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शांति निकेतन विश्व धरोहर सूची में, सब ठीक रहता तो उत्तराखंड को मिलना था यह सम्मान

– शांति निकेतन को यूनेस्को ने रविवार को विश्व विरासत सूची में शामिल किया, गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने उत्तराखंड में शांति निकेतन की स्थापना की बनाई थी योजना
PEN POINT, DEHRADUN : पश्चिम बंगाल स्थित शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। नोबेल विजेता और प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने एक सदी पहले साल 1921 में शांतिनिकेतन में विश्वभारती का निर्माण किया था। शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं बिताया था। हाल ही में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में इसे शामिल करने की सिफारिश की गई थी।
यूनेस्को ने रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसका एलान किया। वैश्विक संस्था ने लिखा कि यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में नया नाम भारत के शांतिनिकेतन का है, बधाई। गौरतलब है कि भारत लंबे समय से बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित शांतिनिकेतन को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने की कोशिश कर रहा था। वर्तमान में भारत की 41 विरासतों को यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत सूची में शामिल किया हुआ है।

'Pen Point
क्या आप जानते हैं कि नोबेल पुरस्कार विजेता गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर सबसे पहले शांति निकेतन की स्थापना उत्तराखंड में करना चाहते थे। वह हिमालय के इस हिस्से से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और अपनी रचनात्मकता के लिए इसे आदर्श स्थान माना करते थे। जब शांति निकेतन और विश्वभारती का विचार उनके मन में चल रहा था तो उसकी स्थापना के लिए उनके दिमाग में पश्चिम बंगाल का बीरभूम जनपद का यह हिस्सा नहीं था बल्कि नैनीताल जनपद के पास रामगढ़ नामक स्थान था। इसके लिए गुरूदेव रबिंद्र नाथ टैगोर ने रामगढ़ में भूमि तक खरीद ली थी। रबिंद्रनाथ टैगोर 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे। प्रकृति के सुकुमार कवि रबिंद्रनाथ टैगोर को उत्तराखंड के इस पहाड़ी हिस्से की मनोरम छटा मंत्रमुग्ध कर गई। उन्होंने यहां भविष्य की योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए 40 एकड़ जमीन खरीद ली और उसे नाम दिया हिमंती गार्डन। अब उसे टैगोर टॉप के नाम से जाना जाता है। साल 1903 में जब उनकी पत्नी मृणालिनी का निधन हो गया तो वह अपनी 12 वर्षीय बेटी रेनुका के साथ वापिस रामगढ़ लौट आए। अब उन्होंने फैसला लिया था कि वह शेष जीवन रामगढ़ में ही बिताएंगे और अपनी योजनाओं को भी यहीं धरातल पर उतारेंगे। उनकी सबसे बड़ी योजना थी रामगढ़ में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना। इसके लिए पहले से खरीदी गई 40 एकड़ जमीन के अलावा वह अन्य जमीन भी खोज रहे थे। लेकिन पत्नी के निधन के बाद उनकी बेटी रेनुका को भी टीबी ने अपनी चपेट में ले लिया था। रबिंद्रनाथ टैगोर को उम्मीद थी कि रामगढ़ की आबोहवा रेनुका की सेहत के अनुकूल रहेगी और उसे जानलेवा टीबी से शायद बचा सके।
वह रामगढ़ में अपनी योजनाओं को आकार देने के साथ ही बेटी की सेहत सुधारने के काम में भी लगे हुए थे लेकिन टीबी ने उनकी 12 वर्षीय बेटी उनसे छीन ली। रामगढ़ में ही उन्होंने गीतांजलि में अपनी बेटी को समर्पित कविता लिखी। बेटी और पत्नी के असमायिक निधन से टैगोर अंदर से टूट गए। रामगढ़ में अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का विचार उन्होंने त्याग दिया और बेटी के निधन से बुरी तरह से क्षुब्ध होने के बाद वह रामगढ़ से कलकत्ता लौट आए। कुछ सालों बाद जब वह पत्नी और बेटी के निधन से उबरने लगे तो उन्होंने अपनी योजनाओं को पश्चिम बंगाल में ही धरातल पर उतारने का फैसला लिया और बीरभूम जिले में ही विश्वभारतीय विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में की। हालांकि, रामगढ़ से लौटने के बाद उम्मीद थी कि वह फिर लौटेंगे लेकिन अपनी योजनाओं को बीरभूम के निकट शांतिनिकेतन में ही धरातल पर उतारने में वह इतने व्यस्त हो गए कि फिर वह रामगढ़ लौटकर नहीं आए।

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