एक साल बीता, नहीं मिल सका अंकिता भंडारी को न्याय
Pen Point, Dehradun : दिवंगत अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले को 18 सितंबर यानी आज पूरा एक साल बीत गया है। मासूम अंकिता को न्याय मिलाने की आस आज भी लोगों के जहाँ मने ज़िंदा है। उसके माता पिता,परिवार और अन्य परिजन अपनी लख्त ए जिगर को न्याय दिलाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इस दौरान एक साल में अंकिता के परवार ने कई धक्के खाए और जाने कितनी चौखटों पर बेटी की ह्त्या मामले में जल्द न्याय दिलाने के लिए दस्तक दी, लेकिन अब तक उन्हें महज मायूसी ही हाथ लगी। उनके लिए यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। बल्कि अपनी बेटी और देश और प्रदेश की तमाम बेटियों की सुरक्षा और उनके स्वतंत्रता से जीने के अधिकार की लड़ाई भी है। ताकि बेटियां किसी बहसी दरिंदे के डर से पूरी सुरक्षा के एहसास के साथ अपना जीवन जी सके और समाज में स्थापित हो सके।
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लेकिन न्याय और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग यहाँ अपनी-अपनी सुविधा और सियासत के चश्में से देखी जा रही है। जबकि असल अपराधियों से निपटना राज्य सत्ता की जिम्मेदारी है और त्वरित न्याय पाना हर किसी का हक़। न्याय की इस लड़ाई में किसी भी सभ्य समाज में सबको एक सुर में आवाज उठाने की जरूरत होती है। लेकिन जब अपराध और अपराधियों को लेकर उठाए जा रहे सवालों को सियासत करार दिया जाए तो समझ लेना चाहिए ये किस दिवालिया मानसिकता की उपज हो सकती है। ऐसा ही यहां अंकिता भंडारी हत्या काण्ड मामले में होता हुआ दिख रहा है।
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अंकिता भंडारी के परिजन कई बार सरकार पर इस मामले में सवाल उठा चुके हैं। खास कर जाँच और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की बात को लेकर। इस पूरे मामले में वीवीआईपी के नाम का खुलासा करने वाले एंगल पर तमाम तरह की चर्चाएं इस एक साल में होती रही। महत्वपूर्ण बात ये है कि यह मामला पूरे देश में आग की तरह फैला और देश के चर्चित हत्याकांड में शामिल हो गया। देश भर से अंकिता के पक्ष में आवाज उठी। अब ऐसे में प्रदेश के तमाम सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का इसमें मुखर हो कर आना लाजमी था। जिसे सियासत का नाम दिया जाने लगा। लेकिन क्या बिगड़ती कानून व्यवस्था और राज्य में हुए अपराधों पर किसी भी राजनीतिक दल को सामने इसलिए नहीं आना चाहिए कि वह लोगों की आवाज के साथ खड़ी हो रही हो।
सरकार ने पौड़ी जनपद के डोभ श्रीकोट राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकिता भंडारी के नाम पर रखने का निर्णय लिया है। वहीं विपक्ष ने इस पर सवाल उठाए हैं। लेकिन विपक्षी पार्टी के सवालों को भाजपा ने सियासत और राजनीतिक करार देकर पलटवार किया है।
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बता दें कि अंकिता भंडारी हत्या काण्ड के एक साल पूरा होने एक ठीक एक दिन पहले यानी रविवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी कि राज्य सरकार ने राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम दिवंगत अंकिता भंडारी के नाम पर रखने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री ने आगे लिखा कि हम बेटी अंकिता के परिजनों के साथ खड़े हैं और प्रदेश की हर बेटी का सम्मान और उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए संकल्पबद्ध है। वही अंकित भंडारी के पिता ने कहा कि इसके लिए सरकार से मांग की थी की डोभ श्रीकोर्ट में स्थित राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकित के नाम पर रखा जाए। इस नर्सिंग कॉलेज के नाम को अंकिता के नाम पर करने को लेकर अंकिता के पिता की तरफ से भी बात सामने आई है। जिस पर सरकार ने ये फैसला किया है।
