TIME ZONE : क्यों असम के चाय बागान देश के टाइम से भागते हैं एक घंटा आगे
– भारत में भौगोलिक विविधताओं को देखते हुए लंबे समय से सिंगल टाइम जोन को बदलने की जरूरत बताई जाती रही है
PEN POINT, DEHRADUN : क्या आप जानते हैं कि भारत में अगर आपकी घड़ी में सुबह के छह बजे हैं तो असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की घड़ी में उस वक्त सुबह के सात बज रहे होते हैं। देश की भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद पूरे देश के लिए एक मानक समय होने के चलते पूर्वात्तर के राज्यों को पूरे देश के साथ समय को लेकर तालमेल बिठाने में मुश्किलों का सामना करना होता है। भारत के पश्चिम और पूर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त में दो घंटे का अंतर है, लिहाजा इस अंतर को पाटने के लिए असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिक अपनी घड़ी को पूरे देश के समय से एक घंटा आगे करके काम करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि महाराष्ट्र में जब सूर्योदय होता है तो पूर्वी भारत के राज्यों में उससे दो घंटे पहले ही सूर्य उग चुका होता है। सूर्य के जल्दी उगने के कारण इस इलाके में सूर्यास्त भी जल्दी हो जाता है। पूर्व से पश्चिम के बीच करीब 3000 किलोमीटर लंबाई के चलते सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में इतना लंबा फर्क है लेकिन सूर्योदय और सूर्यास्त में दो घंटे के फर्क होने के बावजूद एक ही टाइम जोन है। देश की भौगोलिक विशालता को देखते हुए विशेषज्ञ लंबे समय से ही देश में दो टाइम जोन बनाने की जरूरत बताते रहे हैं लेकिन ब्रिटिश सरकार की देन सिंगल टाइम जोन को बदलने का जोखिम फिलहाल कोई सरकार उठाने की हिम्मत नहीं कर रहा है।
भारत का सिंगल टाइम जोन ब्रिटिश शासन की देन है। पूरे देश के लिए एक भारतीय मानक समय यानि आईएसटी के विचार की लंबे समय से आलोचना होती रही है। इसकी आलोचना के पीछे कारण इस विशाल देश की भौगोलिक परिस्थितियों में अंतर होना है। देश की पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी लगभग 2933 किलोमीटर है, जिसके कारण पूर्व के इलाकों में में सूर्याेदय और सूर्यास्त पश्चिम से 2 घंटे जल्दी होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त में दो घंटे के फर्क के चलते लोगों की जीवन शैली प्रभावित होती है।
सूर्योदय और सूर्यास्त जल्दी होने के कारण उत्तर-पूर्वी राज्य के लोगों को उनकी घड़ियां आगे बढ़ने की आवश्यकता पड़ती है, जिससे सूर्याेदय के उपरांत ऊर्जा का क्षय न हो। टाइम जोन के कारण बड़ी संख्या में लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है, खासतौर पर उन लोगों को जो गरीबी में रह रहे हैं।
पूर्व में पश्चिम से दो घंटे पहले सूर्याेदय होता है। सिंगल टाइम जोन के आलोचकों का कहना है कि पूर्वी भारत में दिन की रोशनी का इस्तेमाल ठीक से हो सके, इसके लिए भारत को दो अलग मानक समय को भारत में लागू किया जाना चाहिए। जिसके कारण पूर्व में रहने वाले लोगों को दिन की शुरुआत में ही लाइटों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे बिजली की अधिक खपत होती है।
सूर्याेदय और सूर्यास्त से शरीर की घड़ियों और सर्कैडियन रिदम भी प्रभावित होती हैं। जैसे-जैसे शाम ढलती जाती है, वैसे ही शरीर स्लीप हार्माेन मेलाटोनिन प्रड्यूस करता है, जिससे सोने में मदद मिलती है।
