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हरिशंकर तिवारी : जिसकी जीत ने राजनीति में करवाई ‘अपराध’ की एंट्री

– उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री पंडित हरिशंकर तिवारी का निधन, पहला चुनाव जेल में रहकर लड़ा और जीता
– हरिशंकर तिवारी के राजनीति में स्वीकार्यता के बाद अपराधियों और बाहुबलियों को राजनीति में लाने की मची होड़
PEN POINT, DEHRADUN : भारत की राजनीति में अपराधियों की स्वीकार्यता हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है। अपराधियों को तो राजनीतिक संरक्षण का पुराना इतिहास है लेकिन अपराधियों, माफियाओं को जनप्रतिनिधि के तौर पर चुने जाने का रिवाज बहुत पुराना नहीं है। 1985 में पहली बार उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित गोरखुपर जिले की एक विधानसभा में जेल में बंद एक अपराधी ने जब निर्दलीय चुनाव जीता तो इसके साथ ही भारतीय राजनीति में अपराध की आधिकारिक ‘एंट्री’ मानी जाती है। जेल में रहकर अपना पहला चुनाव जीतने वाले हरिशंकर तिवारी का मंगलवार देर शाम 91 साल की उम्र में निधन हो गया। भारत की राजनीति में अपराध को एंट्री मिली उत्तर प्रदेश में बाहुबली रहे पंडित हरिशंकर तिवारी के साथ। 1985 में जेल में रहकर चुनाव लड़कर जीतने वाले हरिशंकर तिवारी का राजनीतिक करियर 1985 से शुरू होकर 2007 तक रहा। इस दौरान शायद ही कोई राजनीतिक दल हो जिससे हरिशंकर तिवारी ने चुनाव न लड़ा और जीत हासिल न की हो। पहला चुनाव निर्दलीय जीतने वाले बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के साथ ही भारतीय राजनीति में अपराध, अपराधियों, माफियाओं, बाहुबलियों की एंट्री हुई थी।
बीते मंगलवार को हरिशंकर तिवारी ने आखिरी सांस ली। 1985 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार वे गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे। साल 1985 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में गोरखपुर जिले के चिल्लूपार सीट के नतीजे घोषित हुए तो लोगां को यकीन नहीं आया कि जेल में बंद एक बाहुबली हरिशंकर तिवारी ने निर्दलीय चुनाव में जीत हासिल कर ली। प्रदेश में कांग्रेस तो बहुमत में आ गई थी लेकिन गोरखपुर जनपद की चिल्लूपार सीट से एक निर्दलीय विधायक की जीत ने सबका ध्यान खींचा। अपराध के लिए कुख्यात हरिशंकर तिवारी ने जेल में रहकर यह चुनाव जीता तो भारत की राजनीति में अपराध के राजनीतिकरण पर भी बहस शुरू हो गई।
हरिशंकर तिवारी ने जब चिल्लूपार विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की, उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे और उनका भी राजनीतिक क्षेत्र गोरखपुर ही था। हरिशंकर तिवारी पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह यानी वीपी सिंह नजरें तरेर कर बैठे थे। उनके कार्यकाल में ही बाहुबली हरिशंकर तिवारी को जेल भेजा गया। लेकिन, जेल जाने के बाद हरिशंकर तिवारी ने भी राजनीति ठिकाना पाने की ठान ली। जेल से ही नामांकन पत्र भरा, जेल में रहकर अपने नुमांइदों से चुनाव प्रचार करवाया और जातीय समीकरणों के चलते जीत हासिल कर आखिर राजनीतिक ठिकाना हासिल कर दी।
राजनीति में आने से पहले गोरखपुर के उस इलाक़े में तब दो गुटों में वर्चस्व की लड़ाई होती थी, लेकिन दोनों गुटों के प्रमुखों के राजनीति में आने के बाद ये लड़ाई राजनीति के कैनवास पर भी लड़ी जाने लगी। दूसरे गुट में उनके चिरविरोधी कहे जाने वाले वीरेंद्र प्रताप शाही थे जो लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल करने के बाद हरिशंकर तिवारी की तरह ही राजनीति की बुलंदियों को छूते चले गए थे। हालांकि साल 1997 में वीरेंद्र शाही की लखनऊ में दिनदहाड़े हुई हत्या ने इस वर्चस्व की लड़ाई पर तो विराम लगाया, लेकिन उसके बाद ये लड़ाई पूर्वांचल के दूसरे गुटों तक फैलते हुए पूर्वांचल से आगे भी चली गई। हरिशंकर तिवारी के राजनीति में अपराधियों की एंट्री के बाद यह परंपरा चल पड़ी। हरिशंकर तिवारी की तरह ही मुख़्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, रमाकांत यादव, उमाकांत यादव, धनंजय सिंह के साथ-साथ अतीक़ अहमद, अभय सिंह, विजय मिश्र और राजा भैया समेत कई माफियाओं, बाहुबलियों को राजनीति रास आने लगी।
हरिशंकर तिवारी की करें तो जेल की सलाखों के पीछे रहकर विधायक बनने के बाद वो न सिर्फ़ लगातार 22 वर्षों तक विधायक रहे, बल्कि साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार मंत्री भी रहे। दस सालों के दौरान उत्तर प्रदेश में कई राजनीतिक दलों की सरकारें बनी लेकिन हरिशंकर तिवारी सत्ता के केंद्र में बने रहे। वह दस सालों के दौरान अलग अलग पार्टियों की सरकारों में मंत्री बने रहे।

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