आज की तारीख : जब एक इस्तीफे ने कांग्रेस के खिलाफ एक बड़े दल के निर्माण का मैदान किया तैयार
– आज के ही दिन 73 साल पहले नेहरू मंत्रिमंडल से हुआ था पहला इस्तीफा, नेहरू लियाकत पैक्ट के विरोध में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिया था इस्तीफा
PEN POINT, DEHRADUN : भले ही भारतीय जनता पार्टी ने बीते दिनों अपना स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया हो लेकिन आज की तारीख भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण तारीख है। करीब 73 साल पहले आज के ही दिन एक इस्तीफे ने कांग्रेस के खिलाफ इस वैकल्पिक दल के निर्माण की नींव रखी तो आजाद देश में पहली बार मंत्रीमंडल ने सरकार से नाराज होकर इस्तीफा दिया हो। कांग्रेस के उलट विचारधारा, गांधी नेहरू के विरोध में खड़े रहने वाले वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आजाद देश की पहली सरकार में मंत्री बनाया गया लेकिन नेहरू लियाकत पैक्ट के विरोध में उन्हांने 19 अप्रैल 1950 को मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही वैकल्पिक दल के रूप में जनसंघ की स्थापना का विचार भी धरातल पर उतरने की तैयारी करने लगा जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आया और आज कांग्रेस को पिछले नौ सालों से सत्ता से बाहर किए हुए है।
एक देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान का नारा देने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की राजनीति अंग्रेजी हुकूमत के शासन के दौरान ही शुरू हो गई थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1937 में बंगाल में प्रांतीय चुनाव में जीत हासिल की थी, उस दौरान वहां कांग्रेस के समर्थन से लीगी सरकार का गठन हो गया लेकिन लीगी सरकार ने अंग्रेजी हुकूमत के इशारे पर बंगाल विधानसभा में कलकत्ता म्युनिसिपल बिल रखा गया था, जिसके तहत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन का प्रावधान था। लेकिन, श्यामा प्रसाद मुखर्जी तब इकलौते नेता थे जिन्होंने इस बिल का प्रबल विरोध किया। उनकी माने तो लीगी सरकार इस बिल के जरिए हिंदू बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं की भागीदारी को सीमित करने की यह एक साजिश थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1941 में बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार गिरवाकर फजलुल हक के समर्थन ने नई सरकार का गठन किया। बंगाल हिंदू मुस्लिम की सांप्रदायिक आग में जल रहा था तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी यहां हिंदुओं के हितधारक बनकर उभरे। हिंदुओं को हितों को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आक्रामक रवैये ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई और साल 1944 में डॉ. मुखर्जी हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने। साल 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने दक्षिणपंथी इस नेता को अपनी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर उद्योग और आपूर्ति मंत्री का प्रोटफोलियो दिया।
विभाजन के बाद भारत पाकिस्तान दोनों दंगों की आग में सुलग रहे थे, दोनों मुल्कों में अल्पसंख्यक निशाने पर थे और अल्पसंख्यकों की हितों की रक्षा करने के लिए दोनों देशों के प्रधानमंत्री आगे आए और बातचीत के जरिए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस फैसले को नेहरू लियाकत पैक्ट के नाम से जाना जाता है। लेकिन, विभाजन के बाद भारत में रह गए मुस्लिमों को लेकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचार इस पैक्ट से मेल नहीं खाते थे, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का मानना था कि पाकिस्तान बनने के बाद देश के सभी मुस्लिमों को वहां चले जाना चाहिए और हिंदुओं को भारत में आना चाहिए लेकिन यह पैक्ट दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उन्हें मूलभूत अधिकार देने को सुनिश्चित करता था। साथ ही 1949 से दोनों देशों के बीच खत्म हुए व्यवसायिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करने की हिमायत की गई थी। लेकिन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस समझौते को हिंदू विरोध बताने लगे और इस बात से नाराज होकर आज के ही दिन 19 अप्रैल 1950 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
नेहरू मंत्रीमंडल से इस्तीफे के बाद अब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस के विरोध में एक वैकल्पिक राजनीतिक दल की स्थापना को लेकर काम करना शुरू कर दिया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा था ऐसे में जरूरी था कि एक ऐसे राजनीतिक दल का निर्माण हो जो हिंदू हितों को लेकर समर्पित होकर काम करे। आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक गोलवलकर से कई बैठकों के दौर के बाद अपने इस्तीफे के डेढ़ साल बाद 21 अक्टूबर 1951 को आरएसएस के समर्थन से एक राजनीतिक दल की शुरूआत की गई जिसे नाम दिया गया भारतीय जनसंघ और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके पहले अध्यक्ष चुने गये। अगले साल यानि 1952 में देश में पहले आम चुनाव हुए तो जनसंघ भी कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी और पहले चुनाव में तीन सीटें जीतने में सफल हो गई और इसके साथ ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी बंगाल से जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे।
19 अप्रैल 1950 की वह तारीख है जब आज की भारतीय जनता पार्टी के निर्माण की आधारशिला रखने का मैदान तैयार होने लगा। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उस इस्तीफे ने देश में कांग्रेस के अलावा एक बड़े राजनीतिक दल के विकल्प की भी राह खोली थी।