विशेषज्ञों की माने तो सिंगल टाइम जोन नींद की गुणवत्ता को कम करता है। खासतौर पर गरीब बच्चों की नींद की गुणवत्ता इससे कम होती है। जिसके कारण उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है। भारत में लगभग सभी स्कूल एक ही समय पर शुरू होते हैं लेकिन जहां सूरज देरी से ढलता है वहां बच्चे देरी से सोते हैं। सूरज का एक घंटे देरी से ढलने का मतलब है, बच्चे की नींद 30 मिनट तक कम होना। इन सबका प्रभाव सबसे अधिक गरीब बच्चों पर पड़ता है, जिनके घरों में आर्थित समस्याएं रहती हैं।
विशेषज्ञों की माने तो सिंगल टाइम जोन के बजाय अगर भारत दो तरह के टाइम जोन का इस्तेमाल करे तो भारत 4.2 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 0.2 फीसदी) से अधिक वार्षिक मानव पूंजी लाभ अर्जित कर सकता है। जिसमें पश्चिमी भारत के लिए यूटीसी$5 घंटे और पूर्वी भारत के लिए यूटीसी$6 घंटे हों। साल 1980 में खोजकर्ताओं की एक टीम ने बिजली बचाने के लिए भारत को दो अथवा तीन समय मंडलों में विभाजित करने का सुझाव दिया। लेकिन ये सुझाव ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित समय मंडलों को अपनाने के बराबर था, इसलिए इस सुझाव को नकारा दिया गया। साल 2002 में जटिलताओं के कारण सरकार ने ऐसे ही एक और प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया।
साल 2017 में आईएसटी का निर्धारण करने वाली राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के एक नए विश्लेषण के आधार पर असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए अलग समय क्षेत्र (टाइम जोन) में बांटने का सुझाव दिया गया है।
फिलहाल भारत में 82 डिग्री 33 मिनट पूर्व से होकर गुजरने वाली देशांतर रेखा पर आधारित एक समय क्षेत्र है। एनपीएल की ओर से दिए गए में यह क्षेत्र आईएसटी-1 बन जाएगा, जिसमें 68 डिग्री 7 मिनट पूर्व और 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र शामिल होंगे। इसी तरह, 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व और 97 डिग्री 25 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र को आईएसटी-2 कवर करेगा। इसमें सभी पूर्वाेत्तर राज्यों के साथ-साथ अंडमान और निकोबार द्वीप भी शामिल होंगे। इस रिपोर्ट में डोंग, पोर्ट ब्लेयर, अलीपुरद्वार, गंगटोक, कोलकाता, मिर्जापुर, कन्याकुमारी, गिलगिटम, कवरत्ती और घुआर मोटा समेत देशभर में दस स्थानों पर सूर्याेदय और सूर्यास्त के समय मैपिंग करने पर पाया गया कि चरम पूर्व (डोंग) और चरम पश्चिम (घुआर मोटा) के बीच करीब दो घंटे का समय अंतराल है। बॉडी क्लॉक (शरीर की आंतरिक घड़ी) की लय के अनुसार, मौजूदा आईएसटी कन्याकुमारी, घुआर मोटा और कवरत्ती के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। अलीपुरद्वार, कोलकाता, गंगतोक, मिर्जापुर और गिलगिटम के लिए भी काम चल सकता है, पर डोंग और पोर्ट ब्लेयर के लिए यह बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
हालांकि, केंद्र सरकार देश को दो टाइम जोन में बांटने को लेकर तैयार नहीं दिखती है। सरकार का दावा है कि देश को दो टाइम जोन में बांटने से देश में व्यवहारिक मुश्किलें पैदा हो जाएंगी जिससे लंबे समय तक देश में काम काज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
वह देश जिनमें है एक से ज्यादा टाइम जोन
फ्रांस – फ्रांस में सर्वाधिक 12 टाइम जोन में बंटा हुआ है।
अमेरिका – संयुक्त राष्ट्र अमेरिका 11 अलग अलग टाइम जोन में बंटा हुआ है।
रूस – दुनिया में क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा देश रूस 11 अलग अलग टाइम जोन में बंटा हुआ है।
ब्रिटेन – आकार में बेहद छोटा देश होने के बावजूद विविधता भरे भौगोलिक क्षेत्र को देखते हुए ब्रिटेन में 9 अलग अलग टाइम जोन है।
आस्ट्रेलिया – आस्ट्रेलिया देश अलग अलग 8 टाइम जोन में बंटा हुआ है।