अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मांगी थी अंग्रेजों से माफी
– देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को युवावस्था में भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान पुलिस ने किया था गिरफ्तार, माफी मांगने पर छोड़ा था अंग्रेजी पुलिस ने
Pen Point, Dehradun : दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक विनायक दामोदर सावरकर को भारतीय स्वतत्रंता सेनानी का दर्जा देते हैं लेकिन अंडमान में काला पानी की सजा के दौरान नौ बार अंग्रेजी सरकार को माफीनामा भेजने को लेकर कम्युनिस्ट, कांग्रेस समेत देश का बड़ा वर्ग उनके माफीनामे को लेकर ‘अंग्रेजी शासन’ के दौरान उनकी देशभक्ति को संदिग्ध बताता है। दक्षिणपंथी लेखक और पत्रकार निलांजन मुखोपाध्याय की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चेहरों पर प्रकाशित किताब ‘आरएसएस आईकन्स आफ दी इंडियन राइट में भाजपा के प्रमुख चेहरे रहे और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर एक खुलासा करते हैं कि आजादी के आंदोलन के दौरान जब पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपना सर्वस्व दांव पर लगा रहा था तो युवा हो रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने जेल से छूटने के लिए अंग्रेजी सरकार के सामने माफीनामे पर साइन कर भविष्य में कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किसी भी आंदोलन में शामिल न होने की शपथ ली थी। साथ ही खुद को स्वतंत्रता सेनानी मानने से इंकार कर दिया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने से इंकार कर दिया था, संघ से जुड़े स्वयंसेवकों के साथ ही संघ से सहानुभूति रखने वाली आबादी भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन से किनारे किए हुए थे, हालांकि, देश की बड़ी आबादी बापू के आह्वान पर अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर कर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद किए हुए थी। देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे और ‘भारत छोड़ों आंदोलन’ के दौरान करीब 18 साल के युवा अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर एक दावा किया जाता है कि आरएसएस के इस स्वयंसेवक के आंदोलन में शामिल होने के जुर्म में जब अंग्रेजी पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया तो इन्होंने अंग्रेजी सरकार को भविष्य में इस तरह के किसी भी आंदोलन का हिस्सा न बनने का माफीनामा देने पर जेल से रिहा किया गया। अटल बिहार वाजपेयी ने कुल 21 दिन जेल में बिताए थे। हालांकि, एक विवाद भी अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ताउम्र जुड़ा रहा कि वाजपेयी ने जेल से छूटने के लिए भारत छोड़ों आंदोलन में शामिल क्रांतिकारियों के खिलाफ बयान दिए थे जिसके चलते उन क्रांतिकारियों को सजा हुई।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे और विपक्ष के भी पसंदीदा नेता के तौर पर प्रसिद्ध रहे अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से किशोरावस्था में भी जुड़ गए थे। 1939 में में 15 साल की उम्र में ही अटल बिहारी वाजपेयी संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। वह संघ की शाखाओं में जाते। बेहद कम उम्र में संघ से जुड़ने के बावजूद वाजपेयी संघ की भारत छोड़ों आंदोलन से दूरी को लेकर असमंजस में थे। वह समझ नहीं पा रहे थे जिस आंदोलन के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा है उससे संघ दूर क्यों है। कम उम्र का असर था कि वह पूरी तरह से संघ की इस राष्ट्रीय आंदोलन से दूरी को समझ नहीं पा रहे थे। 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन जब आगरा स्थित उनके गांव बाटेश्वर से गुजरा तो वाजपेयी भी भीड़ के साथ इस आंदोलन में शामिल हो गए, लेकिन वह भीड़ के साथ से कुछ देर में ही अलग हो गए लेकिन मौके पर मौजूद पुलिस अफसर ने उन्हें भीड़ में शामिल होते देख लिया था लिहाजा भीड़ से जल्दी अलग होने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वाजपेयी को 23 दिन जेल में गुजारने पड़े।
खैर, 23 दिन बाद मजिस्ट्रेट के सामने वाजपेयी ने एक बयानपत्र दिया जिसमें उन्होंने दावा किया कि वह न तो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ किसी भी आंदोलन का हिस्सा रहे न ही सरकार के खिलाफ किसी भी आपराधिक कृत्य में शामिल रहे न रहेंगे। पुलिस को भी उनके खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के पर्याप्त सुबूत न मिलने पर रिहा किया गया।
हालांकि, यह दावा हमेशा किया जाता रहा है कि वाजपेयी को कभी भी भविष्य में किसी तरह के प्रदर्शन में शामिल न होने की शपथ पर उन्हें रिहा किया गया था। साल 1998 में फ्रंटलाइन के एक अंक में प्रकाशित लेख के अनुसार वाजपेयी अपने गांव पहुंचे भारत छोड़ो आंदोलन की रैली में एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में शामिल नहीं हुए थे, वह बस वहां एकत्र भीड़ का हिस्सा भर थे।
उसके बाद वाजपेयी पर आरोप लगते रहे कि जेल से रिहाई के लिए उन्होंने भारत छोड़ों आंदोलन में शामिल क्रांतिकारियों के खिलाफ बयान दिए थे। यह आरोप उनका पीछा हमेशा करता रहा यहां तक कि 1998 में जब वह प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले थे तो इसको लेकर विपक्षी दलों ने उन पर खूब हमला बोला था। साल 1974 में अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष थे तो यह मामला एक अखबार में छपी रिपोर्ट के बाद फिर से उछला। अखबार ब्लिट्ज ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमे वाजपेयी पर आरोप लगाए गए कि भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान उन्होंने मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में इकबालिया बयान पर हस्ताक्षर कर एक स्वतंत्रता सेनानी के खिलाफ पुलिस को अहम सुबूत उपलब्ध करवाए।
हालांकि, वाजपेयी के सहयोगी नानाजी देशमुख ने इस लेख को लेकर अखबार के खिलाफ मानहानी का मामला दर्ज किया। अगले नौ सालों तक चली सुनवाई के बाद यह तो सिद्ध हुआ कि वाजपेयी ने किसी भी स्वतंत्रता सेनानी के खिलाफ अंग्रेजी सरकार की मदद तो नहीं की थी साथ ही उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में किसी भी तरह से कोई भागीदारी नहीं की थी।
हालांकि, एक राजनेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व क्षमता, देश के लिए किए गए कार्यों, देश के प्रति उनकी निष्ठा हमेशा सवालों से परे रही है। अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का आदर्श पुरूष माना जाता है। देशप्रेम, देश के लिए उनके कार्य असंदिग्ध रहे हैं।