसेवा रद्द कर दी गई।
उस वक्त मुलायम सिंह ने इस फैसले से बाबरी मस्जिद को तो बचा लिया लेकिन उनकी एक खास छवि बन गई। हिंदूवादी संगठनों उन्हें उपमाएं देने लगे, उन पर मुस्लिमपरस्त होने के आरोप लगने लगे। उनकी बहुत आलोचना हुई और 1990 के उस कांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।