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75 वर्षीय ‘हरदा’ की लोकसभा चुनाव को ना, पर राज्य में डटे रहेंगे

– हरीश रावत ने बीते दिनों 2024 में लोक सभा चुनाव लड़ने की संभावनाओं को किया खारिज, अब राज्य की राजनीति में रमे रहने का किया एलान
– नजर 2027 पर, सोशल मीडिया के जरिए फिर से जाहिर की अगले विधानसभा चुनाव में नेतृत्व करने की इच्छा

PEN POINT, DEHRADUN : 2017 और 2022 में खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बताकर चुनावी मैदान में उतरे हरीश रावत के लगातार चुनावी हार के बाद भी हौसले बुलंद हैं। बीते दिनों ही अपना 75वां जन्मदिन मनाने वाले हरीश रावत की बीते दिनों नैनीताल संसदीय क्षेत्र और हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में सक्रियता देखकर अंदाजा लगाया जा रहा था कि हरीश रावत अगले साल होने वाले आम चुनाव में इन दोनों सीटों में किसी एक सीट पर दम ठोकेंगे लेकिन हरीश रावत ने बीते दिन सोशल मीडिया के जरिए साफ कर दिया कि उनकी मंशा 2024 का लोक सभा चुनाव लड़ने की नहीं है बल्कि वह राज्य में रहकर ही राजनीति करना चाहते हैं यानि कि उनका साफ इशारा 2027 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है। धामी सरकार अभी एक ही साल पूरा कर चुकी है और विधानसभा चुनाव में अभी चार साल बाकी है ऐसे में उम्र के इस पड़ाव में भी देहरादून में सत्ता में वापसी का मोह उनसे छूट नहीं रहा।

'Pen Point
पूर्व मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत चर्चाओं में बने रहना खूब जानते हैं। बीते दिनों जब नैनीताल संसदीय क्षेत्र में किसान मुद्दे पर हरीश रावत मुखर होने लगे तो चर्चा उठी कि हरीश रावत 2024 लोक सभा के लिए नैनीताल संसदीय सीट से तैयारियों में जुट गए हैं। इन चर्चाओं का बाजार गर्म ही था कि हरीश रावत सीधे हरिद्वार पहुंच गए और वहां गन्ना मूल्यों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ प्रदर्शन में बैठ गए। इससे पहले भी वह हरिद्वार में विभिन्न आयोजनों में शामिल हुए तो फिर चर्चा होने लगे कि हरीश रावत हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से ही ताल ठोंक सकते हैं। हरिद्वार से 2009 में भी हरीश रावत सासंद निर्वाचित हुए थे, लेकिन राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह 2017 के विधानसभा चुनाव में खटीमा के साथ हरिद्वार से भी विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरे तो करीब आठ साल पहले उन्हें सांसद के रूप में चुन चुके मतदाताओं ने उन्हें विधानसभा के लिए खारिज कर दिया। दो दो विधानसभाओं से चुनाव हारने वाले हरीश रावत देश के पहले मुख्यमंत्री बने। उसके बाद शुरू हुआ हार का सिलसिला अभी भी जारी है। हरिद्वार और नैनीताल संसदीय क्षेत्र में उनकी सक्रियता से उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की आशंकाओं को बल मिलने लगा तो कुछ दिनों तक इन अफवाहों का मजा लेने के बाद हरीश रावत ने खुद ही एलान कर डाला कि वह अब राष्ट्रीय राजनीति में नहीं रहेंगे और अब पूरा ध्यान उत्तराखंड की राजनीति में ही लगाएंगे। उन्होंने साफ कर दिया कि भले ही अगले विधानसभा चुनाव तक उम्र के 8वें दशक में पहुंच जाएंगे लेकिन वह राज्य की राजनीति में फिर से वापसी करेंगे।
हालांकि, लगातार हार के बाद भी वह लगातार सक्रिय बने हुए हैं तो खुद को कांग्रेस में प्रसांगिक बनाए रखने के लिए खूब जोर आजमाईश करते दिखते हैं। कांग्रेस में ही हरीश रावत की सक्रियता प्रदेश के कई बड़े नेताओं को नहीं भा रही है। लगातार दो विधानसभा चुनावों का नेतृत्व कर कांग्रेस को शर्मनाक हार का दोष भी हरीश रावत के मत्थे मढ़ा जाता रहा है। लेकिन, इन सब आलोचनाओं से परे हरीश रावत का यह ऐलान कांग्रेस में फिर से घमासान मचा सकता है।
और आखिर में ब्रिटिश राजनेता इनाख पावेल ने कहा था कि यदि राजनीतिक जीवन को बीच में ही एक अच्छे समय पर खत्म न कर दिया जाए तो उन सबका अंत नाकामी के साथ होता है।

 

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