सरकार की तरफ से सोशल मीडिया के जरिए सामने आने की बाद इस पर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट ने सवाल खड़े किए हैं, कांग्रेस ने कहा कि सरकार की जांच विंग वीआईपी के नाम का अभी तक खुलासा नहीं कर पाई है, ना ही दिवंगत अंकिता भंडारी के हत्यारों को फांसी की सजा दी गई है।
उधर भाजपा ने पलटवार किया है। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस को इस मामले में राजनीति बंद कर देनी चाहिए और सरकार के फैसले का स्वागत करना चाहिए क्योंकि अंकिता के परिजन भी ऐसा ही चाहतें थे, जिसपर मुख्यमंत्री ने गम्भीरता दिखाते हुए श्रीकोट नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकित भण्डारी के नाम पर रखने का फैसला लिया है। बीजेपी प्रवक्ता बीरेंद्र बिष्ट ने इस मामले में कांग्रेस पर सियासी रोटियां सेकने का आरोप लगाया है।
अंकिता भंडारी हत्याकांड को लेकर कांग्रेस सोमवार को पूरे प्रदेश में कैंडल मार्च निकालने जा रही है, वहीं भाजपा भी इस पर सियासत न करने की सलाह दे रही है। कुल मिलाकर अंकिता हत्याकांड मामले में पिछले 1 साल से सियासत जारी है। लेकिन सवाल वही है कि आखिर वह वीआईपी कौन था ? जिसके चलते अंकिता भंडारी की मौत हुई। जबकि इस मामले को लेकर सरकार ने कहा था कि मामले को फास्ट्रेक कोर्ट में चलाया जाएगा ताकि जल्द न्याय मिल सके। लेकिन बहरहाल ताज स्थिति तक ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दे रहा है।
अंकिता भंडारी हत्याकांड में न्याय की मांग को लेकर प्रदेश के कई सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन संगठन भी आज राजधानी देहरादून सहित राज्य के अलग अलग हिस्सों में अपना विरोध दर्ज कराने जा रहे हैं। उत्तराखंड की प्रतिष्ठित सांस्कृतिक और बोली भाषा साहित्य के लिए लम्बे समय से काम कर रही संस्था धाद कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के साथ सामने आई है। जिसके लिए बाकायदा एक पब्लिक कैम्पेनिंग पोस्टर जारी किया गया है।
जिसे पेन पॉइंट ज्यों का त्यों यहाँ दे रहा है रू – एक दिया आज अंकिता की बरसी पर उसके लिए न्याय के निमित्त और देश दुनिया की तमाम लड़कियों के लिए सुरक्षित और स्वतंत्र दुनिया के पक्ष में जलाये ?
अंकिता भंडारी के साथ हुए जघन्य अपराध को एक वर्ष हो गया है कानूनी लड़ाई के इतर इसने आम समाज मे जिन सवालों को सामने लाकर खड़ा किया है उसमें एक बड़ा सवाल महिला सुरक्षा व जेण्डर समानता का है और इस विषय पर समाज मे सार्वजनिक चेतना के अभाव का भी है। हमने पिछले वर्ष इन सवालों के साथ पोस्टर जारी किया था जिसमे से राज्य के सभी जिलों मे राजस्व पुलिस की जगह रेगुलर पुलिस थाने खोलने की माँग के अलावा अन्य सभी मांगे जस की तस है प् आज उसकी बरसी पर हम पुनः उन सवालों को दोहरा रहे है इस वर्ष अंकिता की बरसी पर हमने फिर उन्हीं मांगों के साथ पोस्टर जारी करनी की पहल की है प् अगर आप भी अपना पोस्टर जारी कर इस मुहीम को समर्थन देना चाहते है तो अपनी फोटो और नाम दिए गए नंबर पर भेजे-
◆ धाद ने रुरनेजपबमवितंदापजंइींदकंतप की मांगों के 1000 पोस्टर अभियान के साथ इस मुद्दे पर व्यापक चेतना जागृत करने के लिए पहल की और 1 अक्टूबर और दीपावली पर एक दिया अंकिता के निमित्त जलाने के लिए सामाजिक अभियान चलाया।
◆ अंकिता भंडारी के न्याय के लिए हो रहे जनसंघर्ष और कानूनी को समर्थन करते हुए धाद के साथियों ने अंकिता एक ज्योति नाम से एक पहल की है जिसमे गत वर्ष में सार्वजनिक और ऑनलाइन विमर्श और समझ बनाने के लिए सत्र आयोजित किये गए है.
◆ इसके साथ अंकिता एक ज्योति के नाम के साथ व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है जिसके साथ जुड़ कर आप अपने सुझाव देते हुए हुए इस अभियान में शामिल हो सकते है ग्रुप का लिंक https://chat.whatsapp.com/LKmeX4VNAbSJorC1KIe8BD
इसके अलावा वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी मोहन सिंह रावत ने बतया कि बेटी अंकिता को न्याय मिले इसके लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी सयुंक्त परिषद देहरादून में कैंडिल मार्च निकालने जा रहा है।