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धन सिंह थापा : जब खत्म हुए हथियार तो खुकरी लेकर चीनी सैनिकों से किए दो दो हाथ

आज परमवीर चक्र से सम्मानित मेजर धन सिंह थापा की जयंती, पूर्वी लद्दाख पैंगोंग झील के पास 600 चीनी सैनिकों से लिया था लोहा
– बनाए गए युद्ध बंदी, घर वालों ने शहीद समझ कर दिया था अंतिम संस्कार
PEN POINT, DEHRADUN : अक्टूबर का महीना था और साल था 1962, चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ कर युद्ध छेड़ दिया। 8 गोरखा राइफल के साथ लद्दाख के पूर्वी सेक्टर में मेजर धन सिंह थापा चौकी पर मुस्तैद थे। रात को चीन सेना के 600 सैनिकों ने अचानक हमला कर दिया। मेजर धन सिंह थापा ने बहादुरी से चीनी सेना का सामना किया। यहां तक की जब हथियार खत्म हो गए तो खुकरी लेकर ही चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। खबर आई कि मेजर धन सिंह थापा इस युद्ध में शहीद हो गए तो घरवालों ने अपने वीर पुत्र का अंतिम संस्कार भी कर दिया। लेकिन, अगले महीने पता चला कि वीर योद्धा को चीनी सेना भी मारने की हिम्मत नहीं कर सकी। आज जयंती है परमवीर चक्र विजेता मेजर धन सिंह थापा की। भारत चीन युद्ध के दौरान अभूतपूर्व शौर्य के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया।
शिमला के एक नेपाली परिवार में 10 अप्रैल 1928 को पैदा हुए धन सिंह थापा का बचपन से ही सेना का हिस्सा बनना चाहते थे। 21 साल की उम्र में 28 अगस्त 1949 को धन सिंह थापा 8 गोरखा राइफ़ल्स की पहली बटालियन का हिस्सा बनाए गए। 1962 भारत चीन युद्ध के दौरान बटालियन के साथ मेजर धन सिंह थापा को पूर्वी लद्दाख गलवान घाटी में तैनात किया गया। 19 अक्टूबर 1962 को चीन की तरफ से भारी मात्रा में आर्टिलरी फोर्स आ रही थी। ये लोग श्रीजाप-1 के ऊपर बड़ी मात्रा में हमला बोल रहे थे। उस हमले का अंदाजा मेजर धन सिंह थापा को था। चीनी फौजियों ने रात साढ़े चार बजे आर्टिलरी और मोर्टार से हमला करना शुरु कर दिया।
ढाई घंटे तक लगातार आसमान से गोले बरस रहे थे। ऊंचाई से आ रहे चीनी फौजी ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे।रात के अंधेरे में गोलियां शोलो की तरह चमकती हुई भारतीय बंकरों की तरफ आ रही थीं। ऊपर से चीनी सीमा उस पार से तोप से शेलिंग कर रहे थे. जब शेलिंग बंद हुई तब तक 600 चीनी सैनिक मेजर धन सिंह थापा की पोस्ट 140 मीटर के दायरे में आ चुके थे. लेकिन न धन सिंह डरे, न ही उनके जवान। मेजर धन सिंह थापा ने अपने जवानों के साथ लाइट मशीन गन से जवाबी हमला शुरु किया। जवाबी हमले की उम्मीद चीनियों को नहीं थी। हालांकि चीन के आर्टिलरी हमले में कई भारतीय सैनिक बुरी तरह जख्मी हो चुके थे और कुछ जवानों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। डी कंपनी के साथ धन सिंह थापा का संपर्क भी टूट गया था क्योंकि उनके सभी रेडियो सेट्स गोलीबारी में खराब हो चुके थे। तब मेजर धन सिंह थापा और उनके सेकेंड इन कमांड सुबेदार मिन बहादुर गुरुंग एक पोस्ट से दूसरे पोस्ट की तरफ भागते हुए मशीन गन से फायरिंग करते रहे. जवानों का हौसला बढ़ाते रहे।
इस तरह से हमला करते रहने के दौरान भी चीनी फौजी धन सिंह की पोस्ट से 46 मीटर करीब पहुंच गए। भारतीयों को पोस्ट से भगाने या मारने के लिए चीनी फौजियों ने बम फेंकना शुरु कर दिया था। हथगोले ही हथगोले दागे जा रहे थे। गोरखा रेजिमेंट के जवान भी हैंडग्रैनेड्स और छोटे हथियारों से लगातार जवाबी हमला कर रहे थे। तब मेजर थापा ने खुद को दुश्मन के सामने लाते हुए लाइट मशीन गन से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरु कर दी। उनका निशाना अचूक था और इस हमले में कई चीनी सैनिकों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
मेजर धन सिंह थापा के पोस्ट पर उस समय सिर्फ सात जवान बचे थे। थापा इस पोस्ट के कमांडर थे। चीनी फौजियों ने अगला हमला हैवी मशीन गन और रॉकेट लॉन्चर से शुरू किया। पैंगोंग झील के पास वाले इलाके में चीनी फौजी एंफिबियस बोट्स के साथ आए। सबके पास हैवी मशीन गन थी। तब तक भारत के दो स्टॉर्म बोट्स ने चीनी नावों पर हमला कर दिया. लेकिन चीनियों के हमले में भारतीय फौजियों की एक नाव डूब गई।
तब तक तीसरा चीनी हमला हुआ। मेजर थापा के बंकर में सिर्फ तीन लोग बचे थे। थापा बाहर निकले लेकिन हथियार खत्म हो चुके थे। तब उन्होंने छिपकर हमला करने के लिए बनाए गए खंदकों से चीनियों की तरफ बढ़ना शुरू किया. हाथ में खुकरी लेकर कई चीनी फौजियों को मार डाला.?। लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें चीनी फौजियों ने पकड़कर युद्धबंदी बना लिया। थापा के साथ तीन और फौजी युद्धबंदी बनाए गए।
पहले लगा शहीद हो गए, बाद में पता चला युद्धबंदी हैं
पहले तो लगा कि मेजर धन सिंह थापा बाकी जवानों के साथ शहीद हो चुके हैं। उन्हें शहीद समझ घर वालों ने भी उनका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन बाद में खबर आई कि ये युद्धबंदी बनाए गए थे। मेजर थापा को नवंबर 1962 के बाद रिहा कर दिया गया। चीन सेना के साथ डटकर मुकाबला करने, युद्ध कुशलता और वीरता के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